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अनुवाद

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1.
कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय
(मूल रचना – ‘‘कोशिश करने वालो की हार नही होती‘‘
मूल रचनाकार-श्री हरिवंशराय बच्चन )

लहरा ले डरराये  म डोंगा पार नई होवय,
कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय ।
नान्हे नान्हे चिटीमन जब दाना लेके चलते,
एक बार ल कोन कहिस घेरी घेरी गिरते तभो सम्हलते ।
मन चंगा त कठौती म गंगा, मन के जिते जित हे मन के हारे हार,
मन कहू हरियर हे तौ का गिरना अऊ का चढना कोन करथे परवाह ।

कइसनो होय ओखर मेहनत बेकार नई होवय,
कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय ।

डुबकी समुददर म  गोताखोर ह लगाथे,
फेर फेर डुबथे फेर फेर खोजथ खालीच हाथ आथे ।
अतका सहज कहां हे मोती खोजना  गहरा पानी म,
बढथे तभो ले उत्साह ह दुगुना दुगुना ऐही हरानी म ।

मुठठी हरबार ओखर खाली नई होवय,
कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय ।

नकामी घला एक चुनौती हे ऐला तै मान,
का कमी रहिगे, का गलती होगे तेनला तै जान ।
जब तक न होबो सफल आराम हराम हे,
संघर्ष ले झन भागव ऐही चारो धाम हे ।
कुछु करे बिना कभू जय जयकार नई होवय,
कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय ।

2.
संझा
(मूल रचना – ‘‘संध्या सुंदरी‘‘
मूल रचनाकार-श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘)

बेरा ऐती न ओती बेरा बुडत रहीस,
करिया रंग बादर ले सुघ्घर उतरत रहिस,
संझा वो संझा, सुघ्घर परी असन,
धीरे धीरे धीरे……………
बुड़ती म, चुलबुलाहट के अता पता नईये
ओखर दुनो होट ले टपकत हे मधुरस,
फेर कतका हे गंभीर …. न हसी न ठिठोली,
हंसत  हे त एकेठन तारा,
करीया करीया चूंददी मा,
गुथाय फूलगजरा असन
मनमोहनी के रूप संवारत
सुस्ती के नार
वो तो नाजुक कली
चुपचाप सीधवा के गर मा बहिया डारे
बादर रस्ता ले आवत छांव असन
नई बाजत हे हाथ मा कोनो वीणा
न कोई मया के राग न अलाप
मुक्का हे साटी के घुंघरू घला
एक्के भाखा हे
ओहू बोले नई जा सकय
चुप चुप एकदम चुप
ऐही हा गुंजत हे
बदर मा, धरती मा
सोवत तरीया मा, मुंदावत कमल फूल मा
रूप के घमंड़ी नदिया के फइले छाती मा
धीर गंभीर पहाड़ मा, हिमालय के कोरा मा
इतरावत मेछरावत समुद्दर के लहरा मा
धरती आकास मा, हवा पानी आगी मा
एक्के भाखा हे
ओहू बोले नई जा सकय
चुप चुप एकदम चुप
ऐही हा गुंजत हे
अऊ का हे, कुछु नइये
नशा धरे आवत हे
दारू के नदिया लावत हे
थके मांदे सबो जीव ला
एक एक कप पीयावत हे
सेवावत अपन गोदी
मीठ मीठ सपना
ओ हा तो देखावत हे ।
आधा रात के जब ओ हा
निश्चलता मा समा जाथे
तब कवि के मया जाग
राग विरह ला गाथे
अपने अपन निकल जाथे
हिरदय के पीरा

-रमेशकुमार सिंह चौहान