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कहानी

नान्‍हे कहिनी : दुकालू




जब कभु मोला कहुं जाना होथे त मेहा बुर्जुग दुकालु के रिक्सा मेहि जाथंव। दुकालू से जब कोनो वोकर उमर पूछथे त वोहा इही कहिथे के उमर के बात छोडो बाबू, मेहा तो ए मानथंब जब तक सेहत बने हे, तभे तक जिंदगानी हे। दुकालु ह कभु अपन उमर के रोना नइ रोय। वोकरे सब्द म- ‘न कभु मेहा अपन उमर के रोना रोंव, न मोला रोनहा मनखे मन भांय।’ दुकालु के बात ह कोनो दारसनिक के बात ले कम नई होय। जइसे वोकर ए कहना हे- ‘दिखावा करहूं त सांसत म पडुहूं।’

एक दिन जब मेहा अपन एकझन संगवारी के घर जाय बर रिक्सा स्टैंड म रिक्सा करे बर पहुंचेंव, तब उहां दुकालु रिक्सा वाले नइ रिहिस। ऐकर सेती दूसर रिक्सा करके मेहा अपन संगवारी के घर जात-जात वो रिक्सा वाले से दुकालु के बारे म त वोहा बताइस के वाले बाबा के दरगाह म कव्वाली होत हे, उहें दुकालु ह देर रात कव्वाली सुनत रहिथै। परन दिन तक कव्वाली होही। बोकर बादेच वोहा रिक्सा चलाही। एक हफ्ता बाद मेहा जब बाजार जाय बर थैला लेके चडक म रिक्सा करे बर पहुंचेंव त मोला देखते ही दुकालु ह अपन रिक्सा लेके मोर तीर आगे।

वोकर रिक्सा म बजार जात-जात मेहा बोकर से दुकालू मोला पता लगे रिहिस के तेहां पाररीनाला वाले बाबा के दरगाह म कव्वाली सुने बर जात रहेच। उहां सुने कव्वाली के कोनो पंक्ति जउन ह तोला बने लगिस होही वोला सुना। ए सुनके दुकालु ह कहिस- बाबू साहेब मोर पसंद के पंक्ति आपो ल पसंद आय ए तो जरूरी नइये। फेर मोर पसंद के पंक्ति ए हे- ‘पल भर म माफ कर दिया सारे गुनाह को, इतना पसंद है, तौबा खुदा को।’ ए सुनेचत हि मेहा दुकालु ल पांच रुपिया देवत कहेंव- मोर डाहर ले तोर सुनाए ए पंक्ति पर ‘दाद’ के रूप म ऐला कबूल कर। दुकालु तब मोला आदाब करत हांसत ओ रुपिया ल ले लिस।

विजेन्द्र श्रीवास्तव
राजनांदगांव