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कविता

पितर नेवता

पितर पाख तिहार म
बैसकी ल मनावत हे
पुरखा सियानहिन सियनहा
नेवता देके बलावत हे

घर मुहाटी पिड़हा म
चउंर पिसान पुराय हे
तोरई पान म उरिद दार
लोटा पानी मुखारी बोराय हे

तेलई बईठे बर रोटी पिठा
पिसान दार दराय हे
पुरखा ल पानी दे बर
तरिया घाट म नहाय हे

सोंहारी बरा के पाग बर
गहुं पिसान सनाय हे
तोरई,बरबट्टी आलु अउ चना
साग पान रंन्धाय हे

पितर नेवता आरा परोस
पितर खाय ल बलाय हे
दुद भात संग अम्मट कड़ही
महर महर ममहाय हे

कुकुर बिलई बनके
पितर खाय ल आय हे
डोकरी डोकरा सियनहिन सियनहा
नेवता देके बलाय हे!!

मयारुक छत्तीसगढ़िया
सोनु नेताम “माया”
रुद्री नवागांव धमतरी


One reply on “पितर नेवता”

मैं हर ” बैसकी” शब्द ल नहीं समझत हँव, सोनू !

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