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गीत

हांसत हे सोनहा धान के बाली ह

पींवरा लुगरा पहिरे धरती
हांसत हे, सोनहा धान के बाली ह।
पींवरा पींवरा खेतखार दिखत हे,
कुलकत हे अन्नपूर्णा महरानी ह॥
गांव-गांव म मात गे हे धान लुअई,
खेतखार म मनखे गजगजावत हे।
सुकालु, दुकालू, बुधियारिन, मन्टोरा
संगी जहुरिया संग धान लुए बर जांवत हे॥
का लइका का सियान? मात गे हे जवानी ह।
हांसत हे…।
धान लुअइया मन के रेन लगे हे,
कोन्हों गांवखार कोन्हों रेगहा खार म जावत हे।
कोन्हों गाड़ा कोन्हों टे्रक्टर में
धान के बीड़ा ल लानत हे॥
खरही रचागे कोठार म, मुचमुचावत हे लछमीरानी ह।
हांसत हे…।
खोजे बनिहार नइ मिलत ए संगवारी,
कतेक किसान हार्बेस्टर में धान लुआवत हे।
गांव-गली सुन्ना होगे संगी
खेत खार म मनखे च मनखे नजर आवत हे॥
अमरित बरोबर लागत हे संगी, बासी चटनी, आमा, अथान के पानी ह॥
हांसत हे…।
नवा जमाना संग म, चलव खेती किसान करबो जी
धान के कटोरा छत्तीसगढ़ ल लबलब ले भरबो जी।
जांगरतोड़ कमाबो, संगी छत्तीसगढ़ म नवा बिहान लाना हे।
उन्नत बीज संग उन्नत खेती करके, खुशहाली के गंगा बहाना हे॥
श्रम शक्ति के हथियार धरके, जागे छत्तीसगढ़ के किसान ह।
हांसत हे…।
द्वारिका चंद्राकर ‘मंडल’
खल्लारी नगरी
बेमचा महासमुंद