Categories
कविता

अरुण कुमार निगम के छत्तीसगढी गीत : चले आबे नदी तीर मा …..

खन-खन बाजे चूरी , छन – छन बाजे पैरी ,
हाय ! दूनों होगे बैरी,कइसे आवंव नदी तीर-मा ?

चूरी – ला समझा दे अउ ,पैरी – ला मना ले ,
मेंहदी -माहुर लगा के ,चले आबे नदी तीर-मा.

बैरी ! मान गे हे चूरी अउ चुप होगे पैरी ,
अब आँखी भेद खोले, कैसे आवँव नदी तीर-मा ?

आँखी काजर लगा के,दूनों नैना ला झुका के
चुप्पे गगरी उठा के,चले आबे नदी तीर-मा.

आँखी कजरा लगाएँव,चुप्पे गगरी उठाएंव
अब चाल होगे बैरी,कैसे आवंव नदी तीर -मा ?

लोक – लाज के बिचार , छोड़ घर – परिवार
मया हिरदे-मा लेके, चले आबे नदी तीर-मा.

अरुण निगम
१०५, शम्भू -श्री अपार्टमेन्ट,
एम्.आर.रोड ,विजय नगर,
जबलपुर

4 replies on “अरुण कुमार निगम के छत्तीसगढी गीत : चले आबे नदी तीर मा …..”

Comments are closed.