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गोठ बात

आम जनता के गणतंत्र

तीन कोरी एक आगर बरिस पहिली हमर देस के संविधान ला लागू करत खानी जउन किरिया हम अउ हमर जम्‍मो भारत के मनखे मन खाये रहेन वो किरिया हा कतका सुफल होए हे तउन ला आज के दिन बिचार करे के बात हे। वो समे अउ हमर गणतंत्र के अभी के हाल ला सोंचे बिना झंडा फहरई अउ गण‍तंत्र दिवस अमर रहे के नारा लगई अबिरथा हे। हमर देस के चकाचक बिकास ला देखके इतरई के संगें संग अभी के हालत बर सोंच-बिचार करना भी जरूरी हे। सहर के बड़का-बड़का मकान, बिजली के अंजोर ले चमकत माल, चिक्‍कन-चातर सड़क, मोटर- कार, धूंगिया उगलत कारखाना  के पाछू मा बजबजावत झोपड़पट्टी अउ मेहनत ले कनिहा झुकाये मनखे के फउज हे, जइसे गणतंत्र के लागू होए के पहिली रहिस आज घलो हे।  गांव तक बने पक्‍की सड़क, गली गली होये सीमेंटीकरन, पचरी मा लगे पथरा,  ओदरत के जघा मा पक्‍की स्‍कूल अउ पंचायत भवन के पाछू खघर छांधी मा माटी के घर मा रहत, मजूरी बर तरसत,  खोलाये पेट के गवंइहा मन ओइसनेहे लागथे जईसे तीन कोरी बरिस पहिली उंखर अजाबबा मन हा दिखंय। कतका बीता सरके हे बिकास हा इहें दिख जाथे।
हमर देस तइहा ले खेती-किसानी वाला देस रहे हे, इही ह हमर देस के विकास के अधार ये। आज घलाव हमर देस के अड़बड़ अकन जनता के रोजी-रोटी के साधन खेती-किसानी हर हावय। बिगियान के साधन ले हमर खेती-किसानी करे के औजार मन सुगम होईसे  अउ एकड़ पाछू उपज के कूत हर बाढ़ गे फेर तइहा के खरचा अउ कूत के अनुपात मा आजके उपजे फसल के कीमत किसान के मेहनत ले कम हावय। किसान कर्जा मा बूड़ के आत्‍मघाती करत हावय बिचौलिया मन फसल के दूना चौगुना कीमत लगा के जनता मन मेर बेंचत हांवय अउ किसान ला चुहकत हावय। ये बिचौलिया मन के मार ले जनता धान-चाउंर के बाढ़े कीमत ले हलाकान हे। फसल के जमाखोर बियापारी मन झूठ-मूठ के कमी बताके दार-चांउर, साग-भाजी, कपड़ा लत्‍ता के भाव ला गोंदली कस बढ़ावत हें। पेट्रोल-डीज़ल के कीमत घलव आसमान छूवत हे, अउ जनता मंहगाई ले हलाकान हे।

दूसर कोती गणतंत्र के अउ सरकार के बड़का बड़का कारिंदा  मन मेर अपरंपार धन-संपति एकंगू सकलावत हे अउ बिदेस के बैंक मन मा जमा होवत हे। धनी मन के घर मा धन के बरसा होवत हे, गरीबहा मन एक-एक दाना बर तरसत गरिबहा ले गरिबहा होवत हावय। सरकारी आंकड़ा मन मा खुसहाल दिखत भारत के आंकड़ा के गिनती के दूसर कोती दाना-दाना बर मोहताज मनखे आज भी अपन गांव ला छोड़ के दूसर गांव-सहर म कमाये खाये ला जावत हे, नरेगा-फरेगा के मस्‍टररोल भरावत हे अउ चुकारा ला सरपंच, सचिव अउ साहब मन उड़ावत हे। भ्रस्‍टाचारी के ये खेल तरी ले लेके उप्‍पर तक चलत हावय, मंतरी-संतरी के का बात कहे अब नियाव करईया न्‍यायाधीस मन के नाव घलव भ्रस्‍टाचारी म सुनावत हे अइसन मा काखर मेर नियाव के भरोसा करबे समझ मा नई आवत हावय। आपमन देस संग छत्‍तीसगढ़ मा घलव रोजे देखत होहू सरकारी साहेब मन के घर जब छापा परत हे तब पता चलत हे कि साहब मन भ्रष्‍टाचारी कर-कर के अकूत संपत्ति जमा डारें हांवय, येमन अपन सातो पुरखा अउ सातो जनम ला तारे के बिवस्‍था करे बर हम जनता के इही जनम ला नरक बनावत हें, हमर पाई पाई कमाये पईसा ला खावत हें अउ बेसरमी से गजट मन मा फोटू तको खिंचावत हें। अधिकारी मन देस के कानून-कायदा ल ताक म रख के सिरिफ सत्ताधारी नेता अउ पूंजीपति ला सहायता पहुचावत हें, गरीब जनता के कोनो काम बिना अंटी ढ़ीला करे बिना नई बनत हे ओखर अधिकार छिनावत हे, ओखर सम्‍मान नंदावत हे अइसन म बहुसंख्‍यक गरीब मन म राष्ट्रीय भावना कहां ले आ पाही?

सरकार के ये कारिंदा मन उपर घटत बिसवास के संगे संग गणतंत्र मा आसा के दीया टिमटिमावत हे, पाछू के बरिस ले आईएएस के परीकच्‍छा मा दलित अउ दमित समाज के जवान मन जियादा मात्रा मा पास हो के आवत हें ऐखर पहिली सरकार के ये माई कारिंदा मन बड़े जात अउ तबका वाले समाज ले आवंय अउ ससन भर ले सरकार के पईसा अउ गरीबन के लहू ला चुहकंय। अब हमला भरोसा हे दमित अउ दलित समाज ले आये साहब मन अपन स्‍वयं के जीवन के संघर्ष अउ अपन समाज के दुख दरद ला समझहीं अउ भ्रष्‍टाचारी के सुरसा के मुह धीरे-धीरे नंवा साहेब मन के सासन ले चपकाही नहीं ता मूंदाही जरूर। भारत के पहिली राष्‍ट्रपति डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद हा गणतंत्र दिवस बर बोले रहिसे कि हमला ये सुरता रखना चाही कि आज के ये दिन आनंद मनाये ले जियादा समरपन करे के दिन ये। अपन अधिकार समझे के पहिली अपन करतब्‍य ला समझना जादा जरूरी हावय। जम्‍मा देस के नागरिक जब अपन-अपन करतव्‍य निभाए लगहीं त अपने आप हमर देस के गणतंत्र के जय होही। अउ  ये तभे होही जब भारत के जम्‍मो जनता के पेट मा दूंनो बेरा के पेटभर खाना होही तन मा ओढ़ना अउ मूड़ मा खपरा होही,  सिरिफ दिल्ली, रायपुर अउ जिला मन के सड़क भर म हरेक साल गाजा-बाजा वाला जुलुस निकाले भरले जनतंत्र के जय नई होवय, वोट डारे के खिचरी सरकार बनाये ले गणतंत्र सुफल नइ होवय। जउन दिन देस के जम्‍मा जनता ल रोटी, कपड़ा, मकान, दवाई अउ सिक्छा मिल जाहय, जउन दिन आम जनता के मन भावना जागही के भारत देश हमार आय उही दिन हमर सच्‍चा गणतंत्र के जय होही।

संजीव तिवारी

2 replies on “आम जनता के गणतंत्र”

संजीव जी आप मेरे ब्लॉग पर पधारे आपका बहुत बहुत धन्यवाद.. पहले कभी किसी ने सहायक शब्द के बारे में नहीं कहा … आपको अच्छा नहीं लगा तो मैंने उसे हटा दिया है … और आपका ही सुझाया नाम लिख दिया … “हमसफ़र”… आगे भी मार्गदर्शन करते रहियेगा … शुभकामनाएँ

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