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कविता: कुल्हड़ म चाय

जबले फैसन के जमाना के धुंध लगिस हे
कसम से चाय के सुवारद ह बिगडिस हे
अब डिजिटल होगे रे जमाना
चिट्ठी के पढोईया नंदागे
गांव ह घलो बिगड़ गे
जेती देखबे ओती डिस्पोजल ह छागे
कुनहुन गोरस के पियैया
“साहिल” घलो दारू म भुलागे
आम अमचूर बोरे बासी ह नंदागे
तीज तिहार म अब फैसन ह आगे
पड़ोसी ह घलो डीजे म मोहागे
का कहिबे मन के बात ल
अब अपन संगवारी ह घलो मीठ लबरा होगे
जेती देखबे ओती
मोबाईल ह छागे
घर म खुसर फुसुर
अउ खोल म खुलखुल हे
जबले डिपोजल आये हे
कुल्हड़ म चाय गिंगियावत हे
गांव म घलो
फैसन ह रंग जमावत हे
पड़ोसी बिहिनिया ले
मोबाईल म खुस फुसावत हे
घेरी बेरी अपन फोटो ल अपनेच ह
खींच खींच के मुस्कुरावत हे

लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
कोसीर सारंगढ जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़