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कविता

सावन के बरखा

झिमिर झिमिर बरसत हे
सावन झड़ी के फुहार
ओईरछा छानी चुहन लागे
रेला बोहागे धारे धार

झुमरत हे रुख पाना डारा
उबुक चुबुक होगे खेत खार
बईला संग बियासी फंदाय
लेंजहा चालय बनिहार




मघन होके मंजुर नाचय
छांए करिया बादर
गरर गरर बिजुरी चमके
किसनहा जोतय नांगर

बेंगवा नरियाय टरर टरर
बरखा गीत गावयं
कमरा खुमरी मोरा ओड़े
खेत नींदे ल जावयं

सावन के बरखा बरसत हे
बनिहारिन के पैईरी सुनावयं
सनन सनन पुरवाई चलय
करमा ददरिया गावयं!!

मयारुक छत्तीसगढ़िया
सोनु नेताम “माया”
रुद्री नवागांव “धमतरी