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छत्तीसगढ़ी भाषा म बाल-साहित्य लेखन के संभावना अउ संदर्भ

laikaआज जोन बाल-साहित्य लिखे जात हे ओला स्वस्थ चिंतन, रचनात्मक दृष्टिकोण अउर कल्पना के बिकास के तीन श्रेणियों म बांटे जा सकत हे। चाहे शिशु साहित्य हो, बाल साहित्य हो या किशोर साहत्य, ये तीनों म आयु के अनुसार मनोविज्ञान के होना जरूरी हे। बाल साहित्य सैध्दांतिक आधारभूमि ले हट के बाल मनोविज्ञान म आधारित हो जाए ले बच्चामन के बिकास बदलत परिवेस म सामंजस्य बइठाये म सहायक हो सकथे, जोन छत्तीसगढ़ी साहित्य अभी हमर आगू म हे ओकर लेखन-विचार प्रक्रिया म विषय वस्तु के रूप म सामाजिक विसंगति, जनचेतना, सामाजिक रूढ़ता, प्रकृति वर्णन, इतिहास, संस्कृति, धार्मिक मान्यता आदि अनेक साहित्यिक पक्ष ल आगू रखके लिखे गे हे। फेर ये लेखन-विचार प्रक्रिया म बच्चा मन ह केन्द्र म नइ आ पाए हे। इही कारन हो सकत हे कि छत्तीसगढी साहित्य-संसार म बाल साहित्य के अभाव दिखथे। राय बने के बाद छत्तीसगढ़ी भासा ल स्कूली पाठयक्रम म समोय बर पहल करे गिस। समाज ले मांग उठे लागिस कि छत्तीसगढ़ भासा ह अब राजभासा के दर्जा पा ले हे, तब येला स्कूली शिक्षा के पाठयक्रम ले शामिल करे जाए। सही म ये ह अपन मातृभाषा के प्रति सनमान अउ मोह आय।

कोनो भी भासा ल या विषय ल पाठयक्रम म जोड़े के प्रक्रिया म पाठयपुस्तक निरमान एक जोरदार हिस्सा होथे। शिक्षण के शुरुआत बर पाठयक्रम के बात आगू आथे। पाठयपुस्तक कइसे लिखे जाए, ओमा कोन-कोन बात समोय जाए अउ बहुत जम्मो बात म बिचार करे गिस। ये पहल के परिनाम सरूप पाठयपुस्तक लिखे के काम शुरू करे गिस। पाठयपुस्तक लिखे बर छत्तीसगढ़ी साहित्य ल खंघाले के काम शुरू करे गिस। छत्तीसगढ़ी रचनाकार मन ल पूछे गिस। तमाम प्रक्रिया अउ बिचार के बाद एक बात महसूस करे गिस कि छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य म समृध्द बाल साहित्य अउर स्कूली लइका मन के पाठयपुस्तक के लाइक रचना अरथात् छत्तीसगढ़ी भासा म बाल-साहित्य लेखन के अपार संभावना हे। अइसे साहित्य जोन ल केवल बच्चा मन ल धियान म रख के लिखे गे होय।

अइसे तो छत्तीसगढ़ी भासा म बहुत से साहित्य लिखे गे हे अउर लिखे के प्रक्रिया सरलगहा चलत हे। जोन छत्तीसगढ़ी साहित्य अभी हमर आगू म हे ओकर लेखन-विचार प्रक्रिया म विषय वस्तु के रूप म सामाजिक विसंगति, जनचेतना, सामाजिक रूढ़ता, प्रकृति वर्णन, इतिहास, संस्कृति, धार्मिक मान्यता आदि अनेक साहित्यिक पक्ष ल आगू रखके लिखे गे हे। फेर ये लेखन-विचार प्रक्रिया म बच्चा मन ह केन्द्र म नइ आ पाए हे। इही कारन हो सकत हे कि छत्तीसगढी साहित्य-संसार म बाल साहित्य के अभाव दिखथे।

साहित्य जगत म बाल-साहित्य नइ होय के बहुत अकन कारन हे। जइसे बाल साहित्य लेखन ल दूसरा दर्जा के साहित्य लेखन मानना, बच्चामन ल समाज के अनिवार्य अंग नइ मानना, व्यावसायिक जगत म बाल-साहित्य प्रकाशन घाटा के सौदा मानना रचनाकर अउ प्रकाशन दूनों उदासीन होना, अउ अब तक शिक्षण के माध्यम से हिन्दी के होना, बाल साहित्य ला पूरा प्रोत्साहन नइ मिलना आदि।

