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कविता

महतारी के ममता

श्रध्दा के राजिम भारत, समानता के लोचन आय।
राम सेतु कस प्रेम सेतु ला, कोनो हा झन टोरन पाय॥

भक्ति के भारत मा मइया, इरसा नजर लगावत हे।
स्वारथ के टंगिया मा संगी, कुटुम्ब काट टलियावत हे।

रावन, कंस फेर कहां ले आगे, लिल्ला बर काबर सम्हरत हव।
राम, कृष्ण के भुइंया मा, संगी, कबीर ला काबर बिसरत हव।

पुत्र के सुत्र बिगड़त हे, मंथरा के अत्याचारी मा।
सुम्मत के कुंदरा बरत हे, क्षेत्रवाद के चिंगारी मा।

सोन चिरइया हा ननपन ले, कौमी एकता के वेदांत पढ़ाए हे।
महतारी के ममता बरोबर, सब ला कोरा मा खेलाए हे।

दुर्गा प्रसाद पारकर
केंवट कुंदरा, प्लाट-3, सड़क-2
आशीष नगर (पश्चिम)
भिलाई (छ.ग.)