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कविता

कइसे बचाबो परान

ठगुवा कस पानी ठगत हे, मूड़ धरे बइठे किसान
ये बिधाता गा मोर कइसे चाबो परान
एक बछर नाँगर अऊ बइला ला बोर बोर,
ओरिया अऊ छान्ही ले, पानी गली खोर,
खपरा बीच बोहावै, ना ये भाई, खपरा बीच बोहावय
रद रद, रद रद रोंठरोंठ रेला मन,
बारी के सेमी बरबटटी करेला मन
लहुरटुहुर धाँयधुपुन जावय ना ये भाई लुहुरटुहुर धांयधुपुन जावय
ये हो भइया गा मोर, पूरा के बड़ नुकसान ।।
ये बिधाता गा मोर कइसे बचाबो परान ।।
लागे नौटप्पा कस, एसो के सावन में,
गोड़ जरै भोम्हरा कस, भादों के नहावन में,
दुब्बर बर दू असाढ़े, ना ये भाई दुब्बर बर दू असाढ़े
बीजहा भुँजावै रे खेत सुखावै रे
लइकन अऊ महतारी, जम्मो बोंबियावै रे
अँगरा मां ठाढ़ेठाढ़े, ना ये भाई अँगरा मा ठाढ़ेठाढ़े
ये हो भइया गा मोर, काबर रिसाए भगवान
ये बिधाता गा मोर कइसे बचाबो परान ।।
बिधि के बिधाने मां, परबस के माने मां,
धाने के पाने अऊ संझा बिहाने मां,
कीरा के पीरा समागे ना ये भाई, कीरा के पीरा समागे
साँस के समोना अऊ जिनगी के दोना में,
माहू के रोना अऊ बदरा के टोना में,
जम्मो किसानी नँदागे, ना ये भाई जम्मो किसानी नँदा गे
ये हो भइया गा मोर, पीरा हर होगे जवान

ये बिधाता गा मोर कइसे बचाबो परान ।।

मुकुन्‍द कौशल