उत्कृष्ट बाल-साहित्य नइ होय के कारन खोधियायले जान पड़थे कि बहुत अकन बाल साहित्य के लिखइया मन ल लइका के मानसिकता अउ बाल मनोविज्ञान के बने ढंग ले गियान नइ होना भी हो सकत हे। आज बाल-साहित्य के क्षेत्र म देश दुनिया म प्रकाशित होवत बाल साहित्य के संदर्भ अउ सरूप ल भी जाने आवस्यकता के संग-संग छत्तीसगढ़ी म बाल साहित्य लेखन के दिसा म नवा परम्परा के विकास करे के आवस्यकता हे।

बाल-साहित्य लिखे बर लिखइया मन ला बाल-साहित्य के सरूप व सुभाव जाने समझे ल पड़ही अउ लइका मन बर सरलगहा लिख के छपवाय ल पडही। ये बात सच कि बाल साहित्य लिखना एक कठिन काम हे। बाल सखा के भूतपूर्व संपादक लल्ली प्रसाद पांडेय कहिथे- ‘बाल साहित्य उही लिख सकथे जोन अपन आप ल बच्चा जइसे बना लिही। बड़े होके बच्चा बनना मुश्किल हे अउर ओकर ले बिकट मुश्किल हे बच्चा बनके उंकर लाइक लिखना। इही पाय के जोन भी बच्चा मन बर लिखथें, वो एक पवित्र काम करथे उंकर काम ह साधना के काम हे।’

‘मनोरंजन बाल-साहित्य के एक प्रमुख अंग हरे। सही म उही साहित्य-बाल साहित्य कहलाये के हकदार हे जोन साहित्य ले बच्चामन के मनोरंजन हो सके, जेमा वो मन रस ले सकें अउ जेकर ले उंकरे भावना ल अउर कल्पना ल आकार मिल सके।’

बाल साहित्य लेखन के संदर्भ में मोर कहना हे कि ‘जोन भी बाल-साहित्य के सिरजन करे, वो बच्चा मन के बौध्दिक अउ सामाजिक बिकास ऊपर जोर दे ताकि वो ह सही पर्यावरन पाके सुभाविक रूप ले अपन व्यक्तित्व के विकास कर सकें। सबो जानथे कि बचमन म जन्मजात कई ठन प्रवृत्ति अउर प्रतिभा होथे जो जोन हा समय पाके फुलथे-फरथें।’
बाल-साहित्य कहे के मोर मतलब हे- ‘बाल साहित्य वो जोन बच्चामन ल चिंतन, कल्पना, तर्क, विश्लेषण अउर बिकास के बिचार दे म सक्षम होय।’

सही म ‘बाल साहित्य बच्चामन बर एक अच्छा मार्गदर्शक होथे। बच्चा मन के दुनिया अउ बड़े मन के दुनिया अलग होथे। उंकर अपन स्वतंत्र व्यक्तित्व होथे।’ स्कूली साहित्य ल हम पूरा-पूरा बाल-साहित्य नइ कही सकन। स्कूली साहित्य म राज, देस अउ समाज के सरोकार होथे, ये सरोकार के लइका मन के दुनिया ले कोई सरोकार नइ होए। जोरदरहा बाल साहित्य उही हरे जोन बच्चा मन के जीवन अउ मनोभाव जुड़े होय।

बाल साहित्य सिरजनहार पं. सोहनलाल द्विवेदी कहिथे- ‘सफल बाल साहित्य उही हरे जेला बच्चा मन सरल ढंग ले अपना सके अउर भाव अइसे हो कि जोन बच्चा के मन ल भाये। बच्चामन के बात बच्चामन के भासा म लिख दें, उही सफल बाल साहित्य के सच्चा लेखक हरे।

बाल साहित्य लेखन के सबले बड़े कसौटी ये हरे कि रचनाकार जोन बिसय के चयन करे ओकर सोझे संबंध सीधा बच्चा मन ल हो। बाल साहित्य अइसे हो जोन बच्चा मन के मन म सहज उत्सुकता जगाय, कुतुहल पैदा करे, अउर जाने के इच्छा ल जनम दे। बाल साहित्य अइसे होय कि लइका मन के भीतरी म नवा चेतना ला सके।

