Categories
उपन्‍यास किताब कोठी

तॅुंहर जाए ले गिंयॉं

Tuhar Jaye le giyanतॅुंहर जाए ले गिंयॉं श्री कामेश्वर पांडेय जी द्वारा लिखित आधुनिक छत्तीसगढ़ की स्थिति का जीवंत चित्रण तो है ही, संघर्ष की राह तलाशते आम आदमी की अस्मिता के अन्वेषण की आधारशिला भी है। इसे छत्तीसगढ़ की अस्मिता पर लिखित और ‘हीरू के कहिनी’ के बाद प्रस्तुत 21वीँ सदी का श्रेष्ठ औपन्यासिक साहित्य भी कहा जा सकता है। छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र श्री कामेश्वर पांडे पिछले 10 वर्षोँ से लगातार श्रम और शोध के द्वारा इसे परिष्कृत—परिमार्जित करते हुए अब प्रकाशन के लिए तैयार हुए है।
उपन्यास मे जहाँ छत्तीसगढ़ी मजदूरों के पलायन की पीड़ा है, वहीं छत्तीसगढ़ी जनजीवन पर वर्चस्ववादी सभ्यता का दबाव, स्थानीय जनपत पर परदेसियों के शोषण का प्रभाव, अपने ही घर में मेहमान के रुप में तब्दील हो जाने का उदभाव और नव उदारवादी औद्योगिक सभ्यता के प्रलोभन और प्रदूषण से उन्मुक्त होने का सात्विक भाव उद्घाटित है। उपन्यासकार इसमें यह स्वप्न भी देखता है कि छत्तीसगढ़ी मनुष्य आलस्य को त्याग कर श्रम—साधना और कर्मठ जीवन को अंगीकार करें,उंच—नीच व अमीर—गरीब जाति—पाति के अलगाव से अलग होकर पारस्परिक सद्भाव को अंगीकार करें तथा उदार सांस्कृतिक विरासत को संजोते हुए अपनी सामासिकता, विशाल हृदयता और भलमनसाहत की छाप छोड़ने में सक्षम हो सके, अपनी निरीह छवि से मुक्त हो सके। इस उपन्यास की एक और खूबी यह भी है कि यह केवल पारम्परिकता और ग्रामीण जीवन को ही आंचलिकता का पर्याय न मानकर आधुनिक जीवन—बोध की जटिलता, नागर संस्कृति की संवेदनहीनता और अभीजन वर्ग की चेतनता से सरोकार रखकर सर्वथा युगीन संदर्भों से जुड़ती है।
डॉ. विनय कुमार पाठक
(फ्लैप मेटर)

संपूर्ण उपन्यास सेव करें और आफलाईन पढ़ें