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किताब कोठी नाटक

नील पद्म शंख

अघवा: मया के सपना
पिछवा: घोर कसमकस

परदा भीतरी ले

मया आगि हवय, कोन्हों बुता नी सकंय।
मया धंधा हवय, कोन्हो जान नी सकंय।।
मया मिलाप हवय, कोन्हों छॉंड़ नी सकंय।
मया अमर हवय, कोन्हों मेटा नी सकंय।।

जान चिन्हार

नील – नायिका
पद्म – नायिका
शंख – नायक
रतन – शंख का मितान
कैंची – नील के गिंया
पिंयारी – पद्म के गिंया
मानव – नील के ददा
मनुप्रताप – पद्म के ददा
आरती – पद्म के दाई
बंदन – शंख के दाई
अउ आखिर मा
बॉंधोसिंह – शंख के ददा
अघवा: मया के सपना

दिरिस्य – 1

ठान – मानव के महल
मानव अउ बॉंधोसिंह नास्ता करत हवय
बॉंधोसिंह – चाय पीयत पीयत कइथे
मानव तोला कुछु सूरता हवय कि नीही, तुमन मोर सो वादा करे रहव।
मानव – कोन वादा के बात कहत हवस मितान, मोला तो कुछु सूरता नी आत हवय।
बॉंधोसिंह – अरे बुद्धू, अउ हर मोइच ला बताय बर लागही, तोर बेटी हर मोर बोहरिया होय के लइक हो गिस हवय मितान।
मानव – मैंहर सच्ची भुला गये रहेंव मितान, मोर बेटी बिहाव के लइक हो गिस हावय, ओकर दई ददा दुनों मइंच हर हावौं मितान, मया हर अंधवा होथे एकर सेती भुला गये रहेंव। ददा के घर ले बेटी ला जायेच बर पड़थे, आज ले एक महिना पाछू तुंहर बरतिया मोर घर मा आ जाही।
नील आथे
नील – काकर बिहाव के बात ला गोठियावत हावा , तुमन दूनों मितान।
बॉंधोसिंह – तोर अउ मोर बेटा शंख के बेटी।
नील लजा के भाग जाथे ।
बॉंधोसिंह – अबड़ लचकुरही हवय, अपन बिहाव ला सुन के लजा के भाग गिस। आप महूँ जात हावौं मितान ,मोला घलोक तियारी करे बर हवय।
बॉंधोसिंह इसने कहके चल देथे। नील आथे ओकर ऑंखि हर डबडबाय हावे।
मानव – आ बेटी मोर तीर मा बइठ,तोर आंखि काबर डबडबाय हावय बेटी?
नील – मैंहर अतका जादा बुरी हावौं , मोला घर ले निकालत हावस।
मानव – मैंहर तोला काहॉं निकालत हावौं बेटी, मैं तो तोर घर ला बसात हावौं।
नील – का जवान रूखवा ला उखाड़ के दूसर कहूँ जगाय मा जाग पाही? ददा।
मानव – तिरिया मन जीथे बेटी, तिरिया के जिनगी हर बिना आदमी के मंजिल मा नी जा पाय, आदमी तिरिया के परान हवय, लइकई मा बाप के ओरछा मा, जवानी अपन मइनसे के आसरा मा, बुढ़ापा बेटा के छँइया मा गुजारत हावय। तिरिया एकेझिन काहॉं ले आघू बाढ़ पाही।
नील – ददा आदमी घलोक तो तिरिया बिन अधूरा हवय, ददा बेटी के लइकई चाहत हवय, मइनसे अपन तिरिया के बॉंह मा अपन मंजिल पाथे, बुढ़ापा मा बेटी के सूरता जादा आथे।
मानव – हाहो बेटी , ठीक कहत हावस, दूनों पूरा मनखे के दू ठन रूप हावय, एक दूसर के बिना आधा हावय, अधूरा हावय, धरती मा बीज छींचोइया मोर खेत कइथे अउ होइस घलोक ओकर खेत, इसने तिरिया हर आदमी के खेत होथे, आदमी तिरिया ला जिसने बनाय बर चाही, उसने ओहर बनही, काबर कि परकिरति हर दूनों के रूप, गुन, अउ भाव मा अंतर बनाय हावय।
नील – मैंहर नी मानो ददा, आजकाल तो सबो मामला मा तिरियामन आदमीमन ले आघू हावय।
मानव – हाहो बेटी, आदमी के छंइया मा रहत ओमन के उपर मा सासन करत हावय, इसने मा तिरियामन आदमीमन ले आघू हो गिन । इच हर ओमन के सही जिनगी हावय।
नील – हाहो ददा, बड़खामन के आज्ञा छोटेमन ला करेच बर हावय, तैंहर मोर बर छांटे होबे, वोहर बनेच होही।
मानव – हाहो बेटी, मोर मितान के बेटा शंख बिस्नू के शंख साही हावय।

