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व्यंग्य

जुग जुग पियव

भरे गरमी म , मंझनी मंझना के बेरा । जंगल म किंजरत किंजरत पियास के मारे मरत रहय भोलेनाथ । बियाबान जंगल म , मरे रोवइया नी दिखत रहय । तभे मनखे मन के हाँसे के अवाज सुनई दीस । अवाज के दिसा म पल्ला दऊड़िस । जवान जवान छोकरा छोकरी मन , रन्गरेली मनावत खावत पियत मसतियावत रहय । पहिली सोंचीस के ओकर मन के तीर म कइसे जांवव । पारवती मना करे रिहीस के , मनखे के रूप धर के झिन जा पिरथी म । जतका बेर तक मनखे बने के सनकलप ले रहिबे तेकर ले पहिली , वापिस नी लहुंटन दे बरम्हा जी हा । फेर भोलेनाथ कहां मानही काकरो बात । ओला तो गराम सुराज देखे के भूत सवार रहय । ओहा गराम सुराज के माडल ला सरग म लाने खातिर , तीर ले देखे बर पिरथी म अमरे रहय ।
भगवान सोंचत रहय , ऊंकर तीर म जाहूं ते ऊंकर मसती म बाधा पर जही । ओमन मोला देख के लजा जहीं । पियास के मारे टोंटा सुखागे रहय , बोले नी सकत रहय । फेर , मरता का नी करता । तीर म जाके येजी ….. ओजी….. पानी दुहू काजी….. केहे लागीस । कनहो धियान नी दीस । ओतके बेर भरर भरर बाजत टेप रिकाड के सेल सिरागे । सनगीत चुमुक ले बंद होगे तब , ओमन ला धियान अइस के , ऊंकर बीच अऊ कनहो दूसर मनखे घला हाबे । गारी बखाना करतीस तेकर पहिली , पियास के मारे भगवान ला भुइंया म उनडत घोनडत देखीस । कतको बेर के खुल्ला माढ़हे बोतल के पानी ला धरके , तीर म गीन । खुल्ला माढ़हे माढ़हे बोतल के पानी तात होगे रहय । भगवान के मुहूं म पानी जइसे परीस थोकिन चेत अइस । तात के मारे पिये नी जावत रहय , , धीरे धीरे आधा बोतल पानी पी डरीस । ओतका बेर ओ पानी बड़ सुहइस भगवान ला फेर , ओकर दिमाग खराब होये लागीस अऊ अपने अपन काये काये बड़बड़ाये बर धर लीस । अतका के होवत ले , भगवान के मनखे बने रेहे के टेम सिरागे , ओहा छटपटाये लागिस अऊ देखेते देखत , पुट ले मरगे । वापिस भगवान के रूप म आगे अऊ ओमन के करतूत ला जान डरीस के , जुड़ पानी ला अपन बर राख , तात तात पानी ला मोर मुहूं म डारीन हे येमन । फेर भगवान तो भगवान आय । ओहा अपन ऊप्पर पथरा मारने वाला ला घला मीठ फर देथे । मनखे मनला आसीरवाद देवत किहीस – जुग जुग पियव ।
मनखे मन भगवान ला उदुप ले , असली रूप म देखीन त सुकुरदुम होगे । सन खाके पटवा म दतगे । तभे बरम्हाजी खुद , भोलेबाबा बर अलग ले बिमान धरके पिरथी म अतरिस । भोलेनाथ अपन बिमान म बइठके चल दीस । बरम्हाजी घला अपन बिमान म चइघे बर , रेंगे लागीस तइसने म , एक झिन मनखे ओकर गोड़ ला धर लीस – जुग जुग जियव ला सुने रेहेन भगवान , ये जुग जुग पियव काये आसीरवाद आय , हमन समझेन निही । भगवान किथे – तूमन भोलेनाथ ला पानी पिया के बचाये हव तेकर सेती , तूमन ला कलजुग म , पियास म , मरे बर नी लागे । हां एक बात जरूर हे के , जइसे तूमन जगत के पालनहार ला पानी देहव तइसने , कलजुग म तुंहर पालनहार मन , तुंहर बर बेवस्था करही । ताते तात बोतल के पानी ला भगवान के मुहूं म रिकोये हव अऊ ओकर दिमाग ला खराब करे हव , तइसने कलजुग म तुंहर पालनहार के दिये बोतल के पानी ला जइसे पीहू , तुहंर दिमाग हा गरम होवत खराबेच होही अऊ जइसे भोलेनाथ हा छटपटावत अपन परान तियागिस तइसने तहूं मन ओला पीहू त छटपटा छटपटा के मरहू । बरम्हाजी अनतरधान होगे ।
कलजुग अइस । मनखे मन पियास के मारे , तहलबितल होये लागीन । बरम्हा जी के बरदान के पालन के समे आगे तब , सरसती माता , इहां के मुखिया मन के दिमाग म हमागे । उही दिन ले मनखे के पियास बुझाये बर सरकार बोतल म , कतको समे के खुल्ला पानी ला , अपन सरकारी दुकान ले बांटे लगीस । भगवान ला , ओ जुग म पानी पियइया जीव के परिवार वाले मन , इही पानी ला , घेरी बेरी पियत , अपन संग दूसर के जिनगी अऊ दिमाग खराब करत , छनिक सुख पावत , जिनगी बितावत , छटपटावत , मउत ला निमनतरन देवत , भगवान के “ जुग जुग पियव “ आसीरवाद ला परमानित करत हें ।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा