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व्यंग्य

कइसे झंडा फहरही ?

 

पनदरा अगस्त के पहिली दिन, सरपंच आके केहे लागीस ‌- डोकरी दई, ये बछर, हमर बड़का झंडा ल, तिहीं फहराबे या …..। मोर न आंखी दिखय, न कान सुनाये, न हाथ चले, न गोड़, मेहा का झंडा फहराहूं – डोकरी दई केहे लागीस ? सरपंच मजाक करीस – ये देस म जे मनखे ला दिखथे, जे मनखे ला सुनाथे, जे अपन हाथ ले बहुत कुछ कर सकत हे, जे अपन गोड़ के ताकत ले दुसमन के नास कर सकत हे तेमन ला, आज तक झंडा फहराये के हक नी मिलीस। जे कुछ करय निही या कर नी सके तिही मन झंडा फहराथे दई। फेर ये दारी ले, हमूमन सोंच डरे हाबन के, जे मनखे, हमर देस बर कुछ करे हे तिही मन झंडा फहराही, तेकर सेती तोर नाव तै करे हाबन। डोकरी दाई किथे – वा……, देस म अऊ कतको मनखे हे जेमन, देस बर बहुत कुछ करे हे, उही मन ला कहव, में नी जांवव झंडा मंडा फहराये बर …….।
सरपंच किलौली करे लागीस – हमर ले कुछू गलती होये होही तेला माफी देहू डोकरी दई, फेर कइसनो करके, मोर खातिर ये बछर के झंडा फहरा दव। डोकरी दई जिद पकड़ लीस – तें चाहे कहींच कहिले सरपंच, में झंडा नी फहरांव। डोकरी दई के जिद देखके सरपंच केहे लागीस – तुंहर जगा तुंहर बेटा फहराही त बनही ? मंच ले घोसना कर देबो के, तुंहर तबीयत थोकिन खराब हे तेकर सेती, परिवार के मुखिया के हाथ ले झंडा फहराये जावत हे। डॉकरी दई किथे – अपन बेटा ल घला नी फहरावन दंव। सरपंच परेसान होगीस। कारन पूछे लागीस।



सरपंच के किलौली देख डोकरी दई कारन बतावथे – अभू ले अस्सी बछर पहिली के बात आये। तोर बबा ल, बड़का सेनानी मन झंडा फहराये बर उकसा दीन। उकसइया मन जानत रिहीन के जे मनखे झंडा फहराही, तेला अंगरेज गोली मार के दुनिया ले बिदा कर दिही। तोर बबा नी जानत रिहीस …… कहत कहत रो डरीस। भरे जवानी म खाली हाथ होगेंव। मोर एके झिन बेटा आय, झंडा फहराये के उदीम म कनहो कीम्मत म नी भेंजंव …. कोन जनी काये करहू ओकर संग ……..। सरपंच किथे – वा …. ओ दारी अंगरेज मन के राज रिहीस दई, हमन गुलाम रेहेन, अभू अजाद हन, कोन गोली चलाही हमर ऊपर ? डोकरी दई किथे – तैं अजाद होबे सरपंच, हमन कती करा अजाद हन। सरपंच बतइस – निही वो डोकरी दई, देस म जतका झिन जनता हे जम्मो अजाद हे। डोकरी दई मुहुं ला फार दीस – अई …… हमन सोंचत रेहेन के, देस म फकत बड़े मनखे मन अजाद होही…..। तहूं ल ओतकेच अजादी हे जतका बड़े मनखे ल हे – सरपंच जवाब दे लागीस। डोकरी दई पूछे लागीस – तैं ये बता सरपंच, हमन सहींच म ओतके अजाद हन जतका बड़का मनखे मन हे ….? सरपंच किथे – हव डोकरी दई ओतकेच …। डोकरी दई एकदमेच सीरियस होके पूछे लागीस – त मेंहा कनहों रसदा म सुते मनखे ल, अपन गाड़ी बइला म चपक के मार सकथंव ? मेहा जंगल जाके, कनहो पसु के सिकार कर सकत हंव ? अऊ अतका करके, गांड़ा कस बछवा, छेल्ला किंजर सकत हंव। सरपंच किथे – निही दई, दूनों बूता नी कर सकस …। डोकरी दई किथे – त मेंहा कती करा अजाद हंव ? सरपंच समझइस – बने काम करे बर अजादी मिले हे डोकरी दई…..।



