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कविता

किसान

रदरद रदरद गिरगे पानी, चूहे परवा छानी ।
ठलहा काबर बइठे भइया, आगे खेती किसानी ।
ये गा किसान, कर ले धियान चलव खेत चलव गा ।
नांगर जुवाड़ी ल जोर के भइया, धर ले बिजहा धान ।
अदरा अदरा बइला हावय, होथे हलाकान ।
अब होगे बिहान , जल्दी उठव किसान चलव खेत चलव गा ।
झउहा रापा कुदारी धर के, चलव दीदी लइका सियान ।
खातू गोबर ला खेत मा डारव,खनव दूबी कांद ।।
बांधव मेड़ बंधान, करव मेहनत जी जान चलव खेत चलव गा।।
राहेर कोदो कुटकी बोवव ,बोवव सोयाबीन धान
अषाढ महिना लग गे भइया ,जुर मिल के करव काम ।।
तेही सबके परान,भूंइया के भगवान चलव खेत चलव ग।
ये गा किसान —————————।।

मालिक राम ध्रुव
मु पो -पंडरिया
जिला -कबीरधाम (छत्तीसगढ़ )