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गोठ बात

असाढ़ के आसरा हे




सूरुज नरायन ला जेठ मा जेवानी चढ़थे। जेठ मा जेवानी ला पाके जँउहर तपथे सूरुज नरायन हा। ताते-तात उछरथे, कोनो ला नइ घेपय ठाढ़े तपथे। रुख-राई के जम्मों पाना-डारा हा लेसा जाथे, चिरई-चिरगुन का मनखे के चेत हरा जाथे। धरती के जम्मों जीव-परानी मन अगास डाहर ला देखत रथें टुकुर-टुकुर अउ सूरज हा मनगरजी मा मनेमन हाँसत रथे मुचुर-मुचुर। सूरुज के आगी ले तन-मन मा भारी परे रथे फोरा,आस लगाय सब करत हें असाढ़ के अगोरा। गरमी के थपरा परे ले सबो के तन मा अमा जाथे अलाली अउ असाढ़ के पहिली दरस मा समाय रथे खुशहाली। इही खुशहाली के अगोरा मा जम्मो परानी अल्लर परे असाढ़ के परघनी करे बर सधाय रथें, कोनो पियासे ता कोनो भूँखे-लाँघन अउ कोनो खखाय रथें। असाढ़ हा अपन संग मा आस अउ बिसवास लाथे, जम्मो परानी मन के आलस अउ निरास ला भगाथे। असाढ़ के अगुवानी हवा, गर्रा, बड़ोरा अउ बुन्दा-बाँदी भरे बादर मन हा जुरियाय के करथें। असाढ़ के परघनी मा बादर हा दमा-दम बाजा बजाथे अउ बिजली चमचम-चम चमकाथे। बादर के हड़बड़ी बाढ़ जाथे, थार-थीर एक जघा बइठ नइ सकय।बिचित्र रंग-रूप बना के एती-तेती सरलग भाग-दउँड़ मा भिड़़ जाथे बादर हा।
सूरुज के घाम ले धरती के जम्मो परानी पाक के कोचराहा परे ला धर लेथें, फेर असाढ़ हा आके एकदम से हबेड़ के उठा देथे। असाढ़ हा सबला नवा जिनगानी देथे। भुँइयाँ घलाव हा जेठ के घाम अउ गरमी मा भुँजाय ला धर लेथे। एहू ला असाढ़ के अगोरा रथे, बादर ले निहोरा रथे। धरती के भीतर जीव लुकाय परानी मन ला घलाव अपन परान बचाय खातिर असाढ़ के अगोरा रथें। असाढ़ के सुवागत बर बर नान्हें-बड़े सरी जीव मन बयाकुल होगे अगोरा मा बइठे रथें। असाढ़ आही ता हमर परान बचाही। असाढ़ के हाथ मा सबके जिनगी के साथ हावय। असाढ़ बिन जिनगी मा हदास अउ निरास के मेकराजाला छाय ला धर लेथे। सबके जिनगी असकटहा अउ गरू लागे ला धर लेथे। असाढ़ ले अमरित बरसा के आस रथे सरी संसार ला। असाढ़ जिनगी मा आस अउ बिसवास के बरदान हरय, धरती मा रहइया जीव मन बर भगवान हरय। बिन असाढ़ जिनगी अबिरथा हे, खइता हे।
असाढ़ जोरदरहा गाजा-बाजा संग खूब चमकत आथे। असाढ़ के परघनी मा कोनो कमी ए धरती के भीतर अउ बाहिर मा रहइया जीव मन नइ करँय। असाढ़ सबके पियास ला ,हदास ला अउ निरास ला मिटाथे। एखर खुशी मा नवा-नवा नान्हें जीव मन के मेला लग जाथे। आनी-बानी के रंग-बिरंगी जीव मन धरती मा पटा जाथे अउ मनमाने मगन होके गाए-बजाए ला धर लेथे। कीरा-मकोरा, बेंगवा-बिच्छी, मेचका-टेटका, साँप-फाँफा, चाँटी-माछी अउ अइसनहे