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गज़ल

बसंत राघव के छत्‍तीसगढ़ी गज़ल

1


ओखर आंखी म अंजोर हे दया-मया के
जिंहा ले रद्दा हे डोर उहां लमाथे
उंचहा डारा ले ओहर उडि़स परेवा कस
धरती ला छोडि़स त गिरीस बदाक ले
ओखर ले दुरिहा के जानेंव मैं सब ल
सुरता लमिस त भगवान कस जानेव
मरहा जान के ओला डेहरी बइठारेंव
हांडी-बटकी ले गइस तभे पहिचानेंव
फरै ना फूलै कतको डारा ल सींच ले
जरी ला सींचबे तभेच सेवाद ला पाबे।

2


सड़क म जगा जगा कुआ खोदागे
अंधवा हे सरकार ओमा बोजागे
डूब मरिस सुख्‍खा डबरी म कमइया
पेट ला मारे म ठेकेदार हे आगे
तैं अपन पीरा ला काला गोहराथस
पुलिस के बल म ओ जादा इतराथे
निर्भय चलथे पगड़डी म मनखे
सड़क म चले बर ओहर डेराथे
सड़क हवै चाूनी रफ्तार म
देख के चले घलोक म हपचाथे
मनखे म एक पइत सैतान ल पा जाबे
पथरा ल देबे त भगवान कहां पाबे।

बसंत राघव
पंचवटी नगर, रायगढ़

One reply on “बसंत राघव के छत्‍तीसगढ़ी गज़ल”

सुन्दर गज़ल । भाव-भीनी अभिव्यक्ति ।

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