Categories
कविता

सरग असन मोर गांव

”लोक कला ल बिगाड़ने वाला कलाकार मन छत्तीसगढ़ जइसे सुंदर राज भारी कलंक आए। फेर कहीथें न कि ”टिटही के पेले ले पहार ह नई पेलाय।” अइसने हे हमर लोककला ल बिगाड़-बिगाड़ के देखाने वाला कलाकार मन अपन जिनगी म जादा सफल नई हो सकय। जल्दी नाम दाम कमाए के चककर म जउन कलाकार परही तेहर ओतक जल्दी नंदा घलो जाही।”
गांव में सबले जादा अगर कोनो गारी खाय ओहा करमु सेठ रहीसे। अउ जेकर बिना गांव के कोनो काम नई होवय उहुच हा करमु सेठ रहीस। मरनी-हरनी, छट्ठी-बरही, बर-बिहाव, गांव के तीज-तिहार कोनो काम सेठ के बिना नई निपटय। गांव के चिट्ठी-पतरी, मनीआर्डर सबों सेठ के पता में आवय। कोनो ला गांव में पइसा के जरूरत पड़ जाय तो सेठ के दुकान ले ओहा पइसा उठा लय। अउ काकरो मेर उपरहा पइसा हो जाए अउ ओला चोरी-हारी के डर सताय बर धर लय तो ओहा सेठ जगा अपन पइसा ला जमा करके निश्चिंत होके फोर सुतय।
नानकुन दुकान रहीस सेठ के गांव में फरे उहां सबो समान मिल जाय। किराना समान, कपड़ा-लत्ता, दवई, लोहा, लक्कड़, खातु सबो मिल जाय। उही दुकान के भरोसा में सेठ हा अपन लइका मन ला पालीस पोसीस। पढ़इस-लिखइस अउ काम धंधा में लगा दीस। आज ओकर लइका मन के सहर में बड़े-बड़े दुकान, मकान, गाड़ी, मोटर सबो हे। सेठ के लइका मन ओला अब्बड़ जोजियाथे कि अब गांव छोड़ के वहु हा सहर में आ जाए। इहां कोनो किसम के कमी नइए। सेठ के लइका मन ओला कथें, का राखे हे नानकुन गांव में। मनखे मन रात-दिन दारू पीके लड़त-झगड़त रथें। न बड़े के इात अउ न छोटे बर माया। सेठ के छोटे बेटा कथे, तेंहा रात-दिन सेवा करत रथस गांव वाला मन के। फेर बदला में तोला का मिलथे। टुरा मन तोला लुटेरा, गरकट्टा अउ न जाने का-का कहत रथे। ओमन इहुं कथें कि, ए सेठ हा लोटा लेके आय रहीस अउ सहर में एहा बिल्डिंग टेका दीस। सेठ के छोटे बेटा कथे, कि अइसन गांव में तो पानी घलो नई पीना चाही। फेर तेंहा गांव ला काबर छोड़ना नई चाहस ए बात मोर समझ में नइ आवय। तब सेठ हा ओला कथे, तें तो नानपन ले सहर चल देस। तव तय का जानबे गांव काय आय तेला। का रहीस मोर जब में नानकुन रहेंव अउ बड़े सेठ मोला लेके ए गांव में आय रहीस। ये गांव के मन तो मोला पोसीन अउ बड़े करीन। इहें आके मोला काकी, मामी, दाई, डोकरी दाई सबो मिलीस। नानकुन लइका हा अपन दाई-ददा ला छोड़ के आय हे कहीके इहां के माई लोगिन मन मोर संग गोठायवंय पाछु अउ खाय बर पहिली देवयं। इहां के बासी, चेंच भाजी के साग, खेड़हा, मुनगा ला मे कइसे भुला सकहुं। इहां के खपुर्री रोटी अउ मिरचा पताल के चटनी के सवाद ला मय कइसे भुलाहुं। का दु:ख अउ का सुख सबो में तो ये मन मोर संग दे हावयं। मोर घर कोनो बीमार पर जाय तो गांव भर मोर दुआरी में सकला जावयं अउ बरसत पानी में ओरिया तरी खड़े-खड़े रतिहा ला पहा दयं। फेर ए गांव ला मे कइसे छोड़े सकहुं। बंधवा तरिया के पानी, दाउ के बगीचा, गौरा चौरा तोर सहर में मोला कहां मिलही। इहां के रामलीला, जंवारा, कोनो तो मोला छोडत नइ बनय। इहां के जुड़-जुड़ हवा, जुड़-जुड़ पानी ला तुमन सहर वाला का जानहु। मोला तुमन इहें राहन देवव। सरग असन मोर गांव हे तेला में कभु नई छोड़ सकवं। अतका सुन के सेठ के लइका मन ला हार माने बर पर जाय।
