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समीच्‍छा

दू पीढ़ी के लिखे अनमोल कृति

Chhattisgarhi ram lilaमैं ह अपन बहिनी (चचेरी बहन) घर बिहाव म गे रहेंव। ऊहां मोर भेंट होईस पंथराम वर्मा जी ले। कुछु घरेलू बात चलिस। मड़ई म ऊंखर कई ठन कविता छपे रहिस हे, ये बात के खुसी परगट करत रहिन हें। छत्तीसगढ़ी भासा अऊ मड़ई ऊपर गोठबात चलिस। गोठबात के बेरा म पता चलिस एक पुस्तक के बारे म ‘रामचरित्र मानस रामलीला’। ये ह छत्तीसगढ़ी नाटक आय। ये ह पूरा रमायन के नाटय रूप आय।
बातचीत म बतइन के ये पुस्तक ह दू पीढ़ी के द्वारा लिखे गे हावय। पहिली ये पुस्तक के लेखन उदयराम जी करीन। वो मन 1952 ले 1964 तक पाटन छेत्र के विधायक रहिन हें। ये नाटक के लेखन 1964 म भरत-मिलाप तक करीन एखर भूमिका वरिष्ठ साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी लिखे हावयं। पुस्तक ल बाद में समीक्छा बर भेजिन। वो मा मैं देखेंव के उदयराम जी अपन विचार म लिखे हावंय के ‘मोर मन म विचार अइस के छत्तीसगढ़ी बोली म नाच गम्मत होथे जेन ह सिक्छाप्रद रहिथे। येला बिना पढ़े-लिखे मन समझथें अऊ आनंद लेथें। अइसने श्रीराम के चरित्र ल छत्तीसगढ़ी म लिखे जाय त इहां के मनखे मन ल कुछु लाभ होही।’
1960 म सेलूद गांव म श्रमदान सप्ताह मनाये गीस जेमा सामुदायिक रूप ले सड़क बनाए के काम होईस। उही समय म उदयरामजी ल पहिली बेर बिचार अइस के छत्तीसगढ़ी म कैकई -मंथरा संवाद ल नाटक के रूप म लिखे जाय। विचार के आतेच्च लेखन आरंभ होगे अऊ येला मर्रा हाई स्कूल म खेले गीस। ये नाटक के सफलता के बाद बहुत झन के विचार अइस रमायन के अऊ घटना मन ल छत्तीसगढ़ी म लिख के मंचन करवाए जाय। ऐखर बाद छत्तीसगढ़ी रामचरित्र नाटक के लेखन आरंभ होगे।
समीक्छा बर किताब मिले रहिस हे फेर ऊंखर विचार ल पढ़े के बाद तो ओखर कमी ल लिखे के जरूरत ही नइए। उदयराम जी स्वयं लिखे हावयं के ‘आधुनिक युग के कुछु बात ल घलो पात्र मन ले कहवाए गे हावय। लिखे के बेरा म मानसिक स्थिति विचित्र हो जाय अऊ ये धियान रखे बर परय भावनाबस कोनो प्रसंग म धार्मिक भावना के रूप ह झन बदल जाय। छत्तीसगढ़ी म लिखे के बाद भी कई ठन हिन्दी के सब्द परयोग म लाये गे हावय जइसे प्राणनाथ, मृगनयनी, प्रवास, आशीर्वाद, वध, श्राप।’
अपन बात ल लिखे के बाद उदयराम जी स्पष्ट लिख दे हावयं के आवश्यकतानुसार पाठक येला सुधार सकथे। ऊंखर विचार ल पढ़े म विनम्रता झलकते, जब अपन आप ल अल्पज्ञानी कहिथें। कोदूराम दलित के लिखे गनेस वंदना अऊ तुलसीदास के चरित ल पुस्तक म रखे गे हावय। ऊंखर बर विनम्रता ले धन्यवाद लिखे हावयं। कोनों भी मेर ये भाव नइए के ‘छत्तीसगढ़ी म पहिली मनखे आवं जेन ह छत्तीसगढ़ी म रामचरितमानस नाटक के लेखन करे हंव।’