दिरिस्य: 2

ठान – बॉंधोसिंह के बगीचा
शंख अउ रतन गोठियात गोठियात टहलत हावय।
शंख – मैंहर बिस्नू के शंख साही कड़ा हावौं, मोर भीतरी मा कोंवर भाव हावय, मोर मया के भाव हर पद्म ले हावय।
रतन – कोन पद्म ? कहूँ हामर पिरींसपाल मनुप्रताप के बेटी तो नी होइस?
शंख – वोइच पद्म हवय, रतन। नायिका मा वोहर पद्मिनी हावय, वोहर विद्यापति के राधा, जायसी के पद्मावती अउ प्रसाद के सरद्धा हावय।
रतन – तोला तो मया हर कबि बना दिस हवय मितान।
शंख – रतन, मया मानवता के हद हावय, मानव मया पाके आपन मयारू मा बूड़ जाथे। ओला अउ कुछु चीज के चाहत नी रहय। जमाना ओला बइहा कइथे। मयारू बइहा के पदवी पाथे।
रतन – बइहामन तो बिमरिहा होथे।
शंख – बिमरिहा होय कहूँ , चाहे भोगोइया होय, ओला कहूँ कांछी काहॉं दिखत हावय। ओहर ओइच मा बूड़ जाथे, ओकरेच होके रह जाथे।
बॉंधोसिंह आथे अउ कइथे।
बॉंधोसिंह – हाहो बेटा, मैंहर तोला खुसखबरी सुनाय बर खोजत रहेंव, महूँ घलोक तोला ओकरेच रहे बर कहत हावौं, सच बेटा सुवारी के मया इसनेच होथे, सबो ओकरेच होके रह जाथे, बेटा मैंहर तोर बिहाव मोर मितान के बेटी नील करा तय कर दे हावौं।
रतन – सच्ची काका, बधाई होवय मितान।
शंख – कइसे बधाई मोर मितान
बॉंधोसिंह – मैंहर जात हावौं, तुमन गोठबात करा
बॉंधोसिंह चल देथे।
पद्म और पिंयारी नाचत नाचत गात गात आथे
सावन के बादर के संग हामन उड़ी
कमलपान करेजा मा ओस हवय पड़ी
का इला सबोझन कहत हवय पिंयार
हामर हिरदे मा आवत हावय बहार
पद्म अउ शंख के ऑंखि मिलथे, दूनों संग संग नाचत गात हावय, रतन अउ पिंयारी घलोक नाचत गात हावय।
आवा हामूमन इहें पिंयार करी
मिलके दूनों ऑंखि चार करी
सोलह सावन हवय पिंयार के मौसम
बाढ़त रहय मया, कभू नी होवय कम
कहत हवय का, इ सावन के घटा
एक दूसर कर पिंयार तैं झन बटा
क्हत हवय का, इ मँजूर के छटा
बढ़ात जावा पिंयार कभू नी घटा
करत हावे सबो परानी इहॉं पिंयार
पिंयार करोइया हमींच निअन चार
फेर काबर जमाना हमला हे जरत
जर के का करही रिही हाथ मलत
आवा हामूमन इहें पिंयार करी
मिलके दूनों ऑंखि चार करी
रतन – शंख ए शंख कोन सोच मा बूड़ गे।
शंख – आं हां एकठन सपना रिहिस, जेहर सपना बनके रह गिस, वो सपना मा तहू रहय, आज ले एक साल पहिली हामन मिले रहेन आपन पद्म अउ तोर पिंयारी ले।
पिंयारी – देख पद्म हामर कालेज के हीरो।
पद्म – हीरो होइस या जीरो मोला का ?
पिंयारी – हाहो यार तोला का, तैंहर तो हामर कॉलेज के हीरोइन हावस, हीरोइन बर का हीरो, ये पद्म , ओकर मितान सो मोर चिन्हारी करवा दे ना, तैंहर नी सही मैंहर तो रोगिन हो गये हावौं, मोला रतन बड़बढ़िया लागथे।
पद्म – ठीक हावय चल ओकर सो मिलवा देत हावौं,
ओमन के तीर मा जाके
हां जी तुमन दूनों मितान का करत हावा ?
रतन – का करे बर हावे, हामन नास्ता एतीच आके करथन।
पद्म – ठीक हावय, मोर गिंया तो तोर बर मर जात हावय। मोर गिंया हर तोर हिरदे मा रिही का?
रतन – मोरो मितान तो तोर बर मर जात हावय। मोर मितान तोर हिरदे मा रिही का।
पद्म – एहर मोर सवाल के जवाब नी होइस।
रतन – जब तैंहर मोर सवाल के जवाब नी देबे, महूँ हर तोर सवाल के जवाब नी देवों।
पद्म – अगर मैंहर हाहो कहत हावौं ता।
रतन – महूँ हर हाहो कहत हावौं। चला आपन आपन संगी तीर मा जई।
चारो हॉंसत हॉंसत दू भाग हो जाथे, पिंयारी अउ रतन, पद्मा अउ शंख।
शंख – तैंहर ये कालेज के सबले सुघ्घर छोकरी हावस, सुघ्घरता मा तोर
कोन्हों जवाब नीए।
पद्म – शंख तैंहर मोर सुघरई ला देख के छांॅटे हावस।
शंख – नीही पद्म, तोर बाहरी सुघ्घर ले तोर भीतरी सुघ्घर हर जादा हावय, वोई हर मोला तीरे हावय। तैंहर तिरिया सुघ्घर के हद हावस, तोर मन के सुघरई हर चिरई ले घलोक छुछिंद हवय, मया के चिन्हारी छुछिन्द चिरई हवय।
पद्म – तैंहर तो अबड़ चापलूस लागत हावस, इसने बोली ला तो कबि मन बोलथे।
शंख – मयारू मन चापलूस नी होंय पद्म, वोमन तो सत होथे, मनईमन ला ओहर चापलूस नजर आथे, मया के भाखा के लिखोइया कबि नी होय ओहर खुद मयारू होथे।
पद्म – तैंहर जानत हस शंख , मैंहर इ कालेज के पिरींसपाल के बेटी हावौं।
शंख – जानत हावौं पद्म, तोर चरित, तोर बिहवार हर मोला मार दिस, मोर दई ददा घलोक इ रिस्ता ला ना नी करें।
पद्म – मोर दई ददा करिही, तैंहर नी जानत हस शंख, मंैहर केंसर के मरीज हावौं। महूँ तोला पिंयार करत हावौं, एकरे बर तोर सो नी लुकात हावौं, मया पिंयार मा कोन्हों लुकई नी रहय।
शंख – एमा का फरक पड़ही पद्म, दीया के बुताय मा पतंगा घलोक सिर पटक के मर जाथे। इला सत के मया कइथे, मया मा सुवारथ बर कोन्हों जगहा नीए। मैंहर तोला आपन बनाय बर तियार हावौं।
पद्म – मैंहर तोर परिक्षा लेत रहेंव शंख। इला जानत रहेंव तभू ले मया हर परिक्षा नी लेय, मया मा सब कुछ सौंप देथे। फेर परिक्षा हर तो हामर घुट्टी मा मिले हावय।
शंख – तैंहर जानत हावस पद्म , मैंहर परिक्षा मा पहिला नंबर आथों, मया के परिक्षा मा मोर नंबर का हावय।
पद्म – पहिला
दूनों एक दूसर ला पोटार लेथे
मनुप्रताप अउ आरती आथे।
आरती – पद्म बेटी पद्म।
पद्म – दई आगिस ना, ओती लुका जा, का हे दई ?
आरती – उहॉं का करत हस बेटी, एती आ, आजकाल नोनी मला का होगे हावय, एकेझिन घूमत रइथे, का जी पद्म के बापू।
मनुप्रताप – मैंहर का जानो, आरती, मैंहर तो बस अतकी जानत हावौं तिरियामन दई होथे।
आरती – मानत हावौं दई होथे, फेर इसने एकेझिन घुमई,नोनी मला का का होत हावे नी जानत हावा।
पद्म ओमन के लकठा आथे ।
आरती – तोर गिंया नी आइस बेटी।
पद्म – आज ओहर बीमार हवय दई। एकरे सेती एकेझिन आय हावौं।
आरती – जवान बेटी ला इसने एकेझिन नी घूमे बर हावय।
पद्म – का करिंहा दई, घर मा मन नी लगिस।
आरती – घर मा मन नी लगिस, परकिरति मा मया करे बर आय हावस।
पद्म – हाहो दई, मोला परकिरति ले मया होगे हावय, इहां के जरी चेतन सबो ले मोला अबड़ मया लागथे।
आरती – सुनत हावा पद्म के बापू हामर बेटी का कहत हावय।
मनुप्रताप – देखत हावौं अउ सुनत घलोक हावौं, परकिरति के चितेरा परमेश्वर कहॉं हावय।
पद्म – ओ मोर हिरदे मा हावय ददा।
मनुप्रताप – फेर तैंहर वोला परकिरति मा खोजे बर निकले हस, काहां हावय तोर परमेश्वर।
पद्म – मैंहर कुछु नी समझत हावौं।
मनुप्रताप – मया हर खुद सत हावय बेटी, एमा लबारी बर कोन्हों जगहा नीए, ओ देख तोर गिंया ला आपन मयारू ला कइसे पोटारे हावय।
रतन अउ पिंयारी एक दूसर ला पोटारे हावय।
हामर आय के पहिली तहूँ घलोक आपन मयारू ला पोटारे रेहे।
पद्म – ददा
पद्म लजा जाथे।
आरती – हॉं बता बेटी ओहर कोन हावय।
पद्म – शंख
मनुप्रताप – आरती जेकर बारे मा मैंहर तोला कहत रहेंव, वोई हर हामर बेटी बर बने बर हावय, ओइला हामर बेटी हर छॉंटे हावय, हामन ला गरब हावय, ओला बला बेटी।
पद्म – शंख एती आबे, ददा बलात हावे।
शंख लजात आथे।
मनुप्रताप – तैंहर हामर कालेज के होनहार छात्र हावस, परिक्षा तीर मा हावय, पढ़ई मा धियान लगा, परिक्षा के पाछू मैंहर तुँहर घर आके बिहाव के गोठबात करिंहा।
पद्म , पिंयारी , आरती अउ मनुप्रताप चल देंथे।
शंख -आज मैंहर बहुत खुस होवत हावौं मितान, मैंहर जेला पिंयार करे ओहर बड़ जल्दी मोर सुवारी बनही।
रतन – मुबारक मितान, मोरो बर कुछु उपाय करे हावस।
शंख – करे के का हावय पद्म मोर ,पिंयारी तोर।

