कईसन राज ये कका ये का होवत हे,
ठुड़गा ह हासत हे अऊ हरियर मन रोवत हे।
माते मतवना पियत हे दारू,
सरकार खोलत हे जगा जगा दूकान तको दुलारू।
कतको अपटही कतको मरही,
फेर अंधरा मन ल नईये संसो ककरो समारू।
अभिचे सुने हौव झोला छाप मन ल तको तंगावत हे,
नई पढ़े लिखे ये तेकरो करा दवई बटवावत हे।
गाँव म जाहू पता चलही,झोला छाप के उपकार ह,
पुछहूँ जनता ल तभे तो बताही अंधरा सरकार ल।
अपने अपन नियम कानून लादत हे,
मरत हे तेला अऊ मारत हे।
रमन तोर राज म का होवत हे,
न मरत हन न मोटावत हन।
तभो ले कका तुहीं ल सहरावत हन,
अब तो आही बने दिन कईके,
बाट जोहत मुड़ धरे पछतावत हन।
विजेंद्र वर्मा ‘अनजान’
नगरगाँव (रायपुर)
One reply on “कईसन राज ये कका”
वाह दाऊ जी लगे रहो