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कविता

धरती के बेटा

तन बर अन्न देवइया, बेटा धरती के किसान।
तोरे करम ले होथे, अपने देश के उत्थान॥
सरदी, गरमी अऊ बरसा,
नई चिनहस दिन -राती।
आठों पहर चिभिक काम म,
हाथ गड़े दूनों माटी॥
मुंड म पागा, हाथ तुतारी, नांगर खांध पहिचान।
तोरे करम ले होथे, अपने देश के उत्थान॥
कतको आगू सुरूज उवे के,
पहुंच खेत मन म जाथस।
सुरूज बुड़े के कतको पाछू,
घर, कुरिया म आथस॥
तोरे मेहनत के हीरा-मोती, चमके खेत, खलिहान।
तोरे करम ले होथे, अपने देश के उत्थान॥
जांगर टोर कमइयां, तोर
बर नइये कभू अराम कहूं।
लहलहावय पीके पछीना,
कोदो कुटकी, धान गहूं॥
उार तन, मन उार हे, थोरको नइये अभिमान।
तोरे करम ले होथे, अपने देश के उत्थान॥
हाथ म देथस हाथ तहीं,
जब कोनों सहकारी मांगय।
तोरे उदिम, लोगन मन म,
भाव सहकार के जागय॥
मुचमचा थे जिनगी, सोनहां होथे सांझ-बिहान।
तोरे करम ले होथे, अपने देश के उत्थान॥
पाठक परदेशी
डाईट कबीरधाम