दिरिस्य: 3

बंदन – शंख तो कहत रिहिस काल ओकर पेपर खतम हो गीस हावे, फेर आज ले काबर नी आइस।
बॉंधोसिंह – संगी मितान मिल गिन होही , मौज मस्ती करत होही, पिकनिक गे होही, पिक्चर देखत होही।
शंख अउ पद्म नाचत गात हावय।
पंछीमन इहां गात हावय मया के गीत
तोर बॉंहों मा मोर जिनगी जाही बीत
कोयली मया के तराना गाही
पपीहा पीउ पीउ के रट लगाही
स्वाती हर अमरित जल बरसाही
चातक हर आपन पियास बुझाही
आ बंध जाई हामन दूनों मया के फांस
तैंहर हस जोही मोर जिनगी के सांस
पंछीमन इहां गात हावय मया के गीत
तोर बॉंहों मा मोर जिनगी जाही बीत
कौआमन मया के संदेश ला सुनाही
नाचही मंजूर अउ जमो पॉंख बगराही
बेंगचामन जमो पानी मा टर् टर् टर्राही
पिरोहिल अपन मयारू ला मया बलाही
परकिरति जमो हावय इहां तो अजाद
आपन पिरोहिल के करले तैंहर याद
पंछीमन इहां गात हावय मया के गीत
तोर बॉंहों मा मोर जिनगी जाही बीत
पद्म – काल जावत हावस शंख, कहूँ उहॉं जाके मोला भूला तो नी जाबे।
शंख – पद्म कहूँ आज तक कोन्हों आपन परान ला भुलाय हावें, मोला तो हर घरि सूरता आही।
पद्म – महूँ ला तैंहर हर घरि सूरता आबे, सूरता आही ता का करिंहा शंख।
शंख – मोर फोटो ला देखत रइबे।
पद्म – का फोटो मा मन भरही ?
शंख – मन हर तो नी भरे पद्म, फेर कछु दिन बर मन ला मनाना पड़ही।
पद्म – तैंहर घर नी जा अउ दई ददा ला इहेंच बलाले।
शंख – नीही पद्म ,मैंहर अतका सुवारथी नी होवव, मोला घलोक छोड़ाई हर सहन नी होवत हावय। फेर का करों ,परकिरति हर दिन बनात बनात रात घलोक बनाइस हावय। बिरहा हर मया के परिक्षा होथे, बिरहा मा मयारू मन सोना जइसने सुघ्घर चमकथे।
पद्म – मैंहर सब सहिहा शंख, तोर बर सब सहिहा।
पद्म चल देथे। रतन अउ पिंयारी आथें।
पिंयारी – शंख भइददा, पद्म चल दिस।
शंख – हाहो पिंयारी , वोहर मोला आपन आंॅसू नी दिखांव कहत हावय।
रतन – चली बेला हो जाही, घर मा दई ददा रस्ता देखत होंही । जाते साथ किंही, परिक्षा के पाछू तुमन काबर नी आवा, एक दिन कती रूके रहा।
शंख रतन अउ पिंयारी चल देथें।
बंदन – आन दे बेटा मला, बासी खाय बर दिंेहा, दई कतका रस्ता देखत हवय वोकर ख्याल नीए, पिकनिक गे हावे, ओमन के सिकनिक नी बना दिंहा ता किंही। मोर नाम घलोक दाई नी होइस।
शंख अउ रतन आथे
शंख – पांय परत हावौं दाई।
रतन – पांयलागी दई।
बंदन – पांय लागी के बच्चे, दई ला इसने रस्ता देखवाथा, तुमन परिक्षा के पाछू काबर नी आवा।
शंख – रतन रतन तैंहर बता ना।
रतन – एकरे बर दई, हामन तुमन के काम ला असान करत रेहेन।
बंदन – बेला ले आहा अउ बहानाबाजी करिहा।
रतन – दई तुंहर बर बोहरिया खोजत रेहेन।
बंदन – सच बेटा, तैंहर हामर बर बोहो खोजत रेहे, फेर सच मा तुमन हामर काम असान कर देवा, कोन हवय हामर बोहो बता बेटा ।
रतन – दाई चाय वाय कुछु देबे कि गोठ मा गोठ करत रइबे, सफर मा अबड़ थक गे हावन।
बंदन – मैंहर भुला जात रहेंव बेटा, मैंहर हलुवा पहिली ले बना के राखे हावौं, हाथ मुँहू धो लेवा फर नास्ता बर बइठा।
बंदन नास्ता ले बर जाथे।
शंख – दई बड़ खुस होवत रिहीस।
रतन – वोला तो खुस होय बर हावय।
शंख – आभी पद्म अउ पिंयारी का करत होंही।
रतन – हामन के केसेट ला देखत होंही।
पद्म अउ पिंयारी केसेट ला देखत हावय ,जेमा पद्म अउ शंख नाचत गात हावय।

