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व्यंग्य

अंगरेजी परेमी छत्तीसगढिया मन के घलव जय हो !

छत्तीसगढी़ राजभाखा बने के पाछू हमर जम्मे झिन सियान मन अपन-अपन डहर ले भरपूर उदिम करत हें, कि हमर भाखा ह सहर गांव चारो खूंट बगरय, सरकारी आफिस मन म हमर भाखा हा संवाद के भाखा होवय । हमर भाखा के मान दिन दूना-रात चौगूना बढय । तभोले, हमर अंगरेजी परेम हर नई छूटत हावय । हमर अंगरेजी परेम हर सहर भर म नई ये, गांवो-गांव अंगरेजी हा अपन जर ला खोभा लेहे असन जर जमावत हावय । अभिन तो अइसे लागथे कि अडबड अकन अंगरेजी आखर हा हमर भाखा संग जुर मिल के ‘डिस्को डांस’ करे लागे हे ।
येदे काली मैं कई बरिस बीते ले अपन गांव गे रेहेंव अउ अपन भाखा के सियानी मारत गूडी मा खडे रेहेंव । गूडी के कोंन्टा म एक ठन नंवा पान ठेला खुल गे हे । बने बम्हखरी के पल्ला ले बने तेल के टीना ले छवाए ठेला म, पान-गुटका खवईया मन के भीड सकलाए रहय । ठेला म नाम लिखाये रहय ‘गोलू पान पैलेस’ । मोला जयपुर के पैलेस सुरता आगे, दस एकड के भूंइया म बीस बांस उंचहा दमदम ले खडे राजमहल । अउ ये … कहां के एक डंगनी के गुमटी … फेर लिखे हे ‘पैलेस’ ।
गांव के संगी साथी मन संग गोठ बात करत तरिया डहर जाये के रद्दा म आघू रेंगेंव । देखेंव लाईन से पक्की दुकान खुल गे हे । दुकानदार ला चिन्हत अउ दुकान के नाम ला पढत बढेंव । मंगलू के टूरा किराना दुकान संग मनिहारी समान टिकली-फूंदरी बेचत हावय फेर दुकान के नाम रखे हे ‘मार्डन जनरल स्टोर्स’ । बोदू के बाप गांव म बीसक बरिस ले पउनी-पसार लग के अपन सजुआ ले सांवर बनावत बुढा़ गे हे । ओखर दसवी फेल टूरा बोदू घलो सहर के नकल म पीपर पेंड के तरी एक ठन खुर्सी मढा़ के बड़का अइना टांग के, साबुन गजगजा दाढी़ म ‘बरस’ ले लगावत मगन हे, अइना के उपर टीना म अपन दुकान के नाम लिखे हे ‘बोदू सेलून’ ।
बिसेसर महराज के जुन्‍ना धनकुट्टी अउ पिसान पिसाये के ठीहा ह घलव बने लिपाय पोताय, तुने-ताने मरम्मत हो गे हे तेमा नाम लिखाये हे ‘तिवारी फ्लोर एण्ड राईस मिल’ । जमीला तुरकिन के बेटा कई बरिस ले अपन घर म पांच-दस कुकरी पोंसे रहय अउ गांव म जब ‘पारटी-सारटी’ होवय त अंडा-कुकरी के बेवस्‍था उही करय । तउन हा अपन दस काठा के बारी म पक्का- बाडा बनवा के अडबड अकन अंग्रेजी कुकरी पोंस डारे हे ओमा लिखाये हे ‘मुस्ताक पोल्ट्री ’ । आघू के मुरमी रोड ले खेत-खार चालू हो गे हे । सबे मन अपन खेत-चक के नाम अपन-अपन कांटा ले घेराये बारी के रांचर दरवाजा म टांगे हावय ‘फलाना फारम’, ‘ढेकाना फारम’ ।
मैं गुने लागेंव वाह रे मोर गांव, सफ्फा खेती-बारी ‘फारम’ हो गे हे अउ छितका कुरिया मन ‘हाउस’ । देखत गुनत रेंगत-रेंगत, रट ले हपट परेंव । एक झिन गोबर बिनईया टूरी करा झंपावत-झंपावत बाचेंव । मोर मूह ले झट ले निकलिस ‘सारी !‘ अउ वो टूरी के मूंह ले पट ले निकलिस ‘मेनसन नाट !‘ संगी मन हाहा-हाहा हांसे लागिन, जय हो महराज जय हो !, तुंहर जइसे छत्तीसगढि़या के घलव जय हो !


संजीव तिवारी