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अनुवाद : तीसर सर्ग : सरद ऋतु

कालिदास कृत ऋतुसंहारम् के छत्तीसगढ़ी अनुवाद-

अओ मयारुक
कांसी फूल के
ओन्हा पहिरे,
फूले कमल कस
हाँसत सुघ्घर मुंहरन
मदमाते
हंसा के बोली अस
छमकत पैजनियां वाली
पाके धान के पिंवरी ले
सुघ्घर
येकसरी देंह के
मोहनी रूप
नवा बहुरिया कस
सीत रितु ह आगे।

सीतरितु
आय ले
कांसी फूल ले धरती
चंदा अंजोर म रतिहा
हंसा मन ले
पानी नदिया के
कुई ले तरिया
फूल म लहसे
छतवन ले बन
अउ
मालती ले
बाग बगइचा हर
चारों खूंट हो गेहे
उज्जर फर-फर।

ये बेरा म
तुलमुलही, मन भावन
नान-नान मछरी के
करधन
चारों खूंट
अंडा लर के उज्जर
माली पहिरे
चाकर पाट कस
कनिहावाली
बिन सउर के
मोटियारिन कस
धीरे-धीरे रेंगत हे
नदिया।

चांदी, संख
अउ कमल कस
उज्जर
पानी ले रीता
पवन झकोरा संग
डोलत
गिंजरत बादर बीच
चंवर डोलवात
राजा कस लागत हे
आकास।

इहां उहां अंजाय
गाढा काजर कस
उपीत, सुग्घर अकास
अउ
फूले झांईझुंई ले
ललियाय धरती
पाके धान म तोपाय
भुइयां
चेलिकमन
कइसे नइ बउराहीं
भला।

फुरहुर चलत
पुरवाही ले हालत
सुग्घर फुनगी के डारा
फूले फूल म
लटलटाय डोंहरु
फोंकियाय, उल्हुआ पाना,
मतंग भौंरा के पिए
गुरतुर रसवाला
कचनार
काखर मन ल
बिचेत नइ करहीं
भला?

खुल्ला अकास के
चंदा कस, मुंहरन वाली
फिटिक चंदैनी के
झकउज्जर ओन्हा पहिरे
तारा के गाहना म
अडबड़ सजे-धजे
जाड़काला के रतिहा
दिनों दिन
बाढ़त हें
मोहाय कइना कस

बदकमन के चोंच ले
दू फाड़ होगे
जेकर हिलोर के माला
तीर म हे जेकर
अड़बड़ अकन
बदक अउ सारस
हंसा के कलोल
कमल के पराग ले
चारों खूंट
लाल होत नदिया
अड़बड़ सुख देथें
सबे झन ले।

सुहइया
आंखी के
हिरदे ल हरइया
सुघ्घर किरन माला के
चंदा
सुखदाई सीत
बरसाथे
भरतार के
बिरहाबान म
बेंधाय
दुबराय तिरिया मन ल
रोज जलात हे।

बाली म लहसे
धान ल सरसरात
झकोरत हे
लटलटाय फूल म ओरमे
सदा सोहागिन के डारा
हांसत कमल बन, अउ
कुमुदनि मन ल घलव
हलात हे,
पवन
चेलिकमन के, हिरदे ल
बहुते मतवारा
बनात हे।

माते हंसा जोड़ी ले
सोहे
ताजा हांसत कमल ल
साजे बिहिनियां के
पुरवाही ले जनमें
लहर के
माला सिंगारे
तरिया
तुरते हरसात हवे
हिरदे ल।

इन्द्रधनुस लुका गे हे
बादर के पेट म,
अकास के धजा असन
बिजुरी, घलव
नइ चमकत हे
ये बेरा म
कोकड़ा घलव
फड़फड़ा के
अकास ल नइ कंपात हे
मंजूरमन तको
नइ देखत हें
मूंड़ी उंटेर के
बादर ल।

मंजूर
नचइया नइये, जाने
काम ह चल देहे,
सुघ्घर गवइया
हंसा मेर
कदम, हलदू
कऊहा सरई ल
छोर, फूल
जा बसे हें
छतवन म।

सेफाली फूल के
मन भावन महमई ले
चिरईमन के चिंहोर
खइमो-खइमो करत
अउ जिहां हवय
कमल कस आंखी वाली
हइरना
अइसना बगइचा
मोहत हे
मनखे के मन ल।

उज्जर कमल फूल ल
घेरी भेरी
कंपात
उनखर संग पा के
अउ जुड़ात
बिहिनियां के पुरवाही
अब्बड़ भाथे।
पाना म गिरे
ओस ल सुखात।

अनुवादक :  रसिक बिहारी अवधिया

One reply on “अनुवाद : तीसर सर्ग : सरद ऋतु”

रसिक भाई ! छत्तीसगढी साहित्य ल समृध्द बनाए बर अनुवाद घलाव जरुरी हे । बहुत बढिया काम करत हौ आप । हमला अपन भाखा ल दुनियॉ भर म बगराना हे ।बधाई ।

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