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कविता गीत

जिनगी के बेताल – सुकवि बुधराम यादव

Budhram_Yadav“डोकरा भइन कबीर “-बुधराम यादव

(डॉ अजय पाठक की कृति “बूढ़े हुए कबीर ” का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद ) के एक बानगी
जिनगी के बेताल
एक सवाल के जुवाब पाके
अउ फेर करय सवाल
विक्रम के वो खाँध म बइठे
जिनगी के बेताल !

 

 

पूछय विक्रम भला बता तो
अइसन काबर होथे ?
अंधवा जुग म आँखी वाला
जब देखव तब रोथें

 

सूरुज निकलय पापी के घर
दर -दर मारे फिरय पुन्न घर
जाँगर टोर  नीयत वाले के
काबर हाल बिहाल ?

 

राजा अपन राज धरम ले
करंय नहीं अब न्याव
काबर के ओमा राजा के
गुन के नइहे छाँव

 

लोकतंत्र ह भइस तमासा
बगरिस चारों कती हतासा
सबके चेहरा चिंता चढ़गे
भीतर हवय हलाल !

 

राज खज़ाना के धन ले
सेखी  मारंय दरबारी
परजा ऊपर लादत हें  अउ
टेक्स के बोझा भारी

 

बोट  जीत डाकू हत्यारा
बइठे  जमो राज दरबारा
गरीब दुबर हें  भूखे -पियासे
नौकर धन्नालाल !

 

दूध अउ पानी बिलग करइया
अब ओ बरन कहाँ हें ?
मिले हावंय सरकार ले ओमन
जेकर लाभ, जिहाँ हे

 

बुधिजन अउ बिबेक रखइया
इंकर नइ हें कोनों सुनइया
बुझावत हें जुग ले थाम्हें
काबर जरत मसाल !

 

      -सुकवि बुधराम यादव

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