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कविता

पितर पाख

पितर पाख भर बिहनिया नदिया म
कनिहा भर पानी म खड़े सोंचथंव
ललियावत-करियावत जल ह कब उजराही.

यहा तरा बाढ़त परदूसन ले आघू
जब बजबजावत गंगा ह गंगा,
अउ नदिया ह नदिया नइ रहि पाही.

त कोन बेटा पानी देहे बर नदिया
अउ गया जी म पिंडा,
नैनी उतर के हाड़ा सरोए बर गंगा जाही.

अइसन म तो मोर लहकत पुरखा
पितर पाख म घलव
पियासे, बरा के आसे, ओरवाती ले लहुट जाही.

तेखरे सेती चेत करे के इही समें हे
पितर पाख ला अब तो हमला
जल देबी के जतन के पाख बनाना चाही.

तभे नवा जमाना म लइका मन
नीत-नियम ला भार मनइया बेटा मन
पानी देवइ के असल अरथ ला समझ पाहीं.

संजीव तिवारी