डोकरी दई पूछीस – का बने काम करंव तिहीं बता….., का गराम पंचइत म, लबारी मरइया मन के टेंटवा मसक सकथंव ? का बईमानी करइया इंजीनियर ल, नऊकरी ले निकलवा सकथंव ? फरेब करके गरीब मनखे के जगा भुंइया ल, दूसर के नाव करइया तहसीलदार ल, सजा देवा सकथंव ? येमन ल संरकछन देवइया बिधायक ल, ओकर अऊकात बता सकत हंव ? संसद म बइठके, जहर घोरइया मनखे के हाथ ले, जहर नंगा सकत हंव ? सरपंच मुड़ी गड़िया के किथे – तैं कुछ नी कर सकस डोकरी दई। अतका के करत ले तुहीं ल जेल हो जाही। डोकरी दई किथे – मेंहा जानत हंव बेटा, नियाव के रद्दा म रेंगइया मनखेच बर, इहां जेल बने हे। बईमान, दुराचारी मन सान बघारत बाहिर मटकत हे। अब तिहीं बता हमन कती करा अजाद हन ? अऊ हमन अजाद नियन त कहूं फेर, झंडा फहराये के बेरा, कन्हो हमर जान ले दिहीं तब …. ?
डोकरी दई ल, सरपंच भरमाये लागीस – तहूं अजाद हो जबे दई, फेर एक सरत हे। डोकरी दई पूछीस – का ? सरपंच जवाब दीस – तोला टोपी पहिरे बर लागही दई, झंडा फहराये के बेरा, तोर मुड़ी म टोपी मढ़ा देबो, तहन तहूं, उही बेरा ले अजाद हो जबे। तैं जेन बूता करना चाहबे, बिगन कन्हो रोक टोंक के कर सकत हस। डोकरी दई किथे – अई …. झंडा फहराये बर, टोपी घला पहिरे लागथे, अभू तक ……। टोपीच के सेती तोर बबा, ओतका भीड़ म असानी ले चिनहागे रिहीस अऊ गोली के सिकार होये रिहीस, तूमन फेर कन्हो गरीब ल टोपी पहिरा के मारना चाहत हव ……..। मय न तो तुंहर टोपी ल पहिरंव, न झंडा फंहरावंव। सरपंच किथे – दई तैं नी जानस या …..अभी हमर देस म सिरीफ टोपी पहिरइया मन सुरकछित हे दई …….। तैं एक बेर पहिरके तो देख …….।



दई केहे लागीस – मेंहा टोपी घला पहिर लेहूं, फेर मोर बर सादा सचाई के टोपी लान, झंडा घला फहराये बर चल दूहूं फेर साफ, सुथरा, आरूग झंडा के बेवस्था तो कर….। सरपंच किथे – तोर फहराये बर नावा झंडा बिसाये हाबंव डोकरी दई ….। डोकरी दई किथे – उहीच तो बात हे सरपंच, येमे लगे दागी, तूमन ला दिखथे कब ? हमर पुरखा के झंडा ल देखे हव कभू ? सरपंच हांसत किथे – वो तो कब के चिरागे दई …..। डोकरी दई तमतमागे – वो चिराये निये बेटा, ओला चिरे गेहे। ओला दागदार बनाके, कभू कसमीर, कभू असम, कभू गुजरात, कभू केरल म, रात दिन चिरथव। चिरहा झंडा के काये कतेक सान, ओला मे काये फहराहूं ? नावा झंडा ल सरपंच हेर के जइसे देखइस …..सुकुरदुम होगे उहू हा ….। धियान से देखीस, जगा जगा ले मइलहा, जगा जगा दाग ….. कतको जगा चिरहा ……टप्पर…? सरपंच किथे – अरे ……. दुकानदार मुही ल बेवकूफ बना दीस का रे ? डोकरी दई किथे – दुकानदार नी बनाहे बेटा, तूमन जनता ल बनावत हव…..। तुंहर हाथ परतेच साठ, झंडा म दाग लग जावथे बेटा…….। कभू भरस्टाचार, कभू बइमानी, कभू आतंक, कभू झूठ, कभू फरेब के दाग तूहीं मन लगाथव। मोर बर आरूग झंडा ले आन, में नी फंहराहूं त कहिबे। मइलहा, दागी, फटहा झंडा झिन टेका हमर आगू म। तोर बबा दगदग ले उज्जर झंडा फहरावत अपन जान दे दे रिहीस। ओकर बलिदान ल अभीरथा नी होवन दंव। सरपंच भटकत हे – ये दुकान ले वो दुकान, ये गांव ले ओ गांव, ये जिला ले वो जिला, ये परदेस ले वो परदेस, जगा जगा खोज डरीस, कहूं नी पइस साफ सुथरा झंडा। डोकरी दई के हाथ ले झंडा फहरवाये के साध
अभू तक अधूरा हे ? कोन जनी कब फहरही अइसन झंडा ……….?

हरिशंकर गजानंद देवांगन, छुरा
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