सही कहे जाए त बाल साहित्य के उद्देश्य लइकामन के व्यक्तित्व के निर्माण करना, अउर उकर मानसिक व वैचारिक विकास बर उचित दिसा देना हरे। इही पाय के लइका मन के भावात्मक विकास अउर संविगिक परिपक्वता ल धियान म रख के साहित्य लेखन करे बर चाही जेकर ले बच्चामन म आशावादी बिचार अउ आत्मनिर्भरता के भाव के विकास हो सके।

बाल साहित्य म प्रेम के परदर्शन मानव परेम, प्रकृति परेम, देश परेम के रूप म होय, क्रोध के परदर्सन, अत्याचार, अउ अनाचार के विरोध के रूप म, भय के जनम अनैतिक अमानुषिक विचार अउ काम के प्रति दुराव के भावना म दिखना चाही। बाल साहित्य म दंड, आतंक, हिंसा, प्रतिशोध अउर क्रूरता के स्थान पर परेम सहानुभूति, सहयोग अउ कोमलता के उदाहरण मिले ल चाही। जेला पढ़के बच्चामन के भीतरी म आत्मसम्मान अउ महत्वाकांक्षा के भाव जागे।

श्री शंकर सुल्तानपुरी के कहना हे ‘बच्चामन बर लिखे के पहिली ये समझ लेना जरूरी हे कि बाल साहित्य के नाम म हमन जोन लिखथन वो कोन आयु वर्ग बर हरे, शिशुमन बर बच्चा मन बर या किशोर मन बर।’

आज के बच्चामन के कौतुहल कल्पना, मांग के पहिली के बच्चा मन के कौतुहल ले बहुत अलग हे अउर बिस्तार भी। पहिली जिहां बाल साहित्य ल जिहां कथा-कहानी म सीमित रिहिसे अब वो हा ज्ञान-विज्ञान के अनेक प्रश्न के साथ कल्पना के पंख लगा के उड़त हे। आज कथा-कहानी के शैली हर हट के हे। जिज्ञासा शांत करे के बहुत तरह के लेख, निबंध आदि के समावेस हो गे हे। आज के लइका कार्टून कॉमिक्स के दुनिया मा घुस गे हे। बच्चामन के गला उही उतरथे जोन उनला रुचिकर होथे। आज के बच्चामन बर जोर साहित्य लिखे जात हे। ओमा बहुत बिबिधता आगे हे अउ ये लिखना बहुत कठिन काम होगे हे। इकर तुलना जादू ले करे जा सकत हे। जोन अपन दर्शक मन ल चमत्कृत करथे। बच्चा मन बर पुस्तक लिखना तको जादू के भांति होथे। येमा अइसे जादू होथे कि जोन साहित्य के परिभासा की ऊपर होथे। बच्चामन के कल्पना हर अगास कस होथे जेला छूना सबो के बस के बात नोहे।

आज जोन बाल-साहित्य लिखे जात हे ओला स्वस्थ चिंतन, रचनात्मक दृष्टिकोण अउर कल्पना के बिकास के तीन श्रेणियों म बांटे जा सकत हे। चाहे शिशु साहित्य हो, बाल साहित्य हो या किशोर साहत्य, ये तीनों म आयु के अनुसार मनोविज्ञान के होना जरूरी हे। बाल साहित्य सैध्दांतिक आधारभूमि ले हट के बाल मनोविज्ञान म आधारित हो जाए ले बच्चामन के बिकास बदलत परिवेस म सामंजस्य बइठाये म सहायक हो सकथे।

ऊपर लिखे बिचार ल आगू रख के छत्तीसगढ़ी भासा म बाल साहित्य लिखे के अपार संभावना दिखथे। बात हे इहां के जम्मो प्रबुध्द लिखइया मन ल ये छेत्र ल प्राथमिकता ले उठाय के। बाल साहित्य के सोझे संबंध बच्चामन के भासा बिकास से हे। भासा अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम हरे। बाल साहित्य के सोझे संबंध छत्तीसगढी भासा के बिकास ले हे। जब बच्चामन ल अपन भासा म साहित्य पढ़े ल मिलही तब अपन भासा के प्रति बिस्वास अउ मया जागही। अपन भासा ऊपर गरब कर सकही। ये क्षेत्र म केवल रचनाकार मन ल नहीं प्रकाशक अउ पाठक मन ल भी सोचे परही।

बलदाऊराम साहू
शंकर नगर रायपुर

*फोटू गूगल खोज ले साभार