Categories
कविता

नइए भरोसा संगवारी-रागी

नइए भरोसा संगवारी-रागी
हवा पानी अउ आगी।
नइए भरोसा संगवारी रागी॥
दाई बहनी सबके खाथे किरिया।
नइए लाज शरम पिरिया॥
न दाई ल, दाई जानत हे।
न बहिनी ल, बहनी मानत हे॥
सबके ऐके ठन राज आय।
धन-दौलत अउ काज आय॥
मोर खेत कइके बताथे लबरा।
देखे जाबे त दीखत हे डबरा॥
लबरा के मुंह बड़े होथे।
जेकर पाही म दूसर रोथे॥
पाव पलगी कुछु नई जानय।
पारा-परोस नाता नई मानय॥
घन घोर कलयुग आगे।
किरिया म ईमान बेचागे॥
छानही म होरा भुंजत हे सियान।
भटगे इकर मन के धियान॥
ठर्रा होगे मऊहा के दारू।
गोठ भाखा होगे उतारू॥
खेत खाचत खपट दरिस पार।
खाय बर तिवरा, बताथे राहेरदार॥
हवा पानी अउ आगी।
नइए भरोसा संगवारी रागी॥
श्यामू विश्वकर्मा
नयापारा डमरू
बलौदाबाजार