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नान्हे कहिनी : डेहरी के दिया

रमेसर ल लगते नइहे, मोर बाबू नइ हे कहिके। वोकर दमांद मन ससुर ल ददा ले बढ़के मानय। अपन गोतियार मन ला देखथे त कोनो बहू हा सास ल तंग करथे, त काकरो बहू हा ससुर ल खाय-पिए ल नी देवय। कोनो के लईका मन दाई-ददा ल माने गौने नहीं। सब परवार के मन रमेसर के परवार ल देखथे त अपन लइका मन ला कोसथें।
गांव भर मा नरायन बबा हा अपन दु पुरखा ल देख डरे हे। अइसन जस आज कोनो ल नइ मिलय। पहिली के मन तो दु तीन ठन घलो पुरखा ला देख डरें। आजकाल एक पुरखा ल देख डरहि उही बड़ भाग बरोबर आय। नरायन अपन भाई-बहिनी के परवार ला देखथे ता वोला बड़ अचरज लागथे। नरायन के एक झन बाबू अऊ छ: झन नोनी आय। नरायन ल लगत हे, के भगवान मोर एक झन बाबू लईका आय। उहु ल कांही हो जाही त डेहरी के दिया बरैया घलो कोनो नी रही। तेकरे सेती एक झन बाबू अउ हो जतिस ते बने हो जतिस ते बने रितिस। लेना, लोगन कर एको झन बाबू नी रहाय तिंकर काय होवत होही, तेनला थोरिक गुनव। नरायन के इही गुनई म तन हा वोकर घुना खात रिहिस हे। कतको झन समझाय घलो। तोर कर बाबू हे, तेकर देख-रेख ल बने कर।, जोन होना हे, तेहा तो भगवान के हात-बात आय। वोला तैं अऊ मेंहा काय कर सकथन। तभो ले नरायन के इही गुनई- भगवान, मोला एक झन बाबू अऊ दे रितिस ते मोला कोनो फिकर नी रितिस। अइसने गुनत मा नरायन के सबो लोग-लईका के बिहाव घलो होगे। नरायन के सबो लईका मन हा लोग लईका वाले होगे।
पन एक झन बाबू के बिहाव करिस त वोकरो चार झन नोनीच नोनी होगे। बबा हा थोर बहुत उपरहा जीतीस ते फिकर मा भगवान घर चल दिस। फेर वोकर बाबू रमेसर ल कतको झन उभराय घलो। दूसर बिहाव कर ले न जी, तोर डेहरी के दिया बरैया कोनो नी दिखत हे। नीहिते तोर बूढ़त काल म मरना हो जही। कोन देखरेख करही तुंहर डोकरी-डोकरा के। रमेसर के एक ठन बुध्दिमानी ये रहाय के काकरो मन ल कभु नी टोरे वोहा। सुने सबके फेर करे अपन मन के।
वोहा बड़ गुनिस- जोन हे अउ जोन होवत हे तेला भगवान के मरजी मान लिस। अउ अपन मन म परन कर डरिस, मोर नोनी मन ल मेंहा बाबू मनके रूप ला देखहूं। येकर बर मोला ईमान ले परयास करे बर परही। वो दिन ले रमेसर नोनी मन ला बाबू कस मान डरिस मन मा। चारों नोनी मन ला पढ़ाय-लिखाय म कोनो कमी नी करिस। बिहाव होईस त बड़े नोनी तीर के गांव मा मास्टरिन बनगे। बड़े मंझली हा अइसन घर म गिस जेन घर मा अपन मनखे ल दाई-ददा के सुख नी मिले रिहिस। दमाद हा बिहाव के पहिली ले सास-ससुर ल अपन दाई-ददा मान डरिस। छोटे मंझली हा गांव ले कतको दूरिहा बिहाके चल दिस। भरे-पूरे घर हे। मइके म बछर में एकाध घांव तीजा-पोरा म आगे ते भाग-भइगे। वोला अपन मइके आय के घलो टेम नी रहाय। छोटे नोनी हा नर्स बाई बनगे हे। वोकरो तीर के गांव म नौकरी लगगे हे। रमेसर बर घर हा सरग सही लगत हे बूढ़त काल मा।
रमेसर ल लगते नइहे मोर बाबू नइ हे कहिके। वोकर दमांद मन ससुर ल ददा ले बढ़के मानय। अपन गोतियार मन ल देखथे त कोनो बहू हा सास ल तंग करथे। त काकरो बहू हा ससुर ल खाय-पिए ल नी देवय। कोनो के लईका मन दाई-ददा ल माने गौने नहीं। सब परवार के मन रमेसर के परवार ल देखथे त अपन लइका मन ल कोसथें। गोतियार के लइकामन रमेसर के नोनी मन के बड़ई ला सुनथें त उंकर रिस हा अउ माथा म चढ़ जथे। रमेसर हा ईमानदारी ले परयास करिस। त वोकर बेटी मन हा बेटा मन ले बड़ के हो गेहे। आज रमेसर के चार झन नोनी हवय। नाती-नतरा ले घर के मुहाटी हा महकत हे। तिहार-बार म घर हा सइमों-सइमो करत रिथे।
गांव ले दु कोस दुरिहा म सरकारी हास्पिटल हावय। इहां के डॉक्टर बाबू, नर्स बाई मन रमेसर के उदाहरन ल गांव-गांव म बगरावत हें। येकर परभाव ये होवत हे के आज रमेसर घर के नोनी मन हा येकरे घर बर डेहरी के दिया नइहे। ये डेहरी के दिया के अंजोर ह घर ले निकलके पारा, मोहल्ला अउ आने गांव म बगरत हे। लोगन मन अइसने उदीम करत अपन डेहरी के दिया नोनी मन ला मानत हें। जेनहा एक ठन लोगन बर अलग चिंहारी बनत हे। जेन दिखत हे तेनला कोनो ल बताय के जरूरत घलो नी परे। फेर मौका परथे त गोठियाय, बताय ल घलो पर जथे। अइसन गोठ ल तो सबो कर फरियाना चाही। तभे हमर डेहरी के दिया ह हमर घल ले निकल-निकल के दुरिहा-दुरिहा म बगरत जही। रमेसर अइसन डेहरी के अंजोर बगरात हे, जेनहा दुरिहा-दुरिहा ले अंधियारी ले निकलके लोगन के डेहरी के दिया बनत हें। येकर ले लोगन ल बने सीख मिलही।
दयाल साहू
भिलाई

2 replies on “नान्हे कहिनी : डेहरी के दिया”

अपन अलवा-जलवा रहि के आन ल राखथे बढिया ,मया पीरा ल सबके समझथे वोही ए छत्तीसगढिया । ए ढुरु कहानी म रमेसर ह ” डेहरी के दिया ” ए , घर अउ बाहिर , दुनों डहर ल अंजोर करत हे। दयाल साहू जी ह बड सुघ्घर कहानी लिखे हावय , वोला बहुत-बहुत बधाई अऊ संजीव तिवारी ह , नवा-नवा साहित्यकार मन ल , जौन मंच देवत हे ,बढावा देवत हे , प्रेरणा देवत हे तेकर बर सन्जीव भाई ल घला ,कोठी-कोठी बधाई देवत हावौ ।

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