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व्यंग्य

बियंग : बरतिया बाबू के ढमढम

बिहाव के गोठ छोकरी खोजे ले चालू होथे अऊ ओखरो ले पहिली ले दुल्ही-दुल्हा दुनो घर वाला मन हा गहना-गुट्ठा बिसा डारे रथे। फेर अऊ नत्तादार मन ल का टिकबो, मुहु देखउनी का देबो तेखर संसो रथे। ताहन सगा पार मन ल पुछे के बुता फेर घर के लिपई पोतई, बियारा-बखरी ल छोलबे चतवारबे, पंडित बुलाबे, लगिन धराबे, कारड छपाबे त सस्ती-मंहगी अऊ आने-आने सगा बर आने-आने कारड सोंच के छपाय बर लागथे, सगा नेवते बर मुखियाच हा जाही नीते सगा रीसा जथे, अब मड़वा छाबे, समियाना परदा कुरसी दरी के बेवस्था करवाबे, बाजा लगाबे त दू ठन लगाय ल परथे नेघ बर गांव के बाजा म चल जथे अऊ बरात जाय बर बैंड बाजा नईते ढोल लगाय ल परथे, गाड़ी किराया करबे तभो दुल्हा बर नवा चमचमाती गाड़ी होना चाहि, भले दुल्हा रेमटा राहय फेर ठसन म कमी नई होना चाहि। फोटू वाला बुलाबे, रंधईया लगाबे, पानी डोहरईया अऊ सफई करईया बनिहार लटपट म मिलथे, ताहन नेघ के चीज पर्रा-झांपी,दीया-कलसा फूल-माला, सिंघौली-सील बिसा के लानबे, अऊ बिहाव के होवत ले कहीं कहीं खन्गेच रथे, अब दुल्ही-दुल्हा के बड़ अकन कपड़ा लत्ता लेना, ओला कटवा भोंगवा के देहे के लईक खिलवाना, दुल्ही ल मेहंदी रचाना, बिरौनी ल उखनवाना (आईब्रो सेटिंग), दुल्हा के दाढी मेछा रोखवाना, जूता पालिस करवाना, अऊ थोथना के मास उकलत ले रगड़वा के मुहु धोवाना(फेसियल) येला दुल्ही-दुल्हा दुनो झन करवाथे, यहू सब बड़ मिहनत के बुता आय, अऊ आजकल सबले बड़े बुता मिंझरा करना (मैचिंग) दुल्ही के लुगरा के रंग दुल्हा के कुरता संग मिलना चाही, मऊर, जूता, दुल्ही के पनही, सांफा, दुल्ही के होंठ के पोतना के रंग घलो सबो संग जचना चाही, अब ये सब ल तो जेन भुगते तेन जाने! फेर बरतिया मन ल येखर ले कोनहो फरक नई पड़े।
बरात जाये के दिन गांव भर के मनखे बिहिनिया ले घर मुहाटी ले झांकत रथे, देख तो रे मोटर अइस का? दाढ़ी मुछा रोखवा के फदफद ले पाऊडर चुपर के उछरे के लइक सेन्ट छित के बिहाव घर करा लुहुर-टूपुर होवत रथे, सियान मन अपन नाती-पोता ल तियार करके आ जाये रथे, बरात जावत हे त मुहु पान म रचना जरूरी हे, अपन सबले सुग्घर पेंट-कुरता ल पहिरही, अइसे तो सब जुता पहिरे रथे फेर पनही पहिरही त नवा होना जरूरी हे, अब कतको अतलंघा तियारी करबे फेर बरतिया निकरे म चार घंटा बिलंब होनच रथे, सब सकला के मोटर म अंटिया-अंटिया के चघथे त भीड़ अऊ गरमी के मारे जम्मों तियारी हा एकमई हो जथे, दस सीट के मोटर म पंदरा झन अऊ तीस सीट के मोटर म पचास झन हमाथे। सहर वाला बराती मन अतका डट्टाकुच्चा नई बइठे फेर ओमन ल भारी जोजिया के तियार करे ल परथे। अब गांव ले निकले पांच कि.मी. नई होय राहय अऊ कोनहो उछर देथे तिर-तिखार के मनखे मन उही म सना जथे, थोरुक सहर असन जगा म मोटर थिराथे त जम्मों मनखे बहाना करके मंद पी-पी के आथे, दुल्हा हा ढ़ेड़हा अपन भांटो, अऊ संगवारी मन बर खुदे बेवस्था करवाथे, अऊ कोनहो दुल्हा घलो मंदू होगे त संगवारी मन वोला कतका बेर पियाही कोनहो थाहा नई पावय, अब ये ढमढम ले आघू बढ़के दुल्हा बाजा-बरतिया संग अपन होवईया ससुराल हबरथे।
