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कविता

मेरी क्रिसमस

Anubhav Sharmaबुधिया बीहिनिया ले हक बकाये हे
कालि रात ओकर झोपड़ा में
लागथे सांता क्लाज़ आये हे
साडी साँटी औ कम्बल
चुरी मुंदरी औ सेंडल
घर भर में कुढाय हे
गेंदू कहिस बही नितो
समान ल देख के झन झकझका
अब ता हर रात आहि सांता कका
चुनाव तिहार ले खुलगे हे क़िसमत
बोट के डालत ले रही
रोजेच तेरी मेरी क्रिसमस

अनुभव शर्मा