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कहानी

तीजा के लुगरा – बन्धु राजेश्वर राव खरे

”सालपुर तीजहा लुगरा के गिरत दसा ल देखके एसो ओला नइ सहइस। लुगरा ल अपन तन म मन मार के लपेटे रिद्धहस फेर ओखर मन हर नंगत काच्चा होगे। ओखर ले नई रेहे गीस तब अपन भाई ल सुना दीस, मैं अभी पाठ के भाई होतेंव तब ये पुरखौती जहिजाद के दू बांटा होतीस। मैं अभी अंड़ जाहंव तब कान्हून घलों अभी ऐ जहिजाद के दू भाग कर देही। सालभर म तीजा के नाव लेके एक बेर बेटी, बहिनी के आना होथे। हमरो मान-सनमान के नेग रथे सवाल रथे। तीजा मान के अपन ससुराल लहुटबे तब पारा-परोस के माई लोगन मन मेल भेंट करे बर आथे अऊ पूछथें कि कइसना लुगरा देय हावंय तोर मइके के मन।”
कहिनी
दाई-ददा के जीयत भर ले राम्हिन के तीजा के रुआप अलगेच रिहिस। तीजा के बिहान दिन झम-झम ले लुगरा। दाई-ददा के आंखी मुंदइस तहां भाई भऊजाई के परभूता म राम्हिन के तीजा के रंग सालगनिया फिक्का होवत गीस। काबर कि राम्हिन के मईके म ओखर भाई के बाई के चलती राहय। राम्हिन हर एक मन म सोचय कि फटफिट अपन भाई ल सुना के मइके ले सबर दिन बर छुट्टी पटा लेतेंव। फेर ओखर दूसर मन हर ओला हरक देवय। राम्हिन तैं अइसन झनकर….। जीयत मरत के एक भाई अऊ एक बहिनी। सुख-दुख म संघरे के रद्दा ल झन टोर। इही बात हर राम्हिन ल संवासे बार लचार कर देवय।
एसो घला राम्हिन हर तीजा मनाय बर अपन मईके गे रिहीस। करू भात खाके उपास रिहिस। नावा लुगरा पहिर के संकर भगवान के पूजापाठ करके फरहार करिस। फेर सालपुर तीजहा लुगरा के गिरत दसा ल देखके एसो ओला नइ सहइस। लुगरा ल अपन तन म मन मार के लपेटे रिहिस फेर ओखर मन हर नंगत काच्चा होगे। ओखर ले नई रेहे गीस तब अपन भाई ल सुना दीस, मैं अभी पाठ के भाई होतेव तब ये पुरखौती जहिजाद के दू बांटा होतिस। मैं अभी अंड़ जाहंव तब कान्हून घलों अभी ऐ जहिजाद के दू भाग कर देही। सालभर म तीजा के नाव लेके एक बेर बेटी, बहिनी के आना होथे। हमरो मान सनमान के नेग रथे सवाल रथे। तीजा मान के अपन ससुराल लहुटबे तब पारा-परोस के माई लोगन मन मेल भेंट करे बर आथें अऊ पूछये कि कइसना लुगरा देय हावंय तोर मइके के मन। तब ये मार्किन लुगरा ल देखा के अपन अउ अपन मइके के नाक ल कटवाहूं…? मोर मइके हर गरीब होतिस तब बात भिने रहितिस। भांचा दान करे भुंइया ल घला तिहीं बोवत खास हावस। का दु अढ़ई सौ के लुगरा देहे के पुरता घला नइ हस?
अपन बहिनी के सब बात ल पलटू हर सहिगे रिहिस। फेर भांचा ल दान करे भुंइया वाला गोठ हर ओखर हिरदे म तीर सही भेदगे। येखर का जुवाप देवय। अपन बाई के कहना ल मानके ओ भुंइया ल बेच के अलगे जमीन बिसो के अपन बाई के नाव म रजिस्ट्री करवा डारे राहय। ओखर मन के चोर हर ये अपराध के सजा ले बुलके बर रद्दा खोजत राहय। इही बीच ओखर भांचा हर अपन दाई के ओरमे थोथना अपन ममा के चोरहा मन ल देख के ओला समझे बर थोरको देरी नइ लागिस। अपन दाई ल कथे-दाई भगवान के देहे हमर घर संतोष रूपी धन हे। अउ बहुतेच हावय। ममा घर के चीज बस म हमर घर के खरचा चलही अइसन बात नइये। आदमी ल चीज के नहीं दिल के बड़े होना चाही। चीज तो आथे अउ जाथे। कतकोन बड़े-बड़े राजाराठी के महल अटारी भठगे। आज ऊंखर न तो डीह बांचे हे, न ऊंखर डीह मं दीया बरइया बांचे हांवय। जेन राजा-महराजा मन निकता काम करीन ऊंखर नाव हर आज जग जाहिर हे। जेन मन अपन परजा ल अपन सुख खातिर सताइन तिंखर आज नाव लेवइया नइए।
अपन भांचा के मुंह ले ये सियानी गोठ ल सुनके ममा के अंतस के आंखी उघरगे। अपन भांचा ल कथे मैं आज अपन आप ल थूंक-चट्टा महसूस करत हावंव भांचा। तोला जेन भुंइया ल दान करे रेहेंव तेन ल बेच डारे हंव। थूंक के चाटना अच्छा बात नइ होय। तब भांचा कथे- एक बाप अउ एक बात कथें। जेखर जबान दस तेखर बाप दस कथें। जेखर एक बाप रथे तउने हर अपन जबान के पक्का रथे। बोलके नई बोले हौं कहना दोगलई आय अउ कोनो ल देके वापस लेना थूक चंटई। देरी ले सही फेर तैं अपन मन के चोर ल परगट करके अपन एक बाप के दरजा ल बचा डारेस ममा।
तब ममा अपन भांचा ल पूछथे- अपन मुंह अखरा बात ल पलटी मारना हर थूंक चटई कहाथे तब लिखा-पढी होय ल पलटी मारना का कहाही भांचा?
भांचा कथे- इही ल तो खखार के चंटई कथे ममा…जी।
दुनो ममा भांचा के सुलीनहा गोठ ल सुनके राम्हिन के हिरदे घला सुध होगे। अतेक बेरा पलटू के गोसाइन घला अपन मइके ले तीजा मनाके लहुटगे रिहिस। अपन मइके म मिले मान सनमान ले ओखरो आंखी दग-दग ले उघरगे रिहिस। अउ एक माईलोगन ल दुसर माईलोगन के सनमान करेके गियान ओला मिलगे रिहिस। अपन ननंद ल ऊंचहा लुगरा दे के खुसी-खुसी बिदा करिस।

-बन्धु राजेश्वर राव खरे
लक्ष्मण कुंज
अयोध्या नगर, शिवमंदिर के पास
महासमुन्द (छ.ग.)