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व्यंग्य

नौ हाथ लुगरा पहिरे तभो ले देंहे उघरा




बिकास के चरचा चारों मुड़ा म होये । गांव गंवई के मनखे मन बिकास देखे बर तरसत रिहीन । हमर देस अजाद होही न बेटा तंहंले बिकास आही , सुनत सुनत दू पीढ़ही के मन सरग सिधार दीन । तीसर पीढ़ही के मनखे मन घला बुढ़ाये धर लीन । फेर कइसना होथे बिकास तेकर दरसन नी पइन । जब नावा राज बनीस , नावा सरकार बनीस , उही समे ले , “ बिकास अभू आनेच वाला हे , एदे आतेच हे , तुंहर तीर म अमरीचगे “ एकर खूबेच चरचा होइस । फेर काकर पेट म पचथे बिकास , कोन जनी ?
बबा अपन नाती ल बतावत रहय के , बिकास ये दारी आहीच कथे रे…… । नाती पूछीस – कामे बइठके आही बबा विकास हा ? बबा किथे – कामे आही , तेला महूं नी जानव । फेर लोगन किथे के – हमर छत्तीसगढ़ बनही , हमर राज आही , तंहंले बिकास आही । त यहू होये कितको दिन नहाकगे बबा , हमन ला बिकास के दरसन नी होइस । आवत होही , लुकाये होही कहूं करा…….. । हमर बबा बतावय रे बाबू , सड़क बनही तहन विकास होही कहिके । एके ठिन सड़क कितको घांव बनगे , फेर हमर तीर , बिकास नी अइस , हां हमर बिकासखंड के इनजीनियर घर , बिकास होइस कहिके सुने रेहेन वहा दारी । फेर उहू ल देखे नियन , कइसना हे ? थोरिक बाढ़हेन त हमर बबा बतइस के , बिकास रेल मारग ले आही कहिके , हमर गांव म घला निंगिंस रेल मारग , फेर कती कती फेकटरी मालिक मन घर , बड़ अकन बिकास होइस सुने हन । हमर गांव के सपाट भुंइया ल देखके , हमर अगुवा मन इहां हवा मारग ले विकास लाने के सोंचीन । हमूमन बहुतेच खुस रेहेन , खुस रहनाच हे गा , बिकास कन्हो सड़क अऊ रेल मारग ले थोरे आही तेमा , ओ तो हवाच मारग ले आही । हवई जहाज ऐती ले उढिहाये सांय ले , ओती ले उढिहाये सांय ले…… । फेर , हवा हवा म , कते दिन हवा होगे बिकास……. । सड़क , रेल , हवा मारग के सेती रूख रई जनगल कटागे । पानी गिरई कमतियागे , खेत खार , परिया परे लागीस । नरवा के पानी म बंधान बनाके , बिकास ल हमर कोरा म डारे के उदिम सुरू होगे । बांध बनगे , हमर करम कस फूट घला गे , उही दारी ले , बिकास म हमर नेताजी के घर पटागे ।




समय बदलगे । बिकास लाने बर बिजली के तार खिंचाये लागीस । चारों मुड़ा म परकास बगरही , तहंले बिकास खुदे आही । कोन जनी काकर घर अनजोर होइस बिजली के तार म । जबले आहे , महीना के आखिरी म अइसे करेंट मारथे के , बिकास गर्भपात म मर जथे । एक घांव फरमान निकलीस के , जेकर केवल दू झिन लइका रही , तिही मन के बिकास होही । हमन दू झिन के पाछू , तीसर के सोंचेन निही , फेर कहां के बिकास …… । ओहा तो असपताल के डाकटर के सूजी दवई बूटी म अटकगे । जे दिन ले अपरेसन करायेन उही दिन ले , हमर बई के पेट म दरद होये लागीस , पहिली सोंचेन हमर घर बिकास आवत होही । पाछू पता चलिस , जतका हमर पेट पिराही , ओतके डाकटर के बिकास होही ।
एक घांव बिकास भेजइया मन बतइन के देस बर , गोला बारूद तोप बिसाबोन , तहंले बिकास ल अपन पेट म भर के रखइया मन , डर के मारे बाहिर निकालही , तभे आम जनता के घर बिकास पहुंचही । तोप लेवागे , फेर ओ दारी , बिकास इहां ले निकलके दूसर देस म पहुंचगे ।
बबा अपन जवान नाती ल बतावत रहय के , बिकास के अगोरा म मोर चुंदी पाकगे , झरगे । तोर ददा के चुंदी तको पाके लागीस । जम्मो झिन सोंचे लागिन के , कितको बछर ले कले चुप बइठे हे , बिकास भेजइया मनखे हा……. । फेर पाछू जनाबा होइस के , कन्हो स्प्रेक्टम म लुकाके अपन घर बिकास ल लेगे , कन्हो कोइला म चपक के , बिकास म अपन हाथ मुहूं करिया डरीन । बेर्रा मन , बिकास ल , गाय गरू के भोजन कस , खा के हजम कर दीन ।




नावा नावा मनखे , नावा नावा सोंच , फेर खुरसी तो उहीच आये , तेकर सेती डर घला लागथे के , बिकास के जींन्स , गरीब के खटिया के अचवानी म , का बइठही …….. ? ओतके बेर एक झिन मई लोगिन कस , बड़ सुघ्घर नावा लुगरा पहिर के , मटकत रेंगीस । ओकर पहिरई देख , सियनहा ते सियनहा , जवान नाती घला लजागे । लजाना सुभाविक हे गा , गजब सुंदर परी कस दिखत , दगदग ले नावा लुगरा पहिरे रहय , फेर देहें उघरा ……… । नाती किथे – बबा , अतेक सुघ्घर दिखथे , फेर पहिरे के सऊर तको निये । बबा किथे – इही हमर देस के बिकास आय बेटा । मुहूं ल फार दीस नाती……….. । समझिस निही । बबा बताये लगीस – बिकास होथे बड़ सुनदर , जब हमर गांव गली खोर म आये बर निकलथे तब , अब्बड़ सुघ्घर चुक चुक ले पहिर ओढ़ के , तोप ढांक के निकलथे । फेर एकर मारग म , भरस्टाचार के सुरसा मन मुहूं फार के खड़े रिथे , उही मन , ओकर लुगरा ल , जगा जगा ले , अइसे चीथ देथे के , हमर तीर पहुंचत ले , देहें ल तोपे के जगा , लुगरा ल तोपे लागथे । तभे तो “ नौ हाथ लुगरा पहिरे तभो ले देहें उघरा “ दिखथे ………..।

हरिशंकर गजानंद देवांगन, छुरा