अनगिनती जीव मन पलपला जाथे। असाढ़ के आये ले बिधुन होके नाचे-गाए ला धर लेथें। असाढ़ आए ले जिहाँ खुशी बाढ़ते वइसने बुता-काम घलाव बाढ़़ जाथे। सबो परानी अपन-अपन ठउर-ठिकाना के बेवसथा चउमास बर पोठ अउ ठोसलगहा करे खातिर भिड़ जाथें। मनखे जीव उपर तो सबले जादा परभाव होथे असाढ़ के। खेती-किसानी हा बिन असाढ़ के होना मुसकुल हे। गरमी ले उसनाय अउ अधमरा परे तन-मन ला असाढ़ हा आके नवा परान फूँकथे। असाढ़ के आए ले अल्लर परे, हाथ मा हाथ धरे मनखे मन हा सावचेत हो के तियार होथे। असाढ़ के अगोरा सबले जादा हमर किसान भाई मन ला होथे। असाढ़ के अगुवानी मा किसान मन हा सबले आगू रथें। काबर के सियान मन हा केहें के *डार के चुके बेंदरा अउ असाढ़ के चुके किसान* कोनो काम के नइ रहय। इही पाय के किसान मन हा असाढ़ आय के पहिली अकती तिहार मान के असाढ़ के परघनी मा भिड़े रथें। असाढ़ के आए के खुशी अउ बादर के बदबदई मा किसान हा संसो फिकर मा पर जाथे के असाढ़ अवइया हे अउ मोर काँही बुता हा सिद्ध नइ परे हे। का होही अउ कइसे होही। घर के छानी-परवा मा खपरा लहुटे नइ हे, परछी बर जिझारी बँधाय नइ हे, कोठार-बियारा, बारी-बखरी के परदा मा पलानी चढ़ेच नइ हे, पैरा-भूँसा हा कोठार ले घर धराय नइ हे, खातु-माटी खेत मा पलाय नइ हे, खेत के मुँही-पार बँधाय नइ हे, काँटा-खूँटी बिनाय नइ हे अउ अइसने कतको बुता हा होय नइ हे अउ असाढ़ हा अवइया हावय। बैला-भैसा के जोंड़ी, नाँगर-बख्खर, गैंती, रापा, कुदारी, झँउहाँ, भँदई-अकतरिया, गाड़ी के जुड़ा, खूँटा अइसन सब के हियाव होय ला धर लेथें। ए मन ला सिरजाय ला लग जाथे किसान मन हा। अकरस जोंतई के संसो घलो रथे किसान ला असाढ़ के आगू। फेर चेतलगहा किसान हा अइसन सबो बुता-काम ला आगू ले आगू असाढ़ आए के पहिली पूरा करे मा लग जाथे। धंकिसान बर खेत धान बोंवाई हा असाढ़ मा हर हाल मा हो जाना चाही नहीं ते बोनी पछुवाय ले फसल के उत्पादन मा फरक परथे। जेन किसान ए बुता मा पछुवागे वो किसान बने किसान नइ माने जाय। वइसे तो धान बोंवाई हा असाढ़ के पहिली अकती के दिन हो जाय रथे फेर असाढ़ के अमरित बरसा ले बीजा हा जिनगानी पाथे। एखर सेती सबला असाढ़ के अगोरा रथे।
नाँगर-बइला, भइसा अउ किसान के जोंड़ी हा खेत-खार मा बड़ सुग्घर फभथे। खेती-किसानी हा नाँगर अउ बइला के संगे संग किसान के करम कहिनी कहिथे। बिन जाँगर के जिनगी अबिरथा हे एखर पाठ असाढ़ हा पढ़ाथे हमला। असाढ़ हा इही जाँगर अउ नाँगर के मरम ला अमर करथे। असाढ़ हा सुते जाँगर ला जगाय के एकठन बड़ महान परब हरय। असाढ़ के बिन सबके जिनगानी आधा अधूरा, जुच्छा अउ सुन्ना हावय। अन्नदाता