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कविता

कईसन राज ये कका





कईसन राज ये कका ये का होवत हे,
ठुड़गा ह हासत हे अऊ हरियर मन रोवत हे।
माते मतवना पियत हे दारू,
सरकार खोलत हे जगा जगा दूकान तको दुलारू।
कतको अपटही कतको मरही,
फेर अंधरा मन ल नईये संसो ककरो समारू।
अभिचे सुने हौव झोला छाप मन ल तको तंगावत हे,
नई पढ़े लिखे ये तेकरो करा दवई बटवावत हे।
गाँव म जाहू पता चलही,झोला छाप के उपकार ह,
पुछहूँ जनता ल तभे तो बताही अंधरा सरकार ल।
अपने अपन नियम कानून लादत हे,
मरत हे तेला अऊ मारत हे।
रमन तोर राज म का होवत हे,
न मरत हन न मोटावत हन।
तभो ले कका तुहीं ल सहरावत हन,
अब तो आही बने दिन कईके,
बाट जोहत मुड़ धरे पछतावत हन।

विजेंद्र वर्मा ‘अनजान’
नगरगाँव (रायपुर)






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