कस्तूरी कस्तूरी कइसे सहो मैंहर ये दिल के दूरी।
आजा मोला पोटार ले , बूझा दे मोर पियास पूरी।।
तैंहर हावस मोर जिनगी, तैंहर हावस मोर जिनगानी।
तोर सिवा नीए मोर कोन्हों, तइंच हावस मोर कहानी।
जवानी ला तोर देख के, मोर दिल मा लागिस छूरी।
आजा मोला पोटार ले , बूझा दे मोर पियास पूरी।।
कस्तूरी कस्तूरी कइसे सहो मैंहर ये दिल के दूरी।
आजा मोला पोटार ले , बूझा दे मोर पियास पूरी।।
नैया जइसने तोर नयना, समुद्दर जइसने किनारा।
बोल तोर अतका गुरतूर, जेमा गयेंव मैंहर में मारा।।
बोलई ला सुन के तोर, मोर दिल मा लागिस छूरी।
आजा मोला पोटार ले , बूझा दे मोर पियास पूरी।।
कस्तूरी कस्तूरी कइसे सहो, मैंहर ये दिल के दूरी।
आजा मोला पोटार ले , बूझा दे मोर पियास पूरी।।
बोहो लो मैंहर तोला कस्तूरी, आपन बॉंहों के बंधना।
एक एक अंग ला तोरे , मैंहर देवौं मीठ मीठ चूमना।।
लगे बर लगे हस तैंहर गोरी, जन्नत के तैंहर नूरी।
आजा मोला पोटार ले , बूझा दे मोर पियास पूरी।।
कस्तूरी कस्तूरी कइसे सहो मैंहर ये दिल के दूरी।
आजा मोला पोटार ले , बूझा दे मोर पियास पूरी।।
नीलम हस तैंहर मोरे, मैंहर हावौं गे आगास तोरे।
तोर बिना मोर का हावय, तइंच हावस परकास मोरे।।
मैंहर डरा गयेंव देख के तोला, जे तैंहर मोला घूरी।
आजा मोला पोटार ले , बूझा दे मोर पियास पूरी।।
कस्तूरी कस्तूरी कइसे सहो मैंहर ये दिल के दूरी।
आजा मोला पोटार ले , बूझा दे मोर पियास पूरी।।
राधा हावस तैंहर मोरे, मैंहर हावौं गे श्याम तोरे।
सीता हावस तैंहर मोरे, मैंहर हावौं गे राम तोरे।।
बुद्धि के देवी तइंच सारदा, नी होवे हमर कुछु दूरी।
आजा मोला पोटार ले , बूझा दे मोर पियास पूरी।।
कस्तूरी कस्तूरी कइसे सहो मैंहर ये दिल के दूरी।
आजा मोला पोटार ले , बूझा दे मोर पियास पूरी।।
आज हामन के हावय कस्तूरी मंधरस भरी ए रात।
लजा लजा के करत हावस गोरी तैं मोर सो बात।।
गौरीशंकर कस योग करी, नी रहे हममें कुछु दूरी।
आजा मोला पोटार ले , बूझा दे मोर पियास पूरी।।
कस्तूरी कस्तूरी कइसे सहो मैंहर ये दिल के दूरी।
आजा मोला पोटार ले , बूझा दे मोर पियास पूरी।
पद्म – पिंयारी आज मैंहर जानत हावौं, पिंयार का हावय, पिंयार ला मैंहर असान समझत रेंहे, पिंयारी पिंयार हर तलवार के धार ले कम नी होवय,इ बिरहा हर मोर दिल ला काटत हावय।
पिंयारी – महूँ ला आज रतन के अबड़ सूरता आत हावय, चली हामन वोमनला मन मा बुलाई।
शंख अउ रतन आथे, पिंयारी अउ पद्म चल देथे।
शंख – हामन मनेमन आपन आपन देवी के पूजा करी।
रतन – मन मा पूजा करे ले देवी मिल जाही शंख।
शंख – हाहो मिल जाही रतन।
दूनों आंखि मूंॅद के सपना मा बूड़ जाथे, पद्म अउ पिंयारी आथे।
पिंयारी – रतन बिरहा हमनला चाबे बर कूदत हावय।
रतन – हामू मनला पिंयारी , इ शंख के हालत तो देख, आपन पद्म बिना कइसे लागत हावय।
पद्म – शंख तोला एक पल के बिरहा हर कइसे बना दिस हावय, तैंहर बिरहा ला परिक्षा कहत रेहे।
शंख – तैंहर अबड़ उदास हस।
बंदन आथे।
बंदन – तुमन आंखि ला मूँद के का करत हावा।
शंख – आं रतन दईं !
बंदन -आं रतन का कहत हावस।
रतन – दई हामन भगवान के पूजा करत रेहेन।
बंदन – भगवान के पूजा करत हावा कि भगवती के पूजा करत हावा, दूरिहा ले सपना मा पोटारत हावा।
रतन – इसनेच कुछु करत रेहेन दई।
शंख – ओमन के बिना एक छन नी रेहे सकत हन हामन।
बंदन – तुंहर ददा ला आन देवा, मैंहर ओकर सो कह देत हावौं, वो तुमन के बिहाव के बात करे बर जाहीं।
शंख – दई ओमन परनदिन हामर घर आत हावें।
बंदन – कोन मन बेटा, आभी ले तैंहर ओमन के नांव नी बताय हावस।
रतन – हामर पिरींसपाल के बेटी पद्म, हामर शंख बर अउ ओकर गिंया
पिंयारी मोर बर।
बंदन – इसने बात हावय, एकरे सेती कतको बेरा पिरींसपाल घर के बात कहत रेहे।
शंख – मैंहर तो कहत रेहे, पद्म हर हामर कक्षा मा पढ़त हावय अउ सबो ले जादा सुघ्घर हावे।
बंदन ,शंख अउ रतन चल देथे।