किसान घलाव असाढ़ बिन अधमरा हावय। आसाढ़ के आए ले किसान के संगे संग जन-जन के बुता-काम हा कोरी खइरखा बाढ़ जाथे। असाढ़ ले धरती के सबो परानी मन ला जब्बर आस रथे। रुख-राई, तरिया-नँदिया, कुआँ-बावली, नरवा-नहर, जीव-जन्तु सबो ला असाढ़ मा पानी के आसरा रथे। असाढ़ ले आसरा के संगे संग संसो फिकर घलाव बादर मा छा जाथे। किसान ला जतका खुशी असाढ़ के अगोरा मा रथे वोतके संसो असाढ़ के आए ले हो जाथे। पानी गिरही के नहीं, पानी जादा गिरगे तभो मरन, पानी कमती गिरगे तभो मरन। इही संसो हा किसान के मन मा बादर कस घुमरत रथे। असाढ़ मा कहूँ पानी नइ गिरय तहाँ ले मनखे मन किसिम-किसिम के उदीम करे ला धर लेथें। देबी-देवता ला मनाय बर, बरखा रानी ला बलाय बर, परकीति ले अमरित पाय बर, पूजा-पाठ, जग-हवन अउ भजन-कीरतन मा लगथें। कइसनो करके असाढ़ मा अमरित के धार धरती मा बोहाय अउ जम्मो जीव जगत के परान ला बचाय।असाढ़ मा कहूँ सरीउदीम ले पानी नइ गिरय ता मेचका-मेचकी मन के बर-बिहाव घलाव करे जाथे। बिन पानी के सुन्ना सबके जिनगानी हे। असाढ़ के पहिली बरसा हा अमरित समान सबला नवा जीवन दान देथे। धरती दाई घलाव एखर अगोरा बियाकुल रथे। वइसे हमर भारत भुँइयाँ मा मउसम के दशा ला अटकर लगा के जाने जाथे। किसान घलाव असाढ़ मा बरसात के अटकर लगा के, करजा-बोड़ी करके बीजहा-खातू के बेवसथा जोरदरहा ढ़ंग ले कर डारे रथे। करिया-करिया बादर अउ ओकर गरजाई-घुमराई ला देख के किसान के मन मा आस संचरथे, बिसवास बाढ़ जाथे। जिनगानी के सुग्घर उज्जर आस हरय असाढ़ के करिया-करिया बादर हा, चमचम चमकत बादर के बिजली हा, बादर के बाजत बाजा हा। असाढ़ हे ता आस हे अउ आस हे ता असाढ़ हे।आस मा ये सरी संसार हा चलत हे। आस हा संचरथे ता जिनगी मा जोस भरथे अउ मनखे अचरज भरे काम-बुता ला घलो कर डारथे। बिन आस के जिनगी मुरदा जइसे हो जाथे। आस तो मनखे एक खास गुन हरय जौन वोला जिनगी जीये बर सरलग प्रेरित करत रथे।असाढ़ हा जम्मो जीव ला नवा जिनगानी, नवा जोस अउ नवा उरजा देथे। उछाह अउ उमंग के बरसा करथे असाढ़ हा जिनगी मा। असाढ़ हा करम के पाठ पढ़ाथे अउ एला सुरता घलाव देवाथे। असाढ़ ले हमर जिनगानी मा आस, आसरा अउ आस्था संचरथे जेखर ले हमला जिनगी जीये बर रद्दा मिलथे।असाढ़ बिन ए जिनगी के कुछू मोल नइ हे, असाढ़ एला जीए बर नवा मउका देथे अउ कथे के आस के अँचरा ला कभू झन छोंड़व। आवव असाढ़ के आस अउ बिसवास ले अगुवानी करीन के एसो हमर आस ले आगर हमला पानी दय, सबला जिनगानी दय। असाढ़ के अंतस ले अभिनंदन हे।

कन्हैया साहू “अमित”
परसुराम वार्ड~ भाटापारा
जिला – बलौदा बाजार (छ.ग)
संपर्क~9753322055