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गोठ बात

पेड़ लगावा जिनगी बचावा

‘पेड़ लगाए के महत्त बहुत हावय। जेन पेड़ ल लगाये जाथे ओखर उपयोग मनखे ह कोनो न कोनो रूप म करथे। पीपर लगइस त सरीर ल दिन रात जीवनदायनी आक्सीजन मिलत रहिथे त वोकर उमर ह बाढ़ जथे वो ह सुवस्थ रहिथे।
ऐखरे बर कहे गे हावय के पीपर पेड़ लगइया हजारों बछर ले पताल लोक म निवास करथे। ये बात ब्रह्मव्रर्त पुरान म लिखाय हावय’
पेड़ परानी मन बर बहुत उपयोगी हे। तेखरे सेती हमर रिसी मुनि मन पेड़-पौधा के पूजा करे के विधान बना दे हांवय। मनखे के जिनगी खातिर पेड़ बड़ उपयोगी हे। आयुर्वेद म पेड़-पौधा, फूल-पान ल दवई के रूप म परयोग करे जाथे। जेखर ले रोग-राई ह दूरिहा होथे। हमर भारती संस्कृति म कोनो भी सुभ काम म पेड़ के फूल-पान के सुरता करे गे हे। कोंवर-कोंवर दूबी घला के अडबड़ महिमा बातय गे हे जेला देबी-देवता म चढ़ा के मन मुताबिक फल दे बर विनती करे जाथे अउ भक्त मन के मुराद पूरा होथे-
काण्डात-काण्डात प्ररोहन्ती दुर्वाङ्कुर प्रीतदिसदा।
क्षीर सागर सम्भूते वंश वृध्दि करा भव॥
(यजु. 13.20)
क्षीर सागर के समान वंश के बढ़ाने वाला दूबी के कतका परभाव हे। पीपर के पेड़ ल तो भगवान किसन (कृष्ण) अपन सउहें रूप बताय हे-
‘अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणांम्’ (गीता वि. योग)
पीपर पेड़ के लगवइया हजारों बछर ले तपोलोक म निवास करथे अइसे ब्रह्मवर्त पुरान म लिखे हे-
‘अश्वत्थ वृक्षमारोथ्य प्रतिष्ठां च करोति य:।
स याति तपसो लोकं वर्षाणांमयुतं परम॥’
इही किसम स्कन्द पुरान म अंवरा पेड़ के महिमा बताय गे हे-
‘सर्वदेवमयी ध्येषा धात्री वै कथिता मया।
तस्मात्पूज्यतमा हेयषा विष्णु भक्ति परायणै:॥’
जेन अंवरा पेड़ ल लगायथे ते मन सबे देवता के पूजा के फल ल पा जाथे। एमा कांही संक्खा नइये। संतान जेकर नइ होवय। तेकर बर अवरां के पूजा रामबान साधन आय।
इही किसम गो-पथ ब्राह्मण म शमी के पेड़ ल सबे दुख ल दुरिहा करने वाला बताय हे।
‘अमङ्गलानां शमनी दु:स्वप्न नाशिनी।’
त वेद पुरान म घलो पेड़ के महिमा अउ वोकर पूजा के बिसेस बरनन करे गे हे। जेन पेड़ घलो ल काटथे वोकर खातिर दण्ड के विधान घला हे।
पेड क़े महत्व बगावत मत्स्य पुरान म तो इहां तक कहेगे हे के एक पेड़ लगाना दस बेटा जनमाय के बरोबर हे – ‘दस पुत्रो समो द्रगुभ:’ (154-512) मोला लागथे पेड़ के महत्तम बताय खातिर वोला बेटा के समान बताय गे हे।
स्कन्दपुरान म द्रविड देस के राजा माल्यवान के कथा हे- राजा माल्यवान ल जिनगी म संतान सुख नि मिलिस ते पाय के वो ह उदास रहय अउ काम- बूता म वोकर मन नि लागय। एक दिन राजा करा दुर्वासा रिसि पहुंचगे। अपन दुख ल राजा ह बताइस अउ रोय लागिस। वोकर दुख ल देखके दुर्वासा जी ह कथे- ‘राजन तें उदास झिन हो तोर भाग म बेटा पाय के संजोग लिखे हे। तोला एक ठन बूता करे बर लगही। तें ह रोज अंवरा पेड़ के पूजा करे कर वोकर किरपा ले जरूर तैं बेटा पाबे। वोकर बताय बूता ल राजा ह करिस अउ घानी पेड़ के किरपा ले सिरतोन म राजा ल संतान सुख मिलिस।’
वृहन्नदीय पुरान अध्याय 12 म लिखे हे के राजा वीरभद्र हजारों लगवाइस अउ पर्यावरण ल बचाइस। ‘वृक्षाश्च रोपितास्तत्र सर्वलोको पकारिण:’
तिरीथ, बरत उपास रहे ले जतका फल मिलथे उतके फल एक ठन पेड़ लगा दे ले मिलथे। हमला अपन हाथ को जरूर एरठन पेड़ लगाना चाही त जिनगी म तीन कोरी पेड़ आराम से लगा सकत हन अब बिचार करव देस के बात ल तो छांडव, छत्तीसगढ़ म रहवइया दू करोड़ मनखे कहुं एक-एक ठन पेड़ लगाय के परन कर लंय त एक्के बछर म छत्तीसगढ़ ह जंगल म लुका जाही। पर्यावरन तो सुघर वे करही अकाल-दुकाल ह घला परा जाही तभो तो हमर सास्त्र पुरान ह पेड़ ल देवरूप माने हे-
‘ॐ बसुधेति च शीमेति पुन्यदेति घरेति च।
नमस्ते सुभगे देवि द्रुमोयं त्वयि रोपते॥’
धियान राखव प्रानीयन के जिनगी बचाय बर अउ पानी के संकट ल टारे बर हमला पेड़ जरूर लगाया चाही। तभे तो हमर सास्त्र पुरान म वनस्पति मात्र के स्तुति करे गे हे।
‘शिवोभव प्रजाम्यो मानुषीभ्यत्वमङ्गिर:॥’ (यजुर्वेद 1145)

राघवेन्द्र अग्रवाल
खैरघटा वाले
बलौदाबाजार