दिरिस्य – 4

मनुप्रताप – आज तो बड़ जल्दी तियार होगे पिंयारी ।
आरती – काबर नी होही, आज पहिली बार ससुराल जात हावय। पिंयारी देख तो पद्म का करत हावय।
पद्म दरपन के आघू मा समरत हावय, अउ मुचमुचात हावय।
पद्म – मोर शंख , पींयर साड़ी मा मेसरंग के टिकली कइसने लागत हावय।
पिंयारी आथे।
पिंयारी – बड़ बढ़िया लागही मोर पद्म रानी, लागत हावय तोला पोटार लो अउ तोर गाल ला चूम लों। तोला पोटार लो अउ दुनिया भर ला भूला जांवो।
पद्म -नीही शंख , हामन आपन दई ददा ला कभू नी भूलान, दई ददा के मया मा हामन जनमे हावन, हामन आपन जनमदाता मला भूला जाबो ता भगवान हामन ला कभू माफ नी करे।
पिंयारी – काबर नी करही , मया हर तो भगवान हावय।
पद्म – तैं तैं तैं पिंयारी नटखट गिंया ।
पिंयारी – कइसे आपन शंख मा भुलाय हावस, चल जल्दी तियार हो, तोला गम पता नीए काहॉं जाय बर हावय।
पद्म – मैंहर तो उहॉं हबरगे रेहे, तैंहर आके मटियामेट कर दे।
पिंयारी – का आप मैंहर तोला नी सुहावों पद्म।
पद्म – तोला घलोक आप मैंहर काहॉं सुहाथों, तैंहर तो आप रतन मा बूड़े रथस, जवानी हर मया के दूसर नांव हावय। मया मा बूड़बे वोहर ओकर फर हावय, मया मा आपन मयारू के छॉंड़ अउ कुछु नी सुहाय।
पिंयारी – तैंहर ठीको कहत हावस पद्म।
आरती – जल्दी ले तियार हो जावा, गाड़ी समे मा आही।
पद्म – दई लबारी मारत हावय, का गाड़ी हर कभू सही समे मा आही, चल जल्दी मोर चूंदी ला कोर दे।
पिंयारी पद्म के चूंदी ला कोरत हावय, शंख अउ रतन आथे।
शंख – ओहर चूंदी ला छोरते ता इसने लागथे, जइसने परकिरति मा घाटा छाय हावय, कोरथे ता इसने लागथे ,जइसने कन्हिया तक नागिन झूलत हावय, मैंहर एक दिन बेनी ला नागिन समझ के तीरत रेहे, ओ नरियाइस ता जाने चूंदी ला तीरत हावौं।
रतन – मैंहर पिंयारी के गोड़ के अंगठी ला मछरी समझ गे रेहे, जब ओहर नदिया तीर मा बइठे रिहिस, ओकर गोड़ पानी मा खेलत रेहे, मैंहर मछरी समझ क ओला धरे अउ आपन लंग लाने, पिंयारी पानी मा भडांग ले गिर गिस, ओकर भीजे बदन ला देख के मोर मन हर बाग बाग हो गिस।
शंख – मैंहर पद्म के आंखि के गहियर मा बूड़ना चाहत हावौं। बूड़त मोला लागथे मैंहर परमानंद मा बूड़ गये हावौं।
रतन – सबले पहिली पिंयारी ला मैंहर पींलू पींलू किंहा, वोहर आपन कोइली आवाज पीले पीले किही, फेर मैंहर ओकर होंठ के रस ला पिंहा, मोर तन बदन मा जोश आ जाही, मोर मुरझाय चेहरा फूल जाही।
शंख – कतका समे होगे, घड़ी ला तो देख,आभी ले गाड़ी कइसे नी आइस हे।
रतन – दू बज गिस ना, फेर बारा बजिहा गाड़ी कइसे नी आइस हावय, समझ नी आत हावय।
शंख – मोर डेरी आंखि काबर फरकत हावय। कहूँ गाड़ी हर कुछु हो तो नी गिस।
रतन – पूछ के आत हों ।
रतन जाथे।
फेर आथे।
शंख – रतन का होइस ?
रतन – गाड़ी गिर गिस शंख।
शंख – काहॉं गिर गिस रतन।
रतन – हसदेव नदी के पूल मा गाड़ी गिर गिस।
शंख – नीही ,भगवान इसने नी करें, हसदेव नदी गाड़ी ला नी खाय।
रतन – भगवान अतका खुसी देके फेर नी छीनस, हामन तो आभी जाने रेहेन पिंयार का होथे, जिनगी का होथे, ओला एक दन मा छेवर कर दे।
शंख – कह दे रतन ये सबो हर लबारी हावय। मैंहर पद्म के बिना जी नी सकों।
रतन – पर मैंहर जिंहा पिंयारी के बिना। मोर बर तोला जीना होही मितान।
शंख – तोर बर जींहा, एक मुरदा बरोबर जींहा, परान के बिन तन मुरदा हावय रतन ।
दूनों घर आथें ।
बंदन – तुमन के मुँहू कइसे उतरे हावय।
शंख – हामन के सबो कुछु ला गंवा डारेन दाई।
बंदन – का होइस ?
शंख – जे गाड़ी मा ओमन आत रिहिन, वो गाड़ी ला हसदेव नदी लील लीस।
बंदन – तुमन लबारी मारत हावा।
शंख – तोर बेटा हर कभू लबारी मारथे दई।
रतन – दई शंख सही कहत हावय।
बंदन – आप का बिचार हे बेटा, तोर ददा ला धंधा जनाहा कहके नी केहे रेंहे। धंधा ध्ंाधा बनगिस।
बांधोसिंह आथे
बांधोसिंह – का धंधा हावे बंदना।
बंदन – आप भूला गयेंव ।
बॉंधोसिंह – तुमन के चेहरा कइसे लटकत हावय।
रतन – गाड़ी हसदेव नदी मा गिर गिस।
बॉंधोसिंह – गाड़ी नदी मा गिर गिस, हामर देश के मंतरी कुरसी मा अराम करत हांवे, का होगिस हामर इ गांॅधी बोबा के देश ला ?

