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आल्हा छंद

छत्तीसगढ़ के वीर बेटा – आल्हा छंद

महतारी के रक्षा खातिर,धरे हवँव मैं मन मा रेंध।
खड़े हवँव मैं छाती ताने,बइरी मारे कइसे सेंध।

मोला झन तैं छोट समझबे,अपन राज के मैंहा वीर।
अब्बड़ ताकत बाँह भरे हे , रख देहूँ बइरी ला चीर।

तन ला मोर करे लोहाटी ,पसिया चटनी बासी नून।
बइरी मन ला देख देख के,बड़ उफान मारे गा खून।

नाँगर मूठ कुदारी धरधर , पथना कस होगे हे हाथ।
अबड़ जबर कतको हरहा ला,पहिराये हँव मैंहा नाथ।

कते खेत के तैं मुरई रे, ते का लेबे मोला जीत।
परही मुटका कसके तोला,छिन मा तैं हो जाबे चीत।

आँखी कहूँ गड़ाबे बइरी,देहूँ मैं खड़ड़ी ओदार।
महानदी अरपा पइरी मा,बोहत रही लहू के धार।

उड़ा जबे बइरी तैं दुरिहा ,कहूँ मार परहूँ मैं फूँक।
खड़े खड़े बस देखत रहिबे,होवे नहीं मोर ले चूक।

मोर झाँक के आँखी देखव,गजब भरे हावय अंगार।
पाना डारा कस बइरी ला,एके छिन मा देहूँ बार।

हाथ गोड़ हा पूरे बाँचे ,नइ चाही मोला हथियार।
अपन राज के आनबान बर,खड़े हवँव मैं सदा तियार।

ललहूँ पटको कमर कसे हँव,चप्पल भँदई हावय पाँव।
अड़हा झन तैं कभू जानबे,छिन मा तोर बुझाहूँ नाँव।

भाला बरछी गोला बारुद ,भेद सके नइ मोरे चाम।
दाँत कटर देहूँ ततकी मा,मेटा जही सबो के नाम।

हवे हवा कस चाल मोर जी,कोन भला पाही गा पार।
चाहे कतको हो खरतरिहा,होही खच्चित ओखर हार।

जब तक जीहूँ ए माटी मा,बनके रइहूँ बब्बर शेर।
डर नइ हे मोला कखरो ले,का करही कोलिहा मन घेर।

जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया”
बाल्को(कोरबा)