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संपादकीय

दू आखर

मयारू संगी, हमर गुरतुर गोठ ह आज गांधी बबा अउ सास्‍त्री जी के जयंती के दिन अपन एक बरछ पूरा कर लीस. ये एक बरिस म हम अपन गुरतुर गोठ ला अपन मन म संजोये सपना असन तो पूरा नई कर पायेन. फेर संगी मन के सहजोग ले सरलग आघू बढत रहेन. आप मन हमर संग, हमर भाखा के संग इही बहाना जुडे रेहेव, हमर उत्‍साह ला बढावत रेहेव. येखर बर हम आप मन के हिरदे ले आभारी हांवन.
हमर ये प्रयास आप सब के सहयोग ले ही सफल हो पाही काबर कि विकास चाहे आदमी के होवय या समाज के, सब लोगन के आपस में जुर मिल के, सुंता ले, अपन अपन अनुभव अउ विचार ला एकदूसर ले बांटे ले ही धीरे धीरे संभव हो पाथे । हमर अकेला के सुन्‍दर ले सुन्‍दर सोंच, चिंतन कतको उंचा दरजा के काबर नई होवय, वो ह समाज के विकास बर रद्दा नइ गढ सकय ।

जईसे-तईसे हम एक बरिस ले आप मन के हिरदे म बसे भाखा ला आप मन तीर लेजे के परयास करत रहेन. हमर सपना आज नहीं त काल जरूर पूरा होही. हमर आदरनीय वरिस्‍ठ संपादक सुकवि बुधराम यादव जी के संउपे बाना ला हम बने सहिन नई सम्‍हाल पायेन फेर हम बाना ला उतारेन घलव नहीं. आपमन भरोसा राखव हम धीरे-बांधे अपन काम करत रहिबोन, आपमन के असीस संग रहय.

महानदी ,इन्द्रावती , शिवनाथ , हसदो, मांड , केलो , सोंढूर, अरपा, पैरी के कछार के कलमकार, सरसती दाई के छत्तीसगढ़ बेटवा बेटी मन ले गाड़ा भर भरोस अउ कांवर भर आसरा हावय के अपन बिबिध बिधा के लेखा , कबिता ,गीत , गजल , कहनी , किस्सा, लोकगाथा, उपन्यास , नाटक , जमो ले “गुरतुर गोठ” के भंडार ला छलकत ले भरे के उद्दिम मा तन मन ले लागे रईंही . बिना ढेरियाये, बिना उबियाये अउ बिना दुरिहाये.

संगी समीर यादव जी, दीपक शर्मा जी, युवराज गजपाल जी, ललित शर्मा जी अपन व्‍यस्‍तता के बाद घलव गुरतुर गोठ ला अपन-अपन कोती ले जउन सहजोग देइन अउ देवत आवत हें, तउन मन ला. अउ हमर अइनहे कतको संगी जेमन हमर ये पतरा म आके हमर मेर गोठ बात करिन अउ हमर भाखा के रचना मन ला पढिन. अइसे जम्‍मो संगी मन ले मिले ये मया के हम हिरदे ले आभारी हावन.

मयारू संगी, आपमन के परेम असनेहे बने राहाय, हमर भाखा के सोर चारो कोस उडत रहय.
जय भारत, जय छत्‍तीसगढ.