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समीच्‍छा

लमसेना – पुस्तक समीक्छा

पुनुराम साहू के रचे नाटक ‘लमसेना’ पढ़े बर मिलिस। ‘लमसेना’ के अर्थ हे ‘घरजमई’ नाटक के शीर्षक ह अलगेच लगीस।
नाटक पढ़े के बाद लगीस के सिरसक एकदम ठीक हे। रामसिंग ‘लमसेना’ नाटक के परमुख चरित हे। ओकर कारन ही दयाबती अउ फुलवा बदचलन रहिथे। रामसिंग ऊपर चोरी के आरोप लगाथे। रामसिंग अपन बेटा अंजोर संग घर छोड़ देथे। दयाबती रामसिंग ला अपन मुंहबोला भाई बनाथे अउ अंजोर ला बड़ा कथे…। ओकर ममतामयी दाई बन जाथे नाटक के दुआरा लेखक जुन्ना रीति-रिवाज ऊपर परहार करथे। अउ नवा संदेस देथे।
नाटक म जगह-जगह सुग्घर बिचार बिखरे परे हे। समाज गंगा होथे कोनो गलती होईस तेला गंगा म याने समाज म जगा नइ मिलही तब कहां मिलही?
दयाबती ला समाज म जगह दे के अंतरजातीय बिहाव ल मानता देय के बात रामसिंग बताथे। जेला गांव वाला मन मान जाथे।
‘हम गरीब हन अउ गरीब के सगा गरीब होथे।’, ‘सबो दिन एक जइसे नई राहय आज दु:ख हे त एक दिन सुख आबेच करही।’ ‘इमान धरम अउ मिहनतेच ह सब कुछ हे मोर साथी’ जइसन आसावादी विचार जगह-जगह मिल जाथे। नाटक म सुग्घर-सुग्घर गीत देखे बर मिलथे। कुछ गीत छत्तीसगढ़ी महतारी के महिमा गाथे। कुछ गीत एकता के बात ला कहिथे।
कुछ गीत जइसे ‘तोर आगे बराती प्यार वो नोनी तयं ह करले सिंगार।’ पारंपरिक छत्तीसगढ़ी संस्कीरती के पुरणीक बनके बयान करके नोनी जाबे ससुराल जइसन बिदाई गीत घलो हिरदय ला छू जाथे। ‘दाई-ददा के ध्यान धरत रहिबे ना बेटी मईके के सुरता करत रहीबे न…’ अईसन गीत के भाव भारत म सब्बो डाहर समान रूप से दिखथे। फुलवा के चरित से भी हमला संदेश मिलथे- ‘अईसन काम कभू नई करना हे जेखर परिणाम गलत रहिथे।’ अपन चरित के सम्मान करके बने काम करके ओकर निरमान करना हे।
नाटक के आखिरी म रामसिंग फुलवा ल माफ करथे अउ कहिथे- ‘जऊन ह अपन गलती ल कबूल करथे उही वोकर बर सबले बड़े दंड हे। जऊन अपन हाथ म करनी करथे वोला ओकर फल जरूर भुगते बर लागथे। नारी के हिरदे ह धरती महतारी कस महान होथे अउ महानता ल बचाय बर वोला खुद महान बने बर लागथे। आखरी गीत संगी माटी हे महान हिरदय ला छू जाथे।’
नाटक जिनगी के बाद ला कहिथे अउ सफल जिनगी बर उपदेश देथे।
ये नाटक छत्तीसगढ़ी साहित्य के एक अनमोल सुग्घर कति हवे हमर संस्कीरिति के सुग्घर गहना हवे नाटक के रचयिता ल गाड़ा-गाड़ा बधई।
नाटक- लमसेना
लेखक- पुनुराम साहू मगरलोड
प्रकाशक- संगम साहित्य सांस्कृतिक समिति प्रयास प्रकाशन
मूल्य-50 रुपए