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी तो ऊंखर बड़ई करत थकत नइए। 1964 म छत्तीसगढ़ी भासा म कुछ पुस्तक के परकासन आरम्भ होगे रहिस हे। ऊंखर कहिना रहिस हे के छत्तीसगढ़ी साहित्य के परकासन के व्यवस्था होना चाही। वइसे तो सब अपन-अपन ले छपवावत हांवय। बख्शी जी लिखे हावंय के ‘आधुनिक युग के आरंभ में ही मधुसूदन दत्त ने एक नए रंग से रामकथा को ही महत्ता दी। हिन्दी में मैथलीशरण गुप्त जी ने साकेत के द्वारा रामचरित्र के भीतर नवयुग की भावना को प्रदर्शित किया। श्री उदयराम जी ने भी अपने नाटक में राम की कथा में नए भावों का समावेश किया है। उनके इस नाटक से यह स्पष्ट हो जाता है कि छत्तीसगढ़ी बोली में भी कितनी मधुरता और सरलता है। भिन्न-भिन्न भावों की अभिव्यक्ति के लिए छत्तीसगढ़ी की क्षमता में अब लोगों को संदेह नहीं हो सकता।’
उदयराम जी ह प्राथमिक स्तर तक के सिक्छा पाय रहिन हे 1930 ले गांधी जी संग आंदोलन म भाग लेवत रहिन हें। कई बेर जेल गीन। विधायक रहिन हे। राजनीति अऊ साहित्य दूनों म ऊंखर दखल रहिस हे। साहित्य के बात करे जाय त बहुत अकन नाटक लिखिन, जेखर जगह-जगह मंचन होईस। सिक्छाप्रद नाटक के कड़ म रामचरितमानस नाटक लिखे गीस। नाटक लोक सिक्छा के अच्छा माध्यम होथे। नाटक के प्रभाव दरसक ऊपर अच्छा परथे।
भरत-मिलाप तक लिखे नाटक के मंचन दुरूग जिला म बहुत होईस। उदयराम जी के पुत्र पंथराम जी ले बहुत झन मन आगरह करीन के ‘येला तैं ह राम राज्य तक पूरा कर दे’ पंथराम जी बहुत अच्छा कवि, लेखक हावंय। 1983 ले 1990 तक म.प्र. भूदान यज्ञ बोर्ड भोपाल के अध्यक्ष रहिन हें। रमायन नाटक ल रामराज्य तक लिख के पूरा करीन 2004 म। एखर विमोचन सेलूद गांव म संत पवन दीवान द्वारा होईस। देखते -देखत दू हजार प्रति निकलगे।
ये नाटक ल पढ़े के बाद सरयूकांत झा हिन्दी दिवस 2004 के दिन एक पाती लिखिन। ‘रामचरित्रमानस रामलीला (छत्तीसगढ़ी नाटक)’ अमूल्य कृति है, बल्कि कहूं कि दो पीढ़ी ही नहीं दो युगों का सम्मिलन है। तुलसी के मानसघाट में पिता-पुत्र का मिलन हुआ है। कभी ऐसे ही मिलन की साक्षी है विश्व की पहिली औपान्यासिक कृति ‘कादम्बरी’।
ये नाटक ल पढ़े के बाद तो मोला अइसे लगत रहिस हे के ये मंचन ह मोर आंखी के आगू म होवत हावय। हंसी, मजाक, अऊ सिक्छा ले भरे ये नाटक अतेक प्रति निकलना अपन आप म ये पुस्तक के सफलता आय। संस्कार जनम ले आथे। उदयराम जी के संस्कार ऊंखर बेटा पंथराम जी ल मिलिस। एक सम्पन्न परिवार के लइका सही म माटीपुत्र आय जेन ह नांगर जोते के काम ले कलम चलाय के काम तक घलो करीस। सर्वोदयी विचारधारा के पंथराम जी बहुत ही विनम्र हें। गोठबात ले जानेंव के आज के दूरदर्सन ल पूरा परिवार एक संग देख नई सकंय। पाश्चात्य संस्कृति ल अपनावत हांवन। येला सुधारे बर कोनों सार्थक चर्चा नई होवय सब मूकदर्शक होगे हावय।
