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कविता

जाड़ भागत हे

जाड़ ह भागत हे जी,
गरमी के दिन आगे।
स्वेटर साल ल रखदे,
कुछु ओढे ल नइ लागे।
कुलर पंखा निकाल,
रांय रांय के दिन आगे।
घाम ह अब्बड़ बाढ़गे,
गरम गरम हावा लागे।
आमा अब्बड़ फरे हे,
लइका मन सब मोहागे।
चोरा चोरा के खावत लइका,
ओली म धर के भागे।।

प्रिया देवांगन “प्रियू”
पंडरिया
जिला – कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
Priyadewangan1997@gmail.com