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कविता

बाबागिरी

सावधान, बचके रहहू गा, साधू भेस म सैतान सिरी।
चन्दन, दाढ़ी, जोगी बाना, चलावत हावयं बाबागिरी॥
बड़े-बड़े आसरम हे इंखर।
चेली-चेली, कुकरम हे इंखर॥
सोना-चांदी, धन, दौलत हे।
हवई जिहाज, कार दउड़त हे॥
माल-मलीदा, सान अउ सौकत, सबो मिलत हे फिरी।
चन्दन, दाढ़ी, जोगी बाना, चलावत हावयं बाबगिरी॥
दिन म कीरतन, परबचन, बड़े-बड़े पंडाल।
रतिहा दारू, बियर, मटन हे, झूमरत हे चंडाल॥
नाचयं आजू-बाजू सुग्घर टुरी जवान।
पाप करम ल देख-देखके, अचंभा हे भगवान॥
पाप म्यूजिक म गावत हें ये वन, टू, थिरी।
चन्दन, दाढ़ी, जोगी बाना, चलावत हावयं बाबगिरी॥
नोहय येहा धरम-करम।
सोचव समझव इंखर मरम॥
इंखर जाल म झन परिहो।
नइ त बिन मौत के मरिहो॥
जेल के चक्की देखावव इंखर खेल आखिरी।
चन्दन, दाढ़ी, जोगी बाना, चलावत हावयं बाबगिरी॥
आनंद तिवारी पौराणिक
श्रीराम टाकीज मार्ग
महासमुन्द