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कविता

कलेवा

ये ह, छत्तीसगढ़ के कलेवा आय।
तिहार बार के रोटी-पीठा आय॥
अइरसा, अंगाकर रोटी, इडहर, कढ़ी।
करी लाड़ू, कोचईपाग, कोचईपीठा, पपची॥
खस्ता, खाजा, खुरमा, खुरमी।
गुलगुला, गुरहाचीला, गुरहा भजिया, कुसली।
चीला नूनहा, चौसेला, घुघरी, ठेठरी।
डुबकी, बफौरी, डुबका, दूधफरा।
तुमापाग, तिलगुझिया, तसमई, कतरा।
दुधकुसली, देहरौरी, तुमा तसमई, दही बरा॥
नमकीन, नूनहाकरा, नूनहाचीला, पूरनपूरी।
पापड़ी, पापर, पकुवा, पनकरी॥
बुदिंया, पनबुदिंया, बुदिंयालाड़ू, बोबरा।
भजिया, मिर्चीभजिया, प्याजीबड़ा, मालपुआ॥
मुरकू, मुगौड़ी, मूंगकतरा, मूंगबड़ा।
मोतीचूर, मुर्रालाड़ू, रखियापाक, हलुवा॥
रेहनकतरा, तिखुरकतरा, लपसी, सिंघाड़ा कतरा।
सेवई, सोंहारी, रसगुल्ला, मोहनभोग॥
जलेबी, गुरहाचीला, तिललाड़ू, तिलपापड़ी।
सलौनी, चिरौंजी, लाई, बेसनपापड़ी, बेसन सेव॥
छत्तीसगढ़ के तसमई-सोंहारी, अड़बड़ सुहाथे ग।
छत्तीसगढ़ के भाखा बोली, बड़ नीक लागथे ग॥

द्वारिका चन्द्राकर ‘मण्डल’