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कविता

अपन बानी अपन गोठ

बड़े बिहिनिया दीदी छरा छितत हावय
कोठा ले सुरहीन गईया बइठे हांसत हावत
संदेसिया कस कांव कहि डेरा मा बलाहू
अपन बानी गोठ मा जुरमिल गोठियाहू

देखव fभंसरहा किसनहा भईया ला
नागर-जुड़़ा खांधे बोहे रेंगइया ला
सुग्धर धनहा खेती ला जुरमिल उपजाहू
अपन बानी गोठ मा जुरमिल गोठियाहू

महतारी के भाखा ये भइया
संसो लजाये के उघारव फइका
कतका दिन ले छितका कुरिया मा
तू मन हा धंधाहू
अपन बानी गोठ मा जुरमिल गोठियाहू

महतारी के भाखा छत्तीसगढी
साग मा मिठाथे जइसे सुग्धर कढ़ी
चटवा-चटवा मांदी मा जम्मों ला खवाहू
अपन बानी गोठ मा जुरमिल गोठियाहू

जतेक राज हावय ततकेच भाखा
अपन बानी बोले बर लजाथस का गा
पूरखा के महिनत पानी मा झन डूबाहू
अपन बानी गोठ मा जूरमिल गोठियाहू

आनी बानी तुंहर संग कतको गोठियाही
अपन बानी बोले बर तुमला उचकाही
फेर सुनता तुलसी के बिरवा ला लागहू
अपन बानी गोठ मा जूरमिल गोठियाहू

Bhola Ram Sahu

 

 

 

 

भोलाराम साहू