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कहानी

गाय निकलगे मोर घर ले

समारू आज गजबेच अनमनहा हे। 40 बच्छर ले जौन कोठा म पैरा, कांदी, भुसा, कोटना म पानी डारत रहिस ओ आज सुन्ना परगे। पांच बच्छर के रहिस तब ले अपन बबा के पाछू पाछू कोठा म गाय बछरु ल खाय पिये के जिनीस देय बर, गाय ,बछरु , बईला, भईसा ल छोरे बर सीख गे रहिस। बिहाव होईस त गऊअसन सुवारी पाईस। कम पढ़े लिखे रहिस त दूनो के खाप माढ़ गे। छै ठन पिलहारी गाय, दू ठन बईला ,दू नंगरजोत्ता भंईसा 4-6 ठन छोटे मंझोलन बछिया बछवा सबो के गोबर कचरा ल दूनो परानी समिलहा करे ।गांव म सबो के घर इही हाल राहय।गंऊटिया , पटेल, दाऊ अऊ मालगुजार मन घर दूध के नदिया बोहावय।कभू राऊत ह नई आवय त समारु के बुलावा गाय दूहेबर आवय।वो हा एकठन नोई राखे राहय।गरमी के दिन म राऊत छोड़ दय त समारु गरवा छेकेबर जावय।समारु के तीन बेटा अऊ दू बेटी होईस। बेटा बेटी ल घलाव गाय गरु के सेवा सीखाईन संगेसंग पढ़े लिखेबर इस्कूल भेजिस।सबो लईका मन हुसियार रहिस, बनेच पढ़लिख के नऊकरी घलो पा लिन। समारु अपन बेटी मन के बिहाव बने घर में समधी बना के नऊकरी वाला दमांद संग करा दिन।नऊकरी वाला लईका मन बर बने पढ़ेलिखे नई ते नऊकरी वाली बहू लाहूं कहिके खोजबीन करिस।भागमानी रहिस ओला बड़े बहू कालेज पढ़ेलिखे, मंझली बहू नरसबाई अऊ सबले छोटकी ह मास्टरिन मिलगे। नऊकरी वाला लईका मन के बिहाव जैईसने उछाह मंगल से होयके चाही वैईसने होईस। समारु के घर लक्ष्मी ,अनपूरना मन आय हे त काय के कमती, ओकर माटी के घर ह टाईल वाला घर म बदले लगिस। पीछू के गरवा कोठा ल कतको नहीं कहे ले गच्छी वाला बनायबर परिस। बहू बेटा मन का-का नई सुनाईस फेर समारु अऊ ओकर गोसाईन कान नई धरिस।अपन गाय गरु के सेवा करत जिनगी सुख से काटत रहिन। बेरा आईस बेटा बहू मन संग ल छोड़ के जावत गईन। गांव म अईसने एक घर नई बहुतेच घर केे हाल रहिस। पढ़ेलिखे नवा बहू मन गाय के गोबर कचरा उठाय बर नई धरय।घर के मोहाटी ह सिरमीट के होय ले लिपे के झंझट ले छुट्टी मिलगे। गांव म अब नवा गाय गरु देखेबर नोहर होय लगिस। 8-10 बच्छर होय हे जिंकर घर के कोठा गायगरु ले भरे राहय अब उहां गिनती भर के दिखत हे। पुरखा के गरवा मन दिन बादर पूरो के अपन धाम म चल दिन। मालगुजार, पटेल,दाऊ सबो ल पाहटिया नई मिलत हे।ऊंखरो मन ऊचाट होगे।सब गाय गरु ल कोचिया मन कर बेचत हे।कोचिया कहां ले जावत हे कोनो ल खभर नई हे। बेरा निकलत पता नई चलय। अब समारु के नाती नतनीन आ गेहे,ओमन सहर म रथे,अंगरेजी इस्कूल म पढ़ेबर जाथे। सहर जादा दूरिहा नई हे फेर बहूबेटा मन दुरिहा गेहे। तिहार बार बर सकलाथे त अपने अपन मन गाय गरु अऊ कोठा ल देख के छिनमिनात रथे। अब देवारी तिहार म खिचरी खवाय ल रसम मान के निभावत हे। एक दिन छोटकी बहू मास्टरिन ह अपन सास कर कही दिस, गाय मन ल बेंच नई देतेव मां, अब तो दूद ,दही,मही, घीव सबो दुकान म बेचाथे। ले ले के खातेव।