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कविता

तन मन होगय चंगा

छल प्रपंच के होरी जरगे छलकय निरमल गंगा
आते साठ बसंत राज के तन-मन होगय चंगा
जूही चमेली चंपा मोंगरा फुलगे  ओरमा झोरमा
केकती केवरा अउ गुलाब संग धरती गावय करमा
लाल-लाल दहकत हे परसा सेम्हर घलो इतरागे
कहर-महर सिरसा के फुलुवा थकहा जीव जुड़ागे
झमकय घाठ धठौंधा पैरी बाजय ढोल मृदंगा
आते साठ बसंत राज के तन मन होगय चंगा
मउहा टपकत हे घनबहेरा अउ सरसो पिंउरागे
खेत खार कोला बारी बनझारी तक हरियागे
जुन्ना पान पतेरा झरगे फुलडोंहड़ी छतरागय
लगथे सिरतो हमरो जिनगी नवा अंजोरी आगय
सुख सुमता के उठय हिलोरा रग-रग भरे उछंगा
आते साठ बसंत राज के तन मन होगय चंगा
दसो दिस मं किसम-किसम के चलय पवन पुरवइया
मयना सुवा परेवा कुहकय कोयली घन अमरइया
डूमर गस्ति लीम जाम अउ बर पीपर के छइयां
बछिया ला चांटत रम्भाथे बनके सुरहिन गइया
मजुरा तितुर बटेर बदक कुलकंय नाचय बिदरंगा
आते साठ बसंत राज के तन मन हो गय चंगा
रितु बसंत आये हे बनके सबके हित पिरितवा
पसु पंछी जिव जंतु नारी नर के हावय मन मितवा
बांटत हे मन चाही सबला नख सिख ले खुसहाली
सुख सागर फगुवा बसंत हे अग-जग के बनमाली
दुखिया दुख बिसरागे छागे सुख के लहर तुरंगा
आते साठ बसंत राज के तन मन होगय चंगा
कंद मुल फर खोखमा फुलगे फरियागय जलमोंगरा
ढ़ेंस पिकी निक लागय गुरतुर कंवल फुल के पोखरा
द्वार-द्वार म चऊँक पुरागे घर-घर सजे रंगोली
बीहा गवन के लगिन धरागे बड़ मनभावन होरी
गली-गली गहिके नंगारा होरी के हुरदंगा
आते साठ बसंत पाख के तन मन होगय चंगा
अनधन के भंडार भरे हे कोठी डोली ब्यारा
अबीर गुलाल मलै अंग अंग मं बुढु़वा लगय कुंवारा
निक लागय गोरी के गारी भंग पियंय मेद्दरावंय
बैर भुला आपस मं होरी के रंग मं रंग जावंय
रंग भरे पिचकारी मारंय पहिर के झोली झंगा
आते साठ बसंत राज के तन मन होगय चंगा
गेंदराम सागर
इमलीपारा, बिलासपुर (छ.ग)