मध्यान्तर

पिछवा: घोर कसमकस
कैंची अउ नील बगीचा मा आथें
नील – मोर गिंया , तोला गम पता हावे, मोर बिहाव होवोइया हावे।
कैंची – मोला आज तक नी बताए, काट लिंहा, कोन हावे दुलहा जल्दी बता, नीही ता काट लिंहा।
नील – काट लेबे ता फेर कइसे बताहा ?
कैंची – छांड़ ना गिंया , मैंहर सच्ची कैंची थोरे हावों, जोहर काट लिंहा।
नील – का जानी सच मा काट लेबे ता।
कैंची – बता न, बता न, तोर सपना के राजकुमार कोन हवय।
नील – नी बतांव, पहिली बता मोर बिहाव मा मोर संग जाबे कि नीही।
कैंची – ले जाबे मोला, काट लिंहा, फेर बता न कोन हावे ?
नील – मोर ददा के मितान के बेटा।
कैंची – का नांव हावे , जल्दी बता ना, नीही ता काट लिंहा।
नील – हामन आपन मइनसे के नांव नी लन।
कैंची – काट लिंहा, जे तैंहर नी बताबे, आभी का बिहाव हो गिस हावे ?
नील – होइस नीही ता का होइस, ओहर आप होइस तो।
कैंची – काट लिंहा तैंहर नी बताबे ता, मोला जल्दी बता।
मानव आथे
मानव – कैंची काबर काट लेबे ?
कैंची – काका, नील मोला आपन मइनसे के नांव नी बात हावय।
मानव – कैंची, बड़खा मन के नांव धरे मा ओमन के अपमान होथे, तिरिया मन के आपन मइनसे मन भगवान होथे।
कैंची – काका, तिरिया मला नरक मा डालत हावा।
मानव – ना बेटी, ना तिरिया दई हावय, ओकर दई रूप हर महान आय।
कैंची – ता काका, तूइंच बता देवा ना।
मानव – मोर मितान के बेटा के नांव हावय शंख।
कैंची – शंख देखे मा किसने दिखथे काका ?
मानव – वोहर बिस्नू के शंख जइसने लागथे।
कैंची – फेर वोहर शंख जइसने कड़ा होही ।
मानव – नीही बेटी, मया के फूँक मा ओमा सुघ्घर अवाज आही।
शंख गीद गात हावय।
मोर मितवा ,तोर ले बिछड़ के, मैंहर बइहा हो जाथों।
गला धरत हावय दुनिया, मैंहर छटपटा के रहि जाथों।।
साथी रे ,मितवा रे, तइंच हावस मोर साथी मितवा रे।
हर घरी तइंच हर रइबे मोरे साथ मा मोर साथी रे।
हर घरी करत रइबो हामन मुलाकात रे मोर मितवा रे।।
साथी रे ,मितवा रे, तइंच हावस मोर साथी मितवा रे।
कभू नी बिछड़न हामन हमराज मोर साथी मितवा रे।
अबड़ मुश्किल मा हों मैंहर आज मोर साथी मितवा रे।।
तोर बिना मैंहर रोगी बन जाथों मोर साथी मितवा रे।
रोगी सरीर रोगी हिरदे ला पाथों मोर साथी मितवा रे ।।
साथी रे ,मितवा रे, तइंच हावस मोर साथी मितवा रे।
सुन के पुकार मोर आ जाबे मोर साथी मोर मितवा रे ।
नील अउ कैंची आथे, शंख ला ओमन ला पद्म अउ पिंयारी लागथ, काबर कि ओमन के रूप हर उसनेच हावय।
शंख – पद्म पद्म पद्म तैंहर सुनत हस कि नीही। तैंहर मोला नी चिन्हत हावस। मैंहर हावों तोर शंख।
जाके पोटार लेथे।
नील – तैंहर मोर भगवान हावस।
शंख – तैंहर पद्म हस, फेर कइसे नी सूनत रेहे।
नील – मैंहर सुनत रेहे मोर भगवान।
कैंची – काट लिंहा , कोन हस गुंडा, मोर गिंया ला जबरदस्ती करत हस।
नील – झन काट मोर गिंया , इच मोर भगवान, मोर मयारू, जेकर संग मोर बिहाव होवोइया हावय।
कैंची – ए बिहाव तक फूल स्टाप , बिहाव के पहिली कैंची, काट लिंहा, चल जल्दी घर चल।
शंख चल देथे।
नील – देखे मोर मइनसे मोला पद्म कहके मोर पदवी बढ़ात रिहीन, नील ले पद्म हर बड़खा होथे मोर गिंया , अउ शंख के तीर मा रइथे।
कैंची – नील पद्म शंख , नील पद्म शंख, नील पद्म शंख, देखें अउ समझे, काट लिंहा , बिहाव के पहिली इसने पिंयार करबे ता, मोला तो वोहर बइहा लागत रिहीस।
नील – तैंहर गलत कहत हावस कैंची, वो बइहा नीही कबि हावे, कबि मन आपन मा मस्त रइथे, एकर सेती मइनसे मन ओला बइहा कइथे।
कैंची – नील मोला वोहर सच के बइहा नजर आत रिहीस, वोहर पद्म नांव के कोन्हों टूरी करा पिंयार करत हावय।
नील – कैंची, इसने नी होइस, मोर मइनसे मोइच ला पद्म नांव ले बलात रिहीन।
नील के बिहाव होत हावे।
मानव – बेटीमन पराया धन होथें, नील मैंहर तोला आपन घर ले बिदा नी करथे, बेटी मला घर ले बिदा करे बर लागथे, ससुराल में सुखी रइबे, तोर ददा के दुआ तोर साथ हावय।
नील सुहागसेज मा चिमट के बइठे हावय, शंख आथे।
शंख – आज गिरहस्थी के सुरूवात हावय अउ तैंहर चिमट के बइठे हावस, नील ला पोटारिहा कइथे, नील छटपटाथे,
नील -नीही, आज नीही,
शंख – आज नीही ता फेर कब, आज के दिन के मैंहर बड़ इंतजार करे हावौं, ता आज इ सुखद घड़ी हर आय हावे,आज हामर नावा जिनगी के सुरू हावय, दिल मा ठप्पा लगाई अउ जिनगी ला आधू बढ़ाई।
नील – स्वामी आज नीही, परनदिन, परनदिन हामन मंधरस रात ला खुल के मनाबो।
शंख – आज काबर नीही पद्म, दिल मा जे आग बरसों ले जलत हावय ओला आज बूझन दे।
नील – मैंहर पानी नी होवो स्वामी जेमा तुंहर पियास बुझाही।
धूरिहा भाग जाथे।
आज बिहाव के तीसरा रात हावय।
शंख – पद््््््््््््म ,आ मोर तीर मा आ।
नील – लेवा आ गयेंव, का कहत रहा ?
शंख – आज बिहाव के तीसरा रात हावय। तोला गम पता हावे कि नीही।
नील – हावे गम पता एकरे बर तो सम्हरत हावों।
शंख – सम्हर के बिजली गिराबे का ?
नील – बिजली गिराय के नीही, बिजली बुताय बर हावे।
बिजली बुता देथे, दूनों पोटार लेथे अउ सूत जाथे। बिहान पहाथे, शंख सूतत हावे, नील ओला जगाथे।
नील – आज काम मा नी जाय बर हे का। आभी ले सूतत हावा। 9 बज गिस ना चला उठा।
शंख – काम मा जाके का करिंहा , आभी तैंहर कड़कत हावस, तोर काम नी करिंहा ता फेर अउ कड़कबे।
नील – जलदी तियार होवा, काम मा जावा।
शंख – आज मैंहर छुट्टी ले ले हावौं, आज काम मा नी जावों।
नील – इसने बात हावे ता उठा, हाथ मुँहू धोवा, मैंहर चाहा लानत हावों।
शंख नील ला आपन तीर मा तीर लेथे, अउ ओकर होंठ ला चूम लेथे,
शंख – होंठ के पियाली ला उमर भर बर होंठ मा लगाय रहो। इ चाहा करा वो चाहा बड़ फीका लागही।
नील – फेर तूँ कबि जिसने बात करत हावा।
शंख – जेकर सुवारी सुघ्घर के सीमा हावय। खुद पद्म हावे, ओकर मइनसे कबि नी होही ता फेर का होही।
नील – ददा का किहीं, जल्दी उठा।
शंख – किंही का ओमन दूनोंझन तीरीथ करे जात हावें, जानत हस काबर।
नील – नी जानत हावों ,बताहा त तो जानिंहा।
शंख – हामर इहॉं कतका दिन ले चलत आत हावय, हामर इहां कोन्हों टूरा के बिहा होथे ता दई ददा तीरीथ जाथे, अउ उहॉं जाके भगवान ले पूजा करथे कि ओमन ला जलदी बोबा,बई बना देवे, अउ एती पिंयार करे बर खुल्ला छूट मिल जाथे।