ओकर गोठ म नाती नतनीन मन पूरोनी मार दिन- हां दादी !”इहां आने से गोबर गोबर बदबू आता है” गोसानिन चूप रहिगे, जौन बछिया ल जनमधरिस तौन दिन ले पाले पोसे हंव आज ओ ह मोर घर म गरु नई होय। गांव म जतका घास भुंईया रहिस तौन अबादी अऊ अतिक्रमन म चल दिस। चाराचरे के जगा नई बाचीस। खेती खार म रसायनिक के परयोग ले पेरा भूसा खाय के लईक नई रहिगे। गरमी म तरीया के पानी अटा जथे। अब समारु के घर बैईला,भैईसा बछरू बछिया नई हे एक ठन पिलहारी ल दूनो परानी संग संगवारी कस राखे हे। गांव म एसो भागवत कथा होईस , कथा कहईया ह बृंदाबन ले आय रहिस। एक दिन गऊ कथा काहत सब ल हमर देस के पुराना जमाना के कथा बताईस। अऊ अपन गौसाला म राखे 3000 गाय के बिसय म बताईस। घोसना कराईस कि जौन अपन घर म गाय नई रख सकय ओमन हमन ल अपन गाय ल दान कर देवय। अऊ कोनो पून कमाय बर 1100 रुपया गाय सेवा बर दान कर सकत हे। गांव के कतको मनखे पईसा कूढ़ो दिन। पईसा देवईया म सहर ले आय मंतरी , अधिकारी, करमचारी,सेठ साहुकार मन सबले जादा रहीन।जौन अपन घर म हजारो रुपया के कुकुर पोसे हावय। रोज ओखर खाय पिये बर सौ-दूसौ खरचा करत हे ओ हा एकठन गाय नई पाल सकय। आखिर दिन समारु के बेटा-बहू नाती -नतनीन बेटी दमांद अऊ ऊंखरो लईका मन जम्मो सकलाईन। कथा सने के पाछू रातकन एके जगा सुतीन बईठीन। गोठेगोठ म नरसबाई अऊ मास्टरिन ह कहिन कि हमर गाय ल संत मन ल गोसाला बर दान कर देतेव। अऊ ये कोठा ल दूमंझला बना लेतेन। थोरिक दूरिहा म ऊही मेर ओ गाय घलो बंधाय राहय जौन उंखर गोठ ल सुनत राहय। रात बितीस बिहनिया गोबर कचरा करेबर गोसानिन गईस त देखते कोठा म न गोबर हे, न गाय बछरु। दऊड़त आके समारु कर हियाव करथे। समारु कथे -लईका मन संग बेंझा के गाय ल बांधेबर भुलाय होहूं। आज अठोरिया बीत गे गाय लहुटे नई हे , समारु बहूमन के रातकन के गोठ के सुरता घेरीबेरी करत हे।मोर कर बताईस गाय निकलगे मोर घर ले, ओकर सेती मोर मन अनमनहा हे।
आज टीवी के हर चैनल म सुने बर मिलथे, गाय के रच्छा करव,गोसाला बनाव, गो सेवा बर दान करव।फेर कोनो घर घर म गाय पाले अईसे ऊदीम नई बतावत हे, सब जानत हे गोबर कोन उठाही, पैरा कोन देही,पानी कोन भरही, सबला सुन्दर साफ सुथरा रहे के निसा चढ़गेहे। पाकिट वाला दूध पीके भले हमर भविस्य मन कमजोर हो जाय या मर जाय। फेर हमर घर ले गाय निकलना चाही। हमर देस म दूध के नदिया कब बोहाही ,कब घरोघर गाय होही अब सपना हे।

हीरालाल गुरुजी” समय”
छुरा, जिला- छत्तीसगढ़