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गोठ बात

ना बन बाचत हे ना भुइयां, जल के घलोक हे छिनइयां

छत्तीसगढ़ हा पूरा देस मा एक ठिन अइसे राज हरय जिहां तीन जिनिस के कभु कमी नइ रहे हे। ये तीन जिनिस हरय बन, भुइयां अउ पानी। छत्तीसगढ़ मा जेन कोति भी जाहु, उत्ती ले लेके बुढ़ती अउ रक्क्छहु ले लेके भंडार कोति। सबो दिसा मा भरपुर बन, भुइयां अउ पानी मिलही। अउ इही बन बन-भुइयां मा भरे हे लोहा, टीना, कोयला के भंडार। इही भंडार जइसे छत्तीसगढ़ वाला मन बर पाप सरी होगे। काबर कि ये जिनिस के भंडार होय के बाद भी बन-भुइयां अउ पानी के बीच रहइयां मन के उद्धार नइ होय हे।

जब ले ये पता चले हे कि छत्तीसगढ़ हा देस-दुनिया मा लोहा-टिना अउ कोयला के भंडार वाला राज हरय इहां के बन-भुइयां ले लेके पानी छिने के, लुटे के, वोमा कब्जा करे के, खरीदे के, बेचे के बुता चलत हे।
आज परदेस के हाल का होवत ये हा कोनों ले लुकाय लुके नइहे।

बैलाडीला ले लेके मैनपाट तक के हरियर कोरा मा रोज जेसीबी चलत हे, बारुद ले छर्री-दर्री होवत हे। एक पहाड़ ले दू पहाड़, दू ले चार अउ चार सौ होवत हजार हो गे हे। पहाड़ खोदाय के सुरू होइस जंगल कटना सुरु हो गे। कांगेर घाटी के हरियर रंग कम होवत हे, हसदेव के बन मा करिया रंग दिखत हे। पहाड़-बन ऊपर खतरा हा जंगल के रवइयां मन बर खतरा बना दिस। जब देख तब हाथी जंगल ला छोड़ बस्ती मा आ जथे, तेंदुआ-भालू तो सहर मा घुसर जाथे। अइसन काबर होवत हे येला सब जानत हे। तभो ले दुःख के बात हे के बन-भुइयां कम होवत हे।

पानी के कहिनी तो अउ गजब के हे। नदिया-तरिया के गढ़ छत्तीसगढ़ मा तरिया पटावत अउ नदिया सुखावत हे। परदेस के अधार महानदी के धार कइसन हे कोनो भादों के खतम होवत ही देख सकत हे। डखनी-संखनी के पानी लाल होगे हे, सबला दिखत हे इंद्रावती, सिवनाथ के का हाल होगे हे। केलो हा तो फेक्टरी मन के जहर ले मर ही गे हे। हसदेव अउ सिवनाथ के पानी तो बिक गे हे। खारुन, पैरी-सोढ़ूर, सिंदुर भी मरत जाथ हे।

रतनपुर, सिरपुर, रायपुर जइसे कतको राज के चिन्हारी तरिया रहे हे। फेर आज इहां कतका जगह मा तरिया हे येहा अब सोध अउ खोज के बिसय बन गे। बुढ़ा तरिया ले लेके महाराज बंद के पीरा सब के आंखी के आगु हे। कतको तरिया तो रजाबंधा सहि मइदान बन गे हे। नदिया-तरिया के संगे-संग बांध के बांध ये परदेस मा बेचे के काम हो चुके हे। अइसनेहे कतको परयास घलोक चलत रहिथे। इंदल-जिंघल, येदांत-फेदांता, आमचानी-सडानी मन बर जइसे खुल्ला छुट होवत हे। बन-भुइयां जल सब जइसे कुछ एक मन बर इक्कठा होवत हे। आज कल पानी छेके के बुता बड़ जोर धरे हे। नदिया मन मा एनीकेट बना-बना के नदिया के बहाव ला खतम करे के साजिस होवत हे। नदिया के हतिया करे बड़ बुता होवत हे।

जल के ज्ञानी नदीघाटी मोरचा के संयोजक गौतम बंधोपाध्ये कहिथे के छत्तीसगढ़ मा जल संकट बड़ विकट होवत जाथ हे। सिवनाथ नदिया ला बेचे के जेन काम सरकार करे रहिस वोखर ले आज तक मुक्ति नइ मिल पाय हे। सरकार हा नदिया मन मा उत्ता-धुर्रा एनीकेट ऊपर एनीकेट बनात जाथ हे। काबर अउ काखर बर बनात हे अउ का सोच के बनात हे सरकार येला ठीक-ठीक बताना चाही। मोर जानकारी मा अभी तक परदेस भर के आधा दर्जन नदिया मन 238 एनीकेट बनाएं जा चुके हे। 150 अउ एनीकेट बनाय के तइयारी सरकार के हे। एक ठिन नदिया मा जगह-जगह एनीकेट बनाके पानी रोकना मतलब वोखर हतिया करना ही हरय। आज महानदी-सोढ़ूर-पैरी तीन नदिया के संगम होय के बाद भी राजिम मा पानी नइ रहय..काबर ? येखर जवाब कोनों सरकार कना नइ होही।

सिरतोन बात तो ये हरय के आज गांव-गंवई ले के सहर तक हर कहुँ गरमी के दिन मा जल संकट कतका विकट अउ विकराल रूप ले लेथे येला हर बछर देखें जा सकत हे। पानी बर हो हल्ला, सड़क जाम, धरना-घेराव तो होबे करथे, अब तो लड़ई-झगड़ा, मारपीट अउ खून-खराबा घलोक होय लगे हे। पेड़ काटना जरूरी हो गे, अउ पेड़ लगाना मजबूरी हो गे। जंगल उजाड़ के सहर मा जंगल बनाय के चोचला होवत हे। गाँव उजाड़ के क्रांकिट वाला सहर बसाय जाथ हे। बनइयां-जनइयां सब एक ले बड़ के एक बिद्धान मन हे। तभो ले बुता उहीं बन-भुइयां अउ जल खतम करे के इही होवत हे। कहु नवा सहर बनाय बर, कहु कोयला खने बर, कहु बड़े-बड़े बिजली घर बर, कहु आनी-बानी कारखाना बर। कतका ला लिखव अउ का-का ला लिखव। पढ़इयां मन घलोक कइही बेमेतरिहा हा बिकास बिरोधी लागथे।  अच्छा सड़क, सहर, रोजगार वाला कारखाना काला नइ चाही। अउ जब ये सब चाही ता बन-भुइयां अउ जल तो बेच ला परही। फेर मैं तो इही सोचत हव अउ खोजत हव के बिकास के आधार का बन-भुइयां अउ जल के कीमत मा ही हो सकत हे ? आप मन कना जवाब होही ता महु ला देहू। अगोरा मा..।
जय जोहार
वैभव शिव पाण्डेय
संवाददाता, स्वराज एक्सप्रेस, रायपुर

One reply on “ना बन बाचत हे ना भुइयां, जल के घलोक हे छिनइयां”

बहुत सुघ्घर …

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