गांव के अहातच म दुल्हा डहर ले फटाखा संदेसा पठोय बर फोरे जाथे, गांव के मन हांथ देखा के बताही के मोटर ल कति लेगना हवय, नीते एक झन मोटर के आघू-आघू जगा बताय बर फरफटी कुदाथे, वोहा गांव के सबले टेसवा बानी के टूरा रथे, मोटर ले ऊतरत खानी जम्मों बरतिया मन के मुहु देखे के लइक हो जाय रथे, जिंहा जेवनासा दे रथे तिंहा पंखा कुलर होगे त बने हे नीते तोर बारा हाल ल तेरा हाल होय ले कोनहो नई बचा सके, उद्दे कलेवा आ जथे, पानी पीना हे त बाहिर म डराम रखाय हे उही म दतो, भीतर म तो कलेवा भर मिलही एक ठन पलेट म आलुगुंडा, मिच्चर, जलेबी, अऊ अंगूर इकमई होके रचाय रथे, अब एक पोरसना खाये के बाद म येला नई मिले हे वोला नई मिले कइके घेरी-बेरी नास्ता मंगवा के जम्मों झन हा पोठ दूदी घंव खाथे, अऊ दुख तब लागथे जतका बेर एक ठन आलुगुंडा बर पुरा पलेट ल मंगा के बांचे चीज ल फेंक देथे।
अब बाहिर म बाजा बाजे के चालू हो जथे, मंधवा मन एक घंव फेर मंद खोजे बर निकर जथे, ओतकी बेर घर वाला मन बाजा धर के, फटाखा फोरत परघाय बर पहुंचथे, त दुल्हा डहर ले गांव के गली खोर म परघावत ले फटाखा फोरे जाथे, काखरो झानी उजरत बांचथे त कोनहो लईका भूंजावत बांचथे, फेर बरतिया बाबू मन के ढमढम कम नई होवय। टूरेलहा मन दूनो बाजा के बीच म नाचथे, अऊ कोनहो भीड़ म समधीन मन दिख गे त नाचे के रफ्तार हा आंय-बांय हो जथे। अब दुनो डाहर के मन हा सुवागत के नेघ ल करथे, अऊ जम्मों झन के बेधुन होके नाचना चालू हो जथे, नवा नचईया मन हा नाचथे कम अऊ कोन-कोन देखत हे तेला ज्यादा गुनत रथे, जुन्नटहा हा बाजा संग ताल मिलाय रथे, अऊ भंगभंगहा हा चारो मुड़ा ल मता डरथे कभू येखर गोड़ ल खुंदही त कभू ओखर गोड़ ल, इही बेरा म झगरा-लड़ई घलो हो जथे, अतकी बेर मंद खोजईया मंदू मन पहुंचथे अऊ तब सबके पसंद के नाच नागिन डांस देखे ल मिलथे, सिरतोन म येहा अलगे किसम के कला आय, मंद बंद होय ले ये कला नंदाय सकत हे, एक झन रद्दा म घोलंड के नागिन बन जथे त बड़ झन मुहु म सांफी चाब के सपेरा बन जथे, नागिन फोस-फोस करथे त यहू मन भागे सरीख करथे, अऊ दूनो डहर के बाजा वाला मन जोस म आके समिलहा बजाय के चालू कर देथे त ओतकी बेर कतको झन पिटपिटी ढोंडीया सब बन जथे, पहिली डफडा निसान वाला बाजा राहय त दुनो डहर के बाजा वाला मन प्रतियोगिता करय, बाजा बजावत-बजावत दांत म नईते आंखी के बिरौनी म भुईंया म माढ़े सिक्का ल नीते नोट ल उठावय, अइसन करईया ल असल बजनिया समझे जाय, अऊ अइसे नाचत कुदत बराती दुल्ही के घर मुहाटी म पहुंचथे।
जम्मों झन के सुवागत में कोनहो कमी नई होवय, फेर बरतिया मन खाये के बेर लाडू ल ढूलोही नई ते चांऊर पापड़ ल बजाही, कोनहो कथे गिलास बने नइये, त कोनहो ल साग पसंद नई आवय जतका मुहु ततकी अकन रोंग-जोंग चलत रथे अऊ बेंदरा मन असन आनी-बानी के उधम मचाथे। फेर भूला जथे के वहू मन ल कभू अपन बहिन बेटी ल बिदा करे ल परही। घर वाला मन अपन हैसियत ले ज्यादा चीज-बस टीकथे, अपन करेजा चानी असन नोनी ल बिहाव करके भेजथे, सरी झेल-झपेट ल सहिथे, दिनोंदिन बरतिया मन बाढ़त जावत हे, पहिली बीस तीस झन बरतिया जाय, अऊ अब तो दू तीन सौ ले घलो ऊपराहा हो जथे, अऊ सब पहिली ले ज्यादा मानगुन घलो चाहथे, कई ठन समाज में फलदान ल बंद करव कइके कहे जावत हे, पईसा धराना, फलदान, लगिन पूजहा अऊ बराती अतका घंव सुवागत सत्कार करत ले घर के मन थर्र खा जथे। बर बिहाव हा हमर संस्कृति परंपरा आय, अऊ ये सब जरूरी घलो हवय फेर मे पुछथंव बरतिया मन के गनती ल कम नई करे जा सके का? समाज म जम्मों बेवस्था ल समाज ल आघू बढाय बर बनाय गे हवय फेर अब अइसन ल बरतिया बाबू मन के ढमढम नई कबे त का कबे!

ललित साहू “जख्मी” छुरा
जिला-गरियाबंद (छ.ग.)
9993841525