नाटक म अंगद काय काहत हावय तेनो पढ़े के लइक हावय। वाक्य रचना, छत्तीसगढ़ी भासा, सुग्घर अऊ मानक हे।
अंगद- अरे अधर्मी, अभिमानी रावण थोरिक जबान संभाल के बोल, श्री राम ला साधारण आदमी कथस। गंगा कोई साधारण नदिया नोहे, साधारण गाय हा सुरहिन गैया नइ हो सकय, गरूण ह साधारण पक्षी नोहय, कहूं पिरपिटी सांप ल शेषनाग के बरोबरी करबे? जंगल के नानमुन बेंदरा ह हनुमान सही तो लंका नई लेसे सकय। अरे रावण के चतुराई बात ला छोड़ के तैं भगवान के शरण में जा।
इही तरह के वाक्य रचना देखे म अइस। पंथराम जी रामायण परीक्षा केंद्र गोरखपुर ले उत्तमा परीक्षा उत्तीर्ण करे हांवय। रमायन के जानकार पंथराम जी के नाटय रूप ल विनोदपूर्ण ढंग ले लिखे हावय। रमायन के सबो कथा ऐमा समाय हावय। मोला जब ये पुस्तक ह समीक्छा बर मिलिस त जतका बात पंथराम जी बताये रहिन हे ओखर ले बहुत ऊंचा इस्तर के नाटक लगीस। आज 85 साल के उमर म घलो पंथरामजी के उत्साह अऊ चेहरा के चमक बीस साल के युवा कस हावय। ऊंखर कविता मन ल पढ़े के बाद कोनो मेर नई लगय के ढलत शारिरिक छमता के मनखे लिखे होही। अपन आप ल जनसेवा म लगाये रहिथे। परिवार के हर कार्यकरम म उपस्थित रहिथे। पाटन छेत्र के हर वो परिवार म सामिल होथे जिहां ले सुख-दुख के समाचार मिले हावय। ऊंखर पाती म घलोदेश अऊ समाज म बगरे बुराई के प्रति दुख दिखिस। ‘जिस देश में गौहत्या और शराबबंदी नहीं होगी, उसका सर्वनाश ही होगा।’
सरयूकांत झा के विचार ले देखन त ये रामचरित मानस रामलीला (छत्तीसगढ़ी नाटक) कादम्बरी उपन्यास के लिखे विश्व के दूसर नम्बर के पुस्तक होही जेन ल पिता, पुत्र लिखे हावंय। छत्तीसगढ़ संस्कृति विभाग ल ये पुस्तक के संरक्छन एवं प्रकासन करवाना चाही। पंथराम जी ल बेसकीमती धरोहर ल देय बर धन्यवाद।

सुधा वर्मा

पुस्तक क नाम- रामचरित मानस रामलीला (छत्तीसगढ़ी नाटक)
लेखक- स्व. उदयराम वर्मा,
पंथराम वर्मा
प्रकाशक- हिन्दी साहित्य समिति पाटन दुर्ग
मूल्य – 100 रुपए

देशबंधु ले साभार

2 replies on “दू पीढ़ी के लिखे अनमोल कृति”

पुस्तक समिक्षा पढ़ के पुस्तक ला पढ़े के बढ़ इच्छा होवत हे का मेकराजाला मा उपलब्ध हे नही त दुरुग के कउनो पुस्तक दुकान के पता बता दव जिहा ले डाक ले मँगवाए जा सकय

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