ओला पोटार लेथे,
अउ एक ठन खुसखबरी सुन, मैंहर मंधरस रात मनाय बर एक महीना के छुट्टी ले ले हावौ।।
नील -तैंहर बड़ा ओ हावस।
शंख – का हावों ?
नील – रसिया
शंख – सबो कोन्हों आपन सुवारी के रसिया रइथे।
नील – सुवारी करा हर हमेसा बूड़े रहई काहॉं के धरम हावे।
शंख – जवानी जिनगी मा एक बार आथे, बिहाव जिनगी मा एक बार होथे, अउ एक बार के आनंद ला आपन सुवारी मा बूड़ के पाथे ता काहॉं गलती करथे।
नील – तुंहला पता हावय, घर मा नून तेल लकरी नीए, इमन ला कोन लाही।
शंख – सबो लाहा, पहिली एक ठीक चुमा दे दे।
नील – सब्जी घलो नीए।
शंख – सबो लाहा, पहिली एक ठीक चुमा दे दे।
नील चुमथे, शंख चल देथे, कुछु देर पाछू आथे। अउ कइथे।
शंख – गजब होगिस पद्म, तीरिथ जात बस नदी मा गिर गिस, सबो यात्री मन मर गिन।
रोथे
नील – धीरज धरा, स्वामी, भाग के हाथ मा सबो मजबूर हावन।
शंख – येहर भाग के खेल नी होइस पद्म, येहर पाप के खेल हावय, मानव के बनाय सबो कुछु फेल हो जाथे।
नील – बिधाता घलोक मौत के बिधान ला जनम के संग लिख दे हावय।
शंख – जब मनई मन गुमान करिही, ता परकिरति ओकर गुमान ला टोड़ दिही।
—————————————–
शंख – जींहा पद्म जींहा, घोर कसमकस मस जींहा, फेर जींहा, तैंहर मोर साथ देबे न पद्म।
नील – स्वामी तुंहर साथ दे बर आय हावौं।
शंख – फेर कइसे लागत हावय, मोर सबो कुछु हर लुटागिस हावय।
नील – घर मा नून तेल लकरी कछु नीए।
शंख – मोरो करा एको रूपया नीए।
नील – इ घर ला का होगिस स्वामी।
शंख – जब ले दई ददा इ दुनिया ले गिन हावे, तब ले इसने हामन के हालत होत हावे।
नील – जब ले तुंहर नौकरी छुटिस हावय तब ले इसने होत हावय।
शंख – गये समे के नांव झन ले पद्म, गये समे के दुख हर घलो सुख रिहीस। आभी के इ सत ला मैंहर कइसने झेलिहा।समझत नी हावौं।
नील – आजकाल तुंहर मितान घलोक नी दिखत हावे,।
शंख – सुख के सबो मितान हावे पद्म, बिपत मा कोन्हों काम नी आवें।
रतन अउ कैंची आथे।
रतन -हामन उसने मितान नी होवन मितान, हामन सुख दुख दूनों मा काम आथन, सपना देखई हर सच नी होवय, सच मा बड़ मिहनत करे बर लागथे, ता फेर दू बखत के रोटी मिलथे।
कैंची – काट लिंहा , जो हमन ला बात करे बर नी दिहा।
शंख – पिंयारी इसने महुरा कस काबर गोठियात हावस।
कैंची – काट लिंहा , पिंयारी घलोक कथस अउ महुरा कस गोठियात हस कथस।
शंख – पिंयारी , तोर पद्म ले गोठबात नी करस।
कैंची – दुख सुख तो होवा, फेर बता नील पद्म कइसे होगिस।
रतन – जब ले तैंहर पिंयारी हो गे। पाछू बात करबो जा तोर गिंया करा गोठिया।
कैंची – नील कइसने हावस ?
नील – पहिली पद्म बोल, बिहाव के पाछू मैंहर पद्म हो गये हावौं अउ तैंहर पिंयारी हो गे हावस।
कैंची – इसने का ?
नील उल्टी करथे।
ए उल्टी कइसे ?
नील – घर मा खाय बर नीए, अउ नावा पहुना अवइया हावय।
कैंची – नोनी कि बाबू ?
नील – कुछु आय, तोर का हाल हावे?
कैंची – हालचाल का, पिंयारी पिंयारी करत रिहि अउ कुछु नी करे।
नील – गिरहस्ती के गाड़ी बिना पइसा के नी ढुलय।
कैंची – तैंहर ठीक कहत हावस, पइसा मिलही अउ मया बर तड़फत रइबे ता।
नील – कुछु के अतकाहा हर ठीक नी होइस, वो मोला अबड़ मया करथे , अगास के तारा टोड़ के लाने बर किंहा ता लान दिंही, फेर पइसा नी कमाय सके।
कैंची – रतन रतन लानत रइथे, एती मैंहर तड़फत रइथों, ओकर फिकर नीए।
रतन – कोन तड़फत रइथे पिंयारी ?
नील – मोर गिंया अउ कोन ?
रतन – फेर तुमन तो पइसा बर तड़फत हावा।
शंख – हॉं मितान , तड़फई हामर मजबूरी हावय।
कैंची – तूं मया मा बूड़ के थोरे पइसा कमाथा , ता भूख मरे के नौबत नी आथीस।
नील – तूं पइसा के पीछे नी भागथा, तुमन ला झगड़े के नौबत नी आथीस।
रतन – हामन झगड़थन काहॉं , मैंहर पइसा के पाछू भाग जाथों।
नील -ठीक कहत हावे।
कैंची – ठीक कहत हावें। गिरहस्थी के गाड़ी पइसच मा ढुलथे। का मया के बिना गाड़ी ढुल जाही? इनला कहा कुछु मया घलो करें।
शंख – आप समझ आत हावय, गिरहस्थी के गाड़ी ढुलायबर मया अउ पइसा दूनों के जरूरत हावय। दूनो चेत जाई मितान।
रतन – चल मितान हामन धरती ला सरग बनाबो।
सबो मजा के काम करे बर लागथे,
—————————————–
नील के लइका होथे।
नील – स्वामी, मैंहर तुंहला छांॅड़ के जात हावौं, इ लइका के बने देखभाल करिहा।
शंख – नीही , तैंहर मोला छांॅड़ के नी जास।
नील – मौत हर कभू कहके आइस हावे स्वामी, मनई सबो करा लड़ले झगड़ले फेर मौत करा ओहर लड़े सकही।
शंख – दीया के बुताय पहिली पतंगा आपन जर जाथे, इच हर सच मया हावय।
नील – नीही, स्वामी, मैंहर तुंहला मया के भेंट लइका दे हावौं। मैंहर — जात -हावौं।
शंख – नीही पद्म! तोर जाय के पहिली मैंहर जांहा, मेंहर तोर संग जीए मरे के कसम खाय हावों,
नील – फेर मैंहर — मौत ले —नी लड़—पात हावों, तुंहला — आपन लइका के ———- खियाल नीए , तुंहला मोर मया –के — कसम।
शंख – पद्म तैंहर कसम दे ला देर कर दारे, पतंगा पहिली जरही पद्म ,मैंहर महुरा खा दे हावों।
रतन अउ कैंची आथे
रतन – तोला का होगिस मोर मितान।
शंख – ठीक बखत मा आय मितान, तोला हामर नोनी ला सौंपत हावों।
कैंची – तुमनला का होगिस गिंया ।
नील – हामन इ दुनिया ले दूसर दुनिया मा जात हावन।
कैंची – इसने नी कहे मोर गिंया
नील – तुमन ला हामर कसम, निशि ला बने मजा के पालिहा।
कैंची – हाहो हाहो मोर गिंया ।
शंख -मौत हर आखिरी सच हावे, एमा रोय के का बात हावे, ऐमा जशन मनावा, इसने सोचा बड़ जल्दी भगवान घर चल दिस, जिहां ले आय हावन उहॉं जाय बर लागही, मोर निशि ला — बने राखिहा। —हे राम
मर जाथे।
नील – पतंगा गिस आप दीया ला बुझाय के पाली हावय, मोर गिंया हामर निशि ला बने मजा के राखबे, तोर मीठ गोठ ला गोठिया ना।
कैंची – दुख होत कइथे काट लिंहा
नील – थोरे हॉं स के मोर गिंया , हामन निशि के रूप तोर करा हरदम रइबो।
कैंची – काट लिंहा
नील – आप ठीक हावे, आप जात हावों, स्वामी बलात हावें।
मर जाथे, कैंची अउ रतन के ऑंखि ले ऑंसू बोहात हावय। निशि ला दूनोंझन हाथ मा पाय हावें।
परदा भीतरी ले
मया आगि हवय, कोन्हों बुता नी सकंय।
मया धंधा हवय, कोन्हो जान नी सकंय।।
मया मिलाप हवय, कोन्हों छांड़ नी सकंय।
मया अमर हवय, कोन्हों मेटा नी सकंय।।
छेवर
सीताराम पटेल


जीवन परिचयः-
Sitaram Patelश्री रसधर और श्रीमती संहारती के तृतीय पुत्र के रूप में शुक्रवार शरद पूर्णिमा संवत् 2023 को मेरा जन्म शाम के 4.00 बजे हुआ, 28/10/1966 को इस प्रकार मेरा जन्मदिन हुआ, पर मेरे प्रधानपाठक जी ने मेरा नया जन्मदिन 01/07/1966 रख दिया, यही जन्मदिन शासन के लिये मान्य है, पर मैं अपना जन्मदिन शरद पूर्णिमा को ही मनाता हूँ। कुल हमारा नर्मदा गोत्र अघरिया गौटिया परिवार है। मेरी प्राथमिक शिक्षा गृहग्राम रेड़ा तहसील डभरा जिला जॉंजगीर चांपा में हुआ, प्राथमिक प्रमाण पत्र 1976-77 में चंद्रपुर क्षेत्र से प्रथम स्थान प्राप्त किया। माध्यमिक शिक्षा शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला किरारी से किया, माध्यमिक शिक्षा किरारी गॉंव से किया, माध्यमिक परीक्षा प्रमाणपत्र 1980-81 में चंद्रपुर से द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ था, नवमी कक्षा पढ़ने के लिये मैं आदर्श शासकीय नटवर हॉयर सेकेण्डरी स्कूल रायगढ़ आया। वहीं रामझरना पर मौलिक कविता लिखा ।
राक्षसों को मारे राम ने तीर।
वो वसुन्धरा को गया चीर।।
निकला है रामझरना सलिल।
अद्भुत जल हमें गया मिल।।
मानव में बढ़ाता है पाचक गुण।
स्नान से मिलता तीर्थों का पुण।।
मेरी पहली प्रकाशित रचना भूख का साम्राज्य कहानी है,
जो कि 1992 में लोकस्वर में प्रकाशित हुई।
पीए बर कछु नी पान,आके तैंहर मंद पियाबे।
खाय बर कछु नी पान, आके तैंहर बोकरा खवाबे।।
चुनाव देव तैंहर रोज साल आबे, तैंहर रोज साल आबे।
मेरी इस रचना को बहुत पसंद किया गया।

अन्त में –
मैं मोहन की मुरली की मधुर धुन हूँ।
मैं पे्रमियों के रगों में बहने वाला खून हूँ ।।
मीठा न सही ,खारा ही समझ लो दोस्तों,
मैं महामानवों में पाने जाने वाला अवगुण हूँ ।।
नाम – सीताराम पटेल
उपनाम -सीतेश
राज्य -छत्तीसगढ़
जन्मतिथि – 01/ 07/ 1966
जन्मस्थान – घर पत्रघर – रेड़ा
थाना तहसील – डभरा
जिला – जॉंजगीर चॉंपा
राज्य – छत्तीसगढ़
पिन -495692