Categories
कहानी

देखावा

अकरसहा पानी गिरे लगिस। रामधन फिकर- मगन होगे। ओला समझ नई आवत रिहीस के अब का करे? जेन बइला गाड़ी म ओ बइठे रिहीस ओमा चाउर भराय रहय। ओहर फंसे ओ जघा रिहीस जिहां दुरिहा – दुरिहा ले कोन्हों गांव दिखत नई रिहीस। कोन्हों गांव के तीर म फंसे रिहीतिस त ऊंहा थिरवाव कर सकत रिहीस। छइहां देख के चाऊंर ल भींगे ले बचा सकत रिहीस पर इहां तो दुरिहा – दुरिहा ल सिरिफ खेते – खेत रिहीस। बइला मन गाड़ा ल खींचना चाहत रिहीन पर पानी के बूंद बड़े – बड़े रिहीस ऊपर ले आंधी धूंधी उठे रिहीस। बइला मन गाड़ा ल खींच नई पात रिहीन। रामधन अपन आप ल बचाए बर पंछा ल मुड़ म डारे रिहीस पर ऊहूं भींग गे। अउ पानी ओकर मुड़ ल भींगाये लगिस। रद्दा मं एक पेड़ मिलीस। बइला मन ऊही मेर रुक गे। रामधन ल घलोक ऐ जघा मुड़ बचाय के लइक लगीस।  ओहर गाड़ा के खाल्हे आ के खुसरगे अउ पानी रुके के रद्दा जोहे लगीस।
पानी सोसन भर गिरके धीरे – धीरे रुके लगीस। रामधन गाड़ा के खाल्हे ने निकलिस। ओहर देखिस – चाऊंर भराय बोरा मन भींग गे हे। ओहर एक ठन बोरा ल खोल के देखिस – चाऊंर घलोक भींग गे रिहीस। रामधन ल अब अपन भींगे के नई, चांऊर भींगे के फिकर सताये लगीस।
रामधन फिकर म एकर सेती बूढ़गे काबर के ओहर एक नौकर रिहीस। ओहर गौंटिया के घर नौकरी करय। गौटिया के नाव दो दयाराम रिहीस पर ओकर करम दया धर्म ले दुरिहा के रिहीस। ओकर ले एक पांव आगर ओकर सुवारी रिहीस। नाव तो ओकरो कलयानी रिहीस पर कलयान का होथे ऊहू ल ओहर नई जानय। ओमन छुआछूत मानथे या नई ऐला तो कोनो समझ नई पाइन पर अतका लोगन जानत रिहीन के ओकर घर जेन भी जाथे, ओला दुरिहा म बइठे ल परथे। ओकरे ही गांव के आदमी मन काबर, अतराब भर के गांव वाले मन घलक ओकर तीर म बइठे के हिम्मत नई कर पावै। काबर के अतराब भर मं ऊही एक ठन गउंटिया रिहीस जेकर डेरौठी म सब ल झूके ल परे। ओ क्षेत्र आरक्षित क्षेत्र रिहीस। पंच सरपंच आरक्षित कोटा के रहय पर पंचायत ल चलाय गौटियां हर।  गौटियां के इशारा पर पंचायत के काम होवै। अधिकारी – कर्मचारी होवय या नेता मंत्री, सबे गौटियां के घरे म  आवय। चुनाव के समे लोगन ल कंबल, लुगरा, दारु, पइसा मिलय ऊहू ल गांव वाले मन गौटिया के ही मेहरबानी मानय …।
पानी रुके गे रिहीस। पर गाड़ा ल आघू डहर बढ़ाये के हिम्मत रामधन नई कर पात रिहीस। रामधन बइला मन ल ढिलके पेड़ म बांध दे रिहीस। ओहर फेर गाड़ा तरी आ के बइठ गे।
रामधन के आंखी के आगू म ओ दिन के घटना दिखे लगीस – रामधन एक कोंटा म बइठे रिहीस। ओहर डोरी आंटत रिहीस। उही बेरा गौटियां के बेटी धोये चाऊंर सुखोये ल जावत रिहीस। ओकर लुगरा के अंचरा रामधन ल छु दीस। बात गौटिया तक पहुंचिस, तब गौटिया गुसियागे। किहीस – तुम छोटे मन ल थोरिक भाव का देथन, मुड़ी म चढ़े बर तियार हो जाथौ। ये चाऊंर अपन घर ले जा, खा लेना। आगू अइसन करबे त ठीक नई होही …।
ओ दिन तो चाऊंर दू ऐ किलो रिहीस होही। गौटिया सहज म दे दे रिहीस पर आज कई बोरा  म चाऊंर  भराये रिहीस। सबो बोरा के चाऊंर भींगगे थोरिक – थोरिक भींग गे रिहीस। का ऐ चाऊंर ल घलोक मोला गौटिया दे दिही … नई … नई… अइसन नई हो सकै। मोर कमाई मे से काटही। पर मोर साल के कमई भी तो अतका नई होवै, जेमा एक साल म छुटा जाही। … पर मोला तो कमई के मजदूरी नई देही त मोर घर कइसे चलही? कइसे बने होही मोर लइका …?
रामधन के आंखी के आगू म ओकर लइका के चेहरा किंजरगे – ओहर बीमार रिहीस। कतको उपचार कराये के बाद भी ओकर बीमारी नई जावत रिहीस। रामधन सोचे रिहीस – अब के बार जेन मजदूरी मिलही, ओकर ले लइका के शहर ले ग के इलाज कराहूं। रामधन ल अपन बाई के सुरता आगे जउन मरत समे कहे रिहीस – रघु के ददा, मोर रघु ल खूब लाड़ पियार देहू। कोनो किसम के दुख मत देहू। आज ले तुम ऐकर ददा ही नइ दाई घलोक आवौ … अउ ओकर बाई सुवरग सिधारगे …।
जब ले रामधन के बाई सुवरग सिधारे रिहीस, तब ले घर के जम्मों जिम्मेदारी राधन के मुड़ म आ गे रिहीस। परिवार – समाज के लोगन मन रामधन ल दूसरा बिहाव करे बर किहीन पर रामधन ककरो बात ल नई मानिस …।
अभी रामधन बिचार म भटकत रिहीस तभे गांव के एक किसान दीना आइस। कहिस – अरे, रामधन तंय कहां ले आवत हस अउ ऐ मेर काबर गाड़ा ल खड़ा कर दे हस ..?
रामधन गाड़ा तरी ले बाहिर अइस। किहीस – मंय गौटियां के घर के धान कुटाये बर गे रेहेवं दीना। गाड़ा म रखे सबो बोरा के चाउंर भींग गे हे।
– पानी तो छोड़ दे हे फेर काबर इही के इही मेर हस …।
– का बताववं दीना … मोला तो कुछू उमझत नई हे के का करवं …?
– आखिर बात का हे, कुछू तो फुरिहा …?
रामधन ओ दिन के जम्मों कहानी दीना ल सुना दीस। सुन के दीना हंसे लगीस। दीना ल रामधन बोक बाय देखे लगीस। ओ ल लगीस – दीना घलक ओकर बिबसता के हांसी उड़ावत हे … कहिस – हंसे ले भइया, हसं ले। गरीब मजदूर पर सब ला हांसीच तो आथे।
दीना हांसी ल रोक के किहीस – मूरख, मंय तोर गरीबी अउ लाचारी पर नई हांसत हवं … मोला तो तोर मुरखता पर हंसी आवत हावै। इहां तोर भाग के तारा खुले हवै अउ तंय रोये धोये ल बइठे हस …?
– भाग के तारा … का कहत हव, मंय समझ नई पावत हवं दीना …।
– तंय एक काम कर … दीना रामधन के कान म कुछू फुसफुसाइस। अब रामधन के समझ म दीना के हंसी के बात आ गे।
रामधन गाड़ा म बइला म ल फांद के गांव डहर चल परिस। ओहर गाड़ा बइला ल गौटिया के घर न लेग के अपन घर लेगे। अउ अपन घर करा गाड़ा बइला ल ढील के गौटिया के घर रेंगत अइस।
गौटिया घर ले बाहिर आइस। देखिस – रामधन बिना गाड़ा बइला के आय हवै। ओहर रामधन ल पूछिस – रामधन, गाड़ा बइला दिखत नई हे …।
रामधन रुआंसू होगे। गौटिया हड़बड़ाइस – कहूं गाड़ा ल कोनो लूट लाट तो नइ लीस। अभी जादा दिन होय घलोक नई रिहीस – गांव वाले मन धान कुटा के आवत रिहीन। कुछ लुटेरा मन ऊंनला लुट ले रिहीन। गौटिया हड़बड़ाहट म रामधन ले पूछ बइठिस – रद्दा म कोनो लुट तो ….।
गौटिया अपन बात ल पूरा करतिस के रामधन किहीस – नइ, अइसन कोनो बात नइ होय हावै।
– फेर गाड़ा बइला कहां हे …?
– मोर घर मेर …।
– काबर ..?
– ओमा रखाये जम्मों बोरा के चाउंर ह भींग गे हे मालिक … मोर ले गलती होगे, मोला क्षिमा देहू …।
– क्षिमा .. कइसे गोठियाथस रामधन …?
– बोरा म भराये चाऊंर भींग गे हे, त ओहा छुआ गे हे गौटिया …।
अब गौटिया के ओठ म मुसकान तयरे लगीस। किहीस – मूरख, कहूं अन्न घलोक छुआथे ?
– पर ओ दिन …।
अब गौटिया ल सब बात समझ आ गे। किहीस – अच्छा, त तंय ओ दिन के बात ल आज ले धरे हस … ओहर एक कन चाऊंर रिहीस। ये तो गाड़ा भर हे… परलोखिया, मंय तो मजाक करे रहे हव। जा अपन घर अउ गाड़ा बइला ल ले के आ …।
रामधन अपन घर गीस। बइला गाड़ा ल गौटिया के घर तीर लइस। ओमा रखाय चाऊंर ल निकालिस अउ गौटिया के घर म रख दीस। अब रामधन ल समझ आ गे कि जात – पांत, छूआछूत, भेदभाव सब दिखावा आवै। ये सब उही मेर लागू होथय जिहां आदमी ल जादा नुकसान नइ होवै। जादा नुकसान के संगे संग आदमी के आस्था घलोक डगमग हो जाथे।
गौटिया के घर भींगे चाऊंर रखत रामधन के ओंठ म मुसकुराहट तैरे लगीस।

सुरेश सर्वेद
राजनांदगांव