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कविता : मन के मोर अंगना म





सखी रे ! बसंत आगे
मन के मोर अंगना म
कोयल भुलागे अपन बोली
बर-पीपर के पान बुडगागे
अबीर धरे धरे हाथ ल गंवागे
पिया के संदेसा बाछे बछर बीत गे
कब आही मोर मयारू
सपना मोर अबिरथा होगे
गुरतुर गोठ अब सुहावे नही
पिया के संदेसा बाछे बछर बीत गे
दरपन मोला भावे नही
कंकन के अवाज
काजर अउ fबंदिया सुहावे नही
सखी रे ! बसंत आगे
जिनगी मोर अबिरथा होगे
पिया के संदेसा बाछे बछर बीत गे

लक्ष्मी नारायण लहरे साहिल
युवा साहित्यकार पत्रकार
कोसीर सारंगढ