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दोहा

चैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 4 : अरुण कुमार निगम


बम्लेस्वरी बल दान दे, मयं बालक कमजोर।

तोर किरपा मिल जाय तो, जिनगी होय अँजोर।। ओ मईया ……

दंतेस्वरी के दुवार मा, पूरन मनोरथ होय।

सुन के मयं चले आय हौं, मन-बिस्वास सँजोय।। ओ मईया ……

अरज करवँ माँ सारदा, दे शक्ति के दान।

तयं माता संसार के, हम सब तोर संतान।। ओ मईया ……

सुमिरत हौं समलेश्वरी, संकट काट समूल।

तोर चरण अर्पण करवँ, मन सरधा के फूल।। ओ मईया ……

माँ अम्बे झुलना झुलय, अमरैय्या के छाँव।

सरधा भक्ति माँ झूम के, झुला झुलावे गाँव।। ओ मईया ……

नगर डगर,हर गाँव गली, नवराती के धूम।

कोन्हों गावयं आरती, कोन्हों नाचे झूम।। ओ मईया ……

गाँव शहर नवराती मा, मंडप-मंच सजाय।

नर-नारी सरधापूर्वक, मूरत तोर मड़ायं।। ओ मईया ……

गली गली झिलमिल झालर, सरधा भक्ति के गीत।

तीरथ जइसे चारों मुड़ा, लागय परम पुनीत।। ओ मईया ……

झाँकी कहूँ सजाय हें, कहूँ मड़ई के जोर।

गली-गली गमके गूंजै, जय माता के सोर।। ओ मईया ……

अरुण कुमार निगम



सरलग …

One reply on “चैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 4 : अरुण कुमार निगम”

जस-गीत के भारी महिमा हावै । सुघ्घर गीत ।

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