फेर येती गांव के हवा बदल गे राहय। जब ले गांव में सराब दुकान खुलीस त गांव वाला मन के बात ब्यौहार बदल गे रहाय। दु रुपया किलो वाला चाउर अउ रोजगार गारंटी के काम हा गांव वाला मन ला बइठांगुर बना के राख दे रहीस। न बनिहार मिलय न सौंजिया। बिहनिया ले गांव में चीत्ती, जुआ चालू हो जाय। का लइका, का जवान सबो दारू पी के माते राहयं। अब तो माइ लोगन मन घलो दारू पीए बर धर ले रहीन। रात-दन लड़ई -झगड़ा चलत राहय कोनो काकरो संग सोझ मुंह गोठयाय बर नई धरय। दाउ के बगीचा ला ईटा भट्ठा वाला मन कटवा डारीन। बंधवा तरिया जाय के रद्दा ला छेंक गांव वाला मन घर बना डारीन। गली ला अतेक छेंक डारीन कि अब जोराय बइला ला गली मेर ले नहकाना मुश्कुल होगे। ऐ सब ला देखीन तव जेकर-जेकर हैसियत रहीस ओमन सहर जाय बर धर लीन। कोनो लइका पढ़ाय के नाव में तो कोनो अस्पताल में दवाई कराय के नाम में। सेठ के दुकान के आघु में चौरा रहीसे जेमा सियान मन बइठय अउ गोठ बात करत राहयं। संझा के बेरा मं इहां रमायन, महाभारत, पंडवानी सरीख कार्यकरम होवत राहय। अब ओ चौरा में गांव के लोफर टूरा मन के कब्जा होगे हे हावय। रात -दिन उहां चीत्ती-जुआ चलत रथें। सियान मन के बरजे ला ओमन मानय नहीं। उलटा ओमन सियान मन संग मुंह जोरी करे बर धर लेथें। ओकर मन के डर के मारे अब सियान मन ओ चौरा में बइठे बर बंद कर दिन। सेठ ला अब ओ गांव में रहना एक-एक दिन पहाड़ होगे रहीस। हार के सेठ हा घलो गांव छोड़े क फइसला कर डारीस। सेठ ला लेगे बर सहर ले मोटर कार आगे। जाय के बेरा सेठ हा एक-एक रूख-राई ला देखे बर लागगे। आमा, जाम, रायजाम, लीमउ, संतरा, मुसंबी जमो रूख मन ला ओहा अपन हाथ ले लगाय रहीस अउ ओमन ला तियार करे रहीस। गाय-गरूवा मन ला घलो ओहा छोड़त समे बड़ दु:ख मनावत रहीस। ओला बिदा करेबर गांव के सियान जवान लइका मन जम्मो सकला में रहीन। सेठ हा मोटर कोती चढ़े बर गीस ओतकी बरा लेवई गाय के बछरू ढीलागे अउ सेठ मेरा दउड़ के आगे। बछरू हा अपन थोथना ला सेठ के माड़ी में घसरे बर धर लीस। अतका ला देखीस तहां ले सेठ हा कहीस मय नइ जावव तुमन ला छोड़के कहु नई जाववं। कहिके सेठ हा लहुट के अपन घर के भीतर अमागे। सेठ के मितान रामलाल ओकर पाछु-पाछु ओकर संग गीस। ओहा सेठ ला कहीस नई छोड़न मितान हमन अपन गांव ला। ये नंगरा टूरा मन ले डर्रा के हम अपन गांव ला काबर छोड़बो। हम अपन गांव ला सुधार के मरबो। बने करेस तेहा सहर नइ गेस। सेठ ला लेगे बर आय मोटर खाली सहर लहुटगे।
शशि कुमार शर्मा
गांव व पो. तुमगांव
जिला-महासमुंद (छ.ग.)