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व्यंग्य

अपन अपन रुख

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रुख रई जंगल के , बिनास देख , भगवान चिनतीत रिहीस । ओहा मनखे मन के मीटिंग बलाके , रुख रई लगाये के सलाह दीस । कुछ बछर पाछू , भुंइया जस के तस । फोकट म कोन लगाहीं । भगवान मनखे मन ल , लालच देवत किहीस के रुख रई के जंगल लगाये बर , मनखे ल , मुफत म भुंइया अऊ नान नान पऊधा बितरन करहूं , संगे संग घोसना करीन के , जे मनखे मोर दे भुंईया म बहुत अकन रुख , रई , झाड़ झरोखा लगाही , अऊ वोला सुरकछित राखही , ओमन ल जीते जियत परिवार समेत सरग देखाहूं ।

समे बीते के पाछू , रुख लगइया मन तीर पहुंचगे भगवान । एक झिन बतइस , हमन अइसे रुख लगाये हाबन , जे न केवल हमन ल सुख देवथे , बलकी अवइया हमर कतको पीढही ल सुख अऊ समरीद्धी दिही । भगवान किथे – तुंहर जंगल ल , देखतेन । दूसर दिन , बड़े जनीस भुंइया म बिसाल सभा के आयोजन , घंटों भासन , तहन रासन , सांझ कुन अऊ ……., रथिया अऊ…….। भगवान कसमसावत , आंखी ल मूंद लीस । दूसर दिन बिहाने ले भगवान फेर पचारिस – आज तोर रुख ल देखाते का जी ? ओ किथे – या.. काली नी देखेव का ? चलव ….. दूसर गांव म बड़े जिनीस सभा , कोरी खइरखा मनखे , पांव धरे के जगा निही , चारों डहर खोसकीस खोसकीस ……। भगवान पूछथे – कती करा हे तुंहर रुख , देखा मोला …. खाली भीड़ भडक्का म धुर्रा खाये बर ले आनथस । मनखे किथे – अतका कस मनखेरुख तोला नी दिखत हे भगवान …… , मुहूं ल फार दीस भगवान । भगवान पूछीस – ये कइसे रुख आय जी ? मेंहा रुख रई जंगल लगाये बर केहे रेहेंव , तूमन मनखे के जंगल लगा देव ? मनखे किथे – जे रुख लगाये ले सरग के सुख मिलही , तिही ल लगाये हाबन जी । भगवान रटपटा के किहीस – तूमन ल सरग लेगना तो दूर , जुरमाना होही , बिन हमर आगिया , हमरे जगा भुंइया म दू गोड़िया रुख लगा डरेव । मनखे किथे – जुरमाना …. रुख लगाये बर तोर भुइंया के एक इंच इसतेमाल नी करे हाबन , अऊ तो अऊ ये रुख के बाढ़हे बर तोर सुरूज के घाम तक नी ले हाबन । तैं खुदे देख …। भगवान धियान करके देखे लागीस । वाजिम म , भासन के खेत म , आसवासन के खातू , लालच के पानी अऊ मउकापरसती के घाम म खसकस ले उपजे रहय , बन बांदुर कस , मनखे रुख । बीच बीच म राहत के कीटनासक के छिड़काव करके , कीरा परे ले बचा डरय । भगवान पूछीस – एकर फल फूल म , तूमन ल कायेच फयदा होवत होही ? वो किथे – इहां के बात तोर समझ म नी आवय , ये रुख म जे फूल खिलथे , तेकर महक म कतको झिन बऊरा जथे । पांच बछर म एक बेर फूलथे , ये फूल के नाव वोट आय । इही वोंटफूल हा , कुछ दिन म खुरसी फर बन जथे , जेला एक बेर तहूं चिखबे ते , सरग ल भुला जबे , वापिस नी जांवव कहिबे । भगवान किथे – त मोर दे भुंइया अऊ पउधा के का होइस जी ? ओ मनखे किथे – तोरे दे जमीन अऊ अपन जमीर ल बेंचथन तभे , अतका कस मनखे पेंड़ ल पालथन भगवान …., रिहीस तोर पउधा के , होही कहूं करा फेंकावत , हमर सरग इंहे हे , हम का करबो तोर पउधा ल , लेग जा वापिस ……। मुड़ी पीटत , दूसर रुख लगइया खोजे लागीस …….।

तहूं रुख लगाथस का जी ? देखा भलुक , कइसने लगाये हस ? ओ किथे – तैं सी. बी. अई. के मनखे तो नोहस ? भगवान किहीस – अरे नोहो रे भई , मेंहा भगवान अंव …। वो फेर किथे – अच्छा ….., तोला , कन्हो जांच वाले समझत रेहेंव । तूमन ल हमर रुख का दिखही भगवान ? हमर साहेब खानदान म , हमन अपन रुख इहां नी लगावन , हमर रुख स्वीस बैक म जामथे । का….. मुहुं ला फार दीस भगवान ? ओ किथे – हव भई , हमन पइसा के रुख लगाथन , जेला कन्हो ल देखन नी देवन । जे देख डरथे , तेला नान नान चंटा देथन । भगवान खिसियइस – कस रे साहेब , अइसने रुख लगाये म तूमन ल सुख मिलथे रे ? जुरमाना लागही , बिन आगिया के दूसर के जगा भुंइया म रुख जगो डरे । ओ जुवाब दीस – काके जुरमाना भगवान , न तोर भुंइया , न तोर हवा , न तोर परकास । भगवान पूछीस – त कइसे जाम जथे तोर रुख ? वो किथे – कागज के खेत म , भरस्टाचार के खातू , जनता के लहू म सिचई अऊ हेराफेरी के घाम म मोर रुख लहलहाथे भगवान जी…… तैं का जानबे…… । लबारी के कीटनासक ओकर रकछा करथे । मोर लगाये रुख म , मोर सात पीढ़ही बइठे बइठे सरग कस खा सकत हे । भगवान किथे- मोर भुंइया ल का करेव ? ओ मनखे बतइस – उही ला गिरवी धरेन ……….. तभेच तो ……। धकर लकर दूसर कोती टरक दीस भागीस भगवान ।

गड्ढ़ा खनत मनखे ल पूछीस – रुख जगोये बर खनथस का जी ? वो किथे – का रुख लगाबे भगवान , ओला रात दिन , राजनीती के ढोर डांगर मन चर देथे । भगवान पूछीस – त गड्ढा काबर खनथस ? ओहा किथे – रुखेच जगोये बर आय , फेर अपन रुख जगोहूं । भगवान फेर पचारिस – हमर दे रुख नी लगावस का जी ? ओ किथे – ओला का करबे , आज लगाबे , काली उखानबे , नी उखानबे तभो उखनही , वइसे भी हमर देस के सरकारी भुंइया म तोर रुख जगोये के अऊ ओला खड़े राखे के ताकत निये । आज गड्ढा कोड़थन , महीना भर पाछू , रुख के जगा बिलडिंग खड़ा हो जथे । भाखा , जाति , छेत्र अऊ धरम के गड्ढा भले कभू नी पटाये , फेर रुख लगाये बर खने गड्ढा दूसरेच दिन पटा जथे । तोर दे रुख लगइच देबो त , तामझाम के भुंइया म , परचार के खातू अऊ सुवारथ के सिचई , खइत्ता ताय , कतिहां ले जामही …..। किरागे तंहंले , अवसरवादिता के कीटनासक म कतेक दम……। तेकर सेती , तोर दे रुख के ओधा म , हमन अपन रुख , अइसे जगा जगोथन , जेहा जामथे ते जगा भुंइया हा , सहर बन जथे । का …… भगवान सोंच म परगे ? देखइस अपन रूख ला ……..जेती देख तेती घरेच घर , बड़े बड़े बिलडिंग , फेकटरी ……. अऊ कांकरीट के जंगल । भगवान सुकुरदुम होगे ।

चिरहा कुरता पहिरे , बीता भर खोदरा पेट के मनखे का रूख लगावत होही ……इही सोंच रेंगत रिहीस । तभे अवाज अइस , रुख तो मोरो करा बहुत हे भगवान , फेर लगावंव कती । जे भुंइया ल मोर किथंव , तेला सरकार नंगा लेथे , बिन भुंइया के कामे जगो डरंव । जियत जियत सरग जाये के साध म , एक ठिन रुख लगाये के उदिम , महूं कर पारथंव , फेर ओला पेंड़ाये म काटे पर जथे । भगवान किथे – अब समझ अइस , हमर जंगल ल कोन काट बोंग के परयावरन ल नकसान पहुंचाथे , लेगव ले नरक म एला । वो किथे – वा……. कइसे करथस भगवान , तैं कहत हस ते रुख ल काटना तो दूर , ओकर सुखाये डारा पाना ल सकेले म हमन पकड़ा जथन , ओ रुख मन ल टरक टरक भर के सहर म बेंचइया मन मलई खावत हे , अऊ हमन ल नरक लेगहूं किथस । में तो अपन रुख के बात करत हंव । भगवान किथे – देखा , तोरो रुख ल , कइसना हे ? वो रोवत किहीस – का देखावंव , गरीबी के खेत म , मेहनत के खातू अऊ पछीना के सिचई म , अरमान के रुख लगाथंव भगवान । फेर उहू ल , कलह अऊ सुवारथ के किरवा मन , सरकारी बिकास के पइसा कस चुहंक देथे । कतको सामपरायदिकता के बन बांदुर ल नींदथंव , तभो जामीच जथे । तियाग अऊ तपसिया के दवई हा , मंहंगई के घाम झेले नी सकय , लेसा जथे , ले दे के मोर अरमान के रुख बाढ़िच जथे , तब इही रुख के टोंटा मसक के , ओकर बोटी बोटी करके , अपन लइका पढ़हाथंव , येकरे कुटका ले हमर चूलहा म आगी सिपचथे , रंधनी खोली म कुहरा गुंगवाथे , मोर बिमार दई के दवई आथे , अऊ अपन बई के लाज ढांकथंव । मोर अरमान के रुख , मोला आज तक सुख नी दीस , त मोर नोनी बाबू ल का सुख दिही । ये रुख जबले जामे हे , मन म दुखेच उपजथे । अइसन रुख ल तोरे तीर लेग जते भगवान । भगवान किथे – में काये करहूं , इही रुख के सेती खुदे किंजरत हंव ये दुआर ले वो दुआर ………..।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा.