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कविता

आह! घनचकरूं वाह!!

आह! घनचकरूं वाह!!

रामकुमार धीवर, सीपत

नेता नाव दलबदलू, खुरसी लोभी आप।

कभू पंजा, कभू कमल, कभू कटोरा छाप।।

कभू कटोरा-छाप, चुनाव बर भीखमंगा।

पल-पल धोखा करय, जनता के बनाय नंगा।।

आह! घनचकरुं वाह!! सुवारथी देसमेढ़ा।

सरम-धरम खूंटी म, ओही ह असली नेता।।

पूज ले अपन डउकी क, फूल नरियर चढ़ाव।

मेड़वा डउका बनके, तरइ तोड़ लाव।।

तरइ तोड़ लाव, पाबे चंदरमा दरसन।

करबा- चउथ व्रत रख, डउकी ह होही परसन।

आह! घनचकऊं, वाह!! मुड़वा ठकुराइ मूंछा।

कलजुगी जमाना म, कर चार डउकी पूजा।।

टोपी पहिर खादी के, नेता रूप बनाव।

गुण्डा ल रुपिया बांट, खेल चुनाव-चुनाव।।

खेल चुनाव- चुनाव, नो चिनता डोन्ट फिकर।

खुर्सी तोर मुठ्ठा म, कानून ल थैली म धर।।

आह! घनचकरूं, वाह।। सानति एकता खा-पी।

जनता ह का करही, उछाल देश के टोपी।।

चमचाइ हे पहिली गुन, दूसरा गुन जुगाड़।

सुवारथीपन तीसर म, चउथा देस बिगाड़।।

चउथा देस बिगाड़, रंग बदले म टेटका।

घोटाला म अघुवा, जनता के देवय झटका।।

आह! घनचकरूं वाह!! नेता याने कसाई।

चुनाव म जनता के.. अब्बड़ करे चमचाई।।

छत्तीसगढ़ रूप टेटका के, सतरा- खतरा चाल।

गुन हे चार सौ बीसी, एक नंबर दलाल।।

एक नंबर दलाल, गुन के गोबरा कहाय।

जेन दिहीस खुर्सी ल, ओकरेच नरी दबाय।।

आह! घनचकरूं, वाह!! सरहा पीवरा बत्तीस।

देस के पोठ चलाय, टेटकाइ रंग छत्तीस।।