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कविता

मोर गाँव के सुरता आथे

कांसा के थारी असन तरिया डबरी,
सुघ्घर रूख राई, पीपर,बर अऊ बंभरी I
खेत खार हरियर हरियर लहलहाय,
मेड़ में बईठ कमिया ददरिया गाय I

बारी बखरी में नार ह घपटे,
कुंदरू,करेला,तरोई झाके सपटके I
चारों मुड़ा हे मंदिर देवालय,
बीच बस्ती में महमाया ह दमकय I

होत बिहनिया गरवा ढीलाय,
कुआं पार मोटियारी सकलाय I
हंसी ठिठोली करत पानी भरय,
कांवर बोहे राऊत मचमच चलय I

घाम बिहनिया ले छानही में बईठे,
बम्हनीन कुदन रौऊनिया तापय डटके I
कोन जनी कऊवा ह का गोठियाय,
कान ल लेगे कीके नऊवा चिल्लाय I

पड़की,परेवना,सुवा अस लईका,
बांचा माने जेन सियान के ठऊका I
सुघ्घर लिपाय, बहराय गली खोर,
ममहाय माटी के घर, जलय जब जोत I

कमा के आवय भईया जभे मजूरी,
अंधना मढ़ाय भऊजी के बाजय चुरी I
फेटा बांधे जब किसान खेत में घुमय,
धान के अचरा येती वोती गदबद झूमय I

सगा आवय ते घर अँगना गदबदाय
तिहार सबो झिन जुरमिर के मनाय I
एके कुरिया में चोरबिर चोरबिर,
सुतैईया तको चैन के नींद सुत जायI

पथरा पूजे बर कोनों, पहार नीं जाय,
बिहनचे बिहनचे ठाकुरदेव में सकलाय I
कोल्हान के तीर बोहरही दाई,
बदना बदै जेकर दुख पीरा हर जाय I

गंगा अऊ काशी कस लागय घर कुरिया,
पड़ोसिन के साग सुहावय बहुतेच बढिया I
मड़ई मेला बने जबर लागय,
उड़य जभे बईला गाड़ी के धुर्रा I

विजेंद्र वर्मा अनजान
नगरगाँव(धरसीवां)