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छंद दोहा

दोहा गजल (पर्यावरण)

रुख राई झन काटहू, रुख धरती सिंगार।
पर हितवा ये दानियाँ, देथें खुशी अपार।~1

हरहिंछा हरियर *अमित*, हिरदे होय हुलास।
बिन हरियाली फोकला, धरती बंद बजार।~2

रुखुवा फुरहुर जुड़ हवा, तन मन भरय उजास।
फुलुवा फर हर बीज हा, सेहत भरे हजार।~3

डारा पाना पेंड़ के, करथें जीव निवास।
कखरो कुरिया खोंधरा, झन तैं कभू उजार।~4

धरती सेवा ले *अमित*, सेउक बन सुखदास।
खूब खजाना हे परे, बन जा मालगुजार।~5

रुखराई के होय ले, पानी बड़ चउमास।
जंगल झाड़ी काटबो, सँचरहि अबड़ अजार।~6

सिरमिट गिट्टी रेत ले, बिक्कट होय बिकास।
पुरवाही पानी जहर, ये कइसन निस्तार।~7

घर के कचरा टार के, करदव दुरिहा नास।
गोबर खातू डार के, खेत करव गुलजार।~8

पूरा पानी हा करय, बहुँते सरी बिनास।
बस्ती के बस्ती बुड़ै, मरघट होय मजार।~9

सावचेत सेवा करन, धरती सरग बिलास।
सुग्घर सिधवा सब बनै, काबर कोन बिजार।~10

कन्हैया साहू “अमित”
-भाटापारा (छत्तीसगढ